बहन ने दी उमर अब्दुल्ला की PSA के तहत हिरासत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
LiveLaw News Network
10 Feb 2020 12:52 PM IST

जम्मू- कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की बहन ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट ( PSA) के तहत अपने भाई की नजरबंदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।
सोमवार को वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने जस्टिस एन वी रमना की पीठ के समक्ष जल्द सुनवाई का आग्रह किया।पीठ ने कहा कि वो जल्द सुनवाई पर विचार करेंगे।
याचिका में सारा अब्दुल्ला पायलट ने कहा है कि उनके भाई को अदालत में पेश किया जाए और रिहा किया जाए।
याचिका में कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए कोई सामग्री उपलब्ध नहीं हो सकती है, जो पिछले 6 महीने से हिरासत में है। हिरासत के आदेश के लिए आधारों मे पूरी तरह से किसी भी भौतिक तथ्यों या विवरणों की कमी है जो ऐसे आदेश के लिए जरूरी हैं।
ये भी कहा गया है कि PSA की धारा 8 (3) के प्रावधानों का पूरी तरह से उल्लंघन किया गया है और हिरासत आदेश को सही ठहराने के लिए निर्धारित शर्तों में से कोई भी मौजूद नहीं है और न ही इसका प्रचार किया गया है। इससे संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 का घोर उल्लंघन हुआ है।
सारा ने कहा है कि उमर की हिरासत के इसी तरह के आदेश पिछले 7 महीनों में पूरी तरह से यांत्रिक तरीके से जारी किए गए हैं, जो बताता है कि सभी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को थका देने के लिए लगातार और ठोस प्रयास किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि वास्तव में, हिरासत के दौरान अपनी पहली नज़रबंदी के दौरान हिरासत में लिए गए उमर के सभी सार्वजनिक बयानों और संदेशों के संदर्भ से पता चलता है कि वह शांति और सहयोग के लिए अपील करते रहे हैं और ऐसे संदेश जो गांधी के भारत में दूरस्थ रूप से भी सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित नहीं कर सकते।
साथ ही उमर को वो तथ्य भी नहीं बताए गए जिनके आधार पर हिरासत में लिया गया। ये कदम एक लोकतांत्रिक राजनीति के लिए पूरी तरह से विरोधी है और भारतीय संविधान को कमजोर करता है।
दरअसल उमर अब्दुल्ला 5 अगस्त, 2019 से सीआरपीसी की धारा 107 के तहत हिरासत में थे। इस कानून के तहत उमर अब्दुल्ला की छह महीने की एहतियातन हिरासत अवधि गुरुवार यानी 5 फरवरी 2020 को खत्म होने वाली थी लेकिन 5 जनवरी को सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया है। इसके बाद उनकी हिरासत को 3 महीने से 1 साल तक बिना किसी ट्रायल के बढ़ाया जा सकता है।