लाइसेंस देने की 'पहले आओ पहले पाओ' की नीति मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

31 Oct 2021 4:19 PM IST

  • लाइसेंस देने की पहले आओ पहले पाओ की नीति मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 'पहले आओ पहले पाओ' के आधार पर लाइसेंस देने की नीति में बुनियादी खामी है।

    न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने कहा कि यह सुनिश्चित करना सरकार का गंभीर कर्तव्य है कि एक गैर-भेदभावपूर्ण तरीका अपनाया जाए, चाहे वह अपनी जमीन पर लाइसेंस के वितरण या आवंटन के लिए हो, या संपत्ति के हस्तांतरण के लिए।

    इस मामले में, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि हरियाणा विकास और शहरी क्षेत्रों के नियमन अधिनियम, 1975 की योजना के लिए 'पहले आओ पहले पाओ' के सिद्धांत पर लाइसेंस देने के लिए राज्य के अधिकारियों द्वारा अपनाई गई नीति को निष्पक्ष, उचित और पारदर्शी तरीका नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि इससे आवेदकों के बीच लाइसेंस प्राप्त करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक अपवित्र होड़ लग गई।

    जिन पार्टियों के लाइसेंस हाईकोर्ट के इस फैसले के कारण रद्द कर दिये गये थे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि 'पहले आओ पहले पाओ' के आधार पर लाइसेंस देने की नीति अधिकारियों द्वारा पालन की जाने वाली एक पुरानी रवायत थी और नीति के तहत निर्धारित किए गए मापदंडों के संदर्भ में अपनी भूमि के आश्रयी को लाइसेंस प्रदान किया जाना था।

    कोर्ट ने पाया कि रिकॉर्ड पर रखी गई पूरी योजना के तहत उपलब्ध लाइसेंस के आवंटन के लिए 'पहले आओ पहले पाओ' के आधार पर कथित रूप से ऐसी कोई सुसंगत प्रथा नहीं है और दूसरी बात यह है कि जहां से यह सिद्धांत उधार लिया गया है वह क़ानून और नीति के अनुसार अलग है, जिसके लिए संभावित आवेदकों को लाइसेंस आवंटित करने की प्रक्रिया शुरू की गई थी।

    कोर्ट ने कहा कि 'पहले आओ पहले पाओ' के आधार का सिद्धांत, जिसे राज्य के प्रतिवादियों द्वारा तात्कालिक मामले के तथ्यों में अपनाया गया है, को न तो तर्कसंगत माना जा सकता है और न ही जनहित में और यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

    कोर्ट ने कहा:

    36. इसके अलावा, 'पहले आओ पहले पाओ' के आधार की नीति में एक मूलभूत दोष है क्योंकि इसमें शुद्ध मौका या दुर्घटना का एक तत्व शामिल है और इसमें वास्तव में अंतर्निहित निहितार्थ हैं और इस कारक से इंकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि हमने रिकॉर्ड देखे हैं, कोई भी व्यक्ति जिसके पास पावर कॉरिडोर तक पहुंच है, उसे सरकारी रिकॉर्ड से जानकारी उपलब्ध करा दी जाएगी और इससे पहले कि बड़े पैमाने पर लोगों के लिए एक सार्वजनिक सूचना उपलब्ध हो, इच्छुक व्यक्ति अपना आवेदन जमा कर सकता है, जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ है, और बेहतर दावा करने के लिए कतार में पहले शामिल होने का हकदार बन गया है। साथ ही यह सुनिश्चित करना सरकार का गंभीर कर्तव्य है कि एक गैर-भेदभावपूर्ण तरीका अपनाया जाए, चाहे वह अपनी जमीन पर लाइसेंस के वितरण या आवंटन के लिए हो, या संपत्ति के हस्तांतरण के लिए और यह अनिवार्य एवं सर्वोपरि है कि सरकार का हर कदम हमेशा जनहित में होना चाहिए।

    इस प्रकार टिप्पणी करते हुए बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

    केस का नाम और उद्धरण: अनंत राज लिमिटेड बनाम हरियाणा राज्य एलएल 2021 एससी 599

    नंबर और दिनांक: सीए 6471/2021 | 27 अक्टूबर 2021

    कोरम: जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस. ओकास

    वकील: अपीलकर्ता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार, सरकार के लिए वरिष्ठ एएजी अनिल ग्रोवर

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