'कानून बनाना संसद का काम’: सुप्रीम कोर्ट ने दो सीटों पर चुनाव लड़ने से रोकने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से किया इनकार

Brij Nandan

2 Feb 2023 7:41 AM GMT

  • कानून बनाना संसद का काम’: सुप्रीम कोर्ट ने दो सीटों पर चुनाव लड़ने से रोकने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से किया इनकार

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक साथ दो लोकसभा सीट या विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने से रोकने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार किया।

    याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 33 (7) की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी।

    जन प्रतिनिधित्व कानून अधिनियम की धारा-33 (7) के तहत प्रावधान है कि एक उम्मीदवार 2 सीटों से चुनाव लड़ सकता है। वहीं धारा-70 कहती है कि 2 सीटों से चुनाव लड़ने के बाद अगर उम्मीदवार दोनों सीटों पर विजयी रहता है तो उसे 1 सीट से इस्तीफा देना होगा क्योंकि वो 1 सीट ही अपने पास रख सकता है।

    कोर्ट ने कहा कि कानून बनाना संसद का काम है।

    भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया।

    याचिका में सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ पैदा करने के लिए प्रावधान को अनुचित और मनमाना बताते हुए चुनौती दी गई।

    याचिका में कहा गया है कि उम्मीदवारों को दोनों सीटों से जीतने की स्थिति में एक सीट छोड़नी होगी।

    पीठ ने आदेश में कहा,

    "एक उम्मीदवार को एक से अधिक सीट के लिए चुनाव लड़ने की अनुमति देना विधायी नीति का मामला है क्योंकि यह संसद की इच्छा पर है कि वो राजनीतिक लोकतंत्र को इस तरह का विकल्प देना चाहता है या नहीं।"

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने प्रावधान को समाप्त करने के लिए भारत के विधि आयोग द्वारा की गई सिफारिशों पर भरोसा किया।

    इस संबंध में, पीठ ने कहा कि विधि आयोग की सिफारिशों पर कार्रवाई करना संसद का विशेषाधिकार है। विधि आयोग की सिफारिश के आधार पर एक वैधानिक प्रावधान को असंवैधानिक के रूप में रद्द नहीं किया जा सकता है।

    शंकरनारायणन ने बताया कि 1966 से पहले, एक उम्मीदवार कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ सकता था। हालांकि, 1966 में इस संख्या को दो तक सीमित करते हुए कानून में संशोधन किया गया था।

    पीठ ने कहा कि संसद बाद में यह सोच सकती है कि संख्या को और सीमित करना उचित है और वह अधिनियम में संशोधन कर सकती है। हालांकि, एक न्यायिक हस्तक्षेप अनुचित है।

    सुनवाई के दौरान, सीजेआई चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से कहा कि ये राजनीतिक लोकतंत्र का मामला है। हम न्यायिक हस्तक्षेप नहीं कर सकते।

    सीजेआई ने याचिकाकर्ता से पूछा,

    "इसमें गलत क्या है?"

    सीजेआई ने मौखिक रूप से कहा,

    "इसे देखने का एक और तरीका है। एक नेता कह सकता है कि मैं अपना अखिल भारत स्थापित करना चाहता हूं और यह दिखाना चाहता हूं कि मैं पश्चिम, पूर्व, उत्तर, दक्षिण से खड़ा हो सकता हूं। ये सभी राजनीतिक फैसले हैं और आखिरकार मतदाता तय करेंगे।"

    जस्टिस नरसिम्हा ने कहा,

    "इसमें कोई अनैतिकता नहीं है।“

    केस टाइटल : अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 967/2017




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