सिविल जज की परीक्षा में 41 उत्तर गलत, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दिया रद्द करने का आदेश

LiveLaw News Network

16 Nov 2019 6:57 AM GMT

  • सिविल जज की परीक्षा में 41 उत्तर गलत, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दिया रद्द करने का आदेश

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सिव‌िल जज के लिए छत्तीसगढ़ पब्‍लिक सर्विस कमिशन द्वारा आयोजित की गई प्रारंभिक परीक्षा को रद्द कर दिया है।

    कोर्ट ने ये फैसला परीक्षा के लिए प्रकाशित उत्तर कुंजी में शामिल 100 प्रश्नों में 41 गलतियां पाए जाने के बाद दिया। जस्टिस गौतम भादुड़ी की सिंगल जज बेंच ने परीक्षा परिणाम के खिलाफ 10 याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर ‌रिट पेटिशन्स की सुनवाई में कहा कि जिस प्रकार पूरी परीक्षा ली गई है, उसे जारी नहीं रखा जा सकता।

    "प्रश्नपत्रों में जिस मात्रा और प्रतिशत में गलतियां मिली हैं, जो कि इस कोर्ट का मानना है कि 100 में 41 सवाल और जवाब गलत पाए गए हैं, इसका प्रतिशत निश्चित रूप से चयन प्रक्रिया के मॉड्यूल को कमजोर करेगा और न्यायालय इस पर मौन धारण नहीं कर सकता है।''

    कोर्ट परीक्षा के बाद इसे इकलौते घोड़े की दौड़ में बदलने की अनुमति नहीं दे सकता, बल्‍कि सुधार के विचार के साथ इस महति चुनौती को स्वीकार करेगा। कुछ समस्याओं के खात्मे के लिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण और सुधार की आवश्यकता होती है और यदि हम संकीर्ण दृष्टि से देखते हैं तो वे खत्म नहीं हो पाती और लापरवाही की हमेशा एक कीमत रहती है। नतीजतन जिस तरह से पूरी परीक्षा आयोजित की गई थी उसे बरकरार रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    पीएससी द्वारा 2 जुलाई 2019 को आयोजित प्रारंभिक परीक्षा का अंतिम परिणाम समाप्त कर दिया गया है। इस जिसका विज्ञापन 6 फरवरी 2019 को प्रकाश‌ित हुआ था। पीएससी को 6 फरवरी 2019 के विज्ञापन के आधार पर ही एक नई प्रारंभिक परीक्षा आयोजित करने का निर्देश दिया गया है, जिनमें उन सभी उम्मीदवारों को मौका दिया जाएगा, जिन्होंने फॉर्म भरा था और रद्द की गई परीक्षा में उपस्थित हुए थे। दोबारा होने वाली परीक्षा के लिए अलग से परीक्षा शुल्क नहीं लिया लिया जाएगा।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि मॉडल उत्तर कुंजी के प्रकाशन के बाद, उसमें 100 प्रश्नों में से 30 से अधिक प्रश्न स्पष्ट रूप से गलत पाए गए, उनमें कई के उत्तर गलत थे, कई में गलत वाक्यांशों सहित प्रश्नों और उत्तरों में वर्तनी की गलतियां शामिल थीं और प्रश्नपत्र के अंग्रेजी और हिंदी संस्करण में प्रश्नों और उत्तर के अनुवाद में भी अंतर था।

    पीएससी ने तर्क दिया कि कोर्ट विशेषज्ञों द्वारा बनाई गई उत्तर कुंजी की समीक्षा नहीं कर सकती। हालांकि कोर्ट ने तर्क को खारिज करते हुए कहा कि चूंकि परीक्षा न्याय‌िक सेवा से जुड़ी है, इसलिए कोर्ट उत्तरों को परीक्षण कर सकती है और विशेषकर जब सवाल बहुत ही जटिल कानूनों और गंभीर वैधानिक व्याख्याओं से नहीं जुड़े हुए हैं।

    "यह न्यायालय इस तथ्य से भी अवगत है कि परीक्षा सिविल जज के चयन के लिए आयोजित की गई थी, प्रश्नों की प्रकृति से गुजरने के बाद कोर्ट ने पाया कि किसी भी प्रश्न गंभीर वैधानिक व्याख्या का उल्‍लेख नहीं है या वो कानून के जटिल प्रश्न हैं। इसलिए यह कोर्ट ‌ही सभी प्रश्नों, उत्तर और उन पर आपत्तियों पर विशेषज्ञों के निष्कर्ष आदि से निपटेगा।

    यह भी स्पष्ट है कि जब हाईकोर्ट प्रतियोगी परीक्षा के संबंध में मामले की सुनवाई कर रहा है, जो सिविल जज के पद के लिए उम्मीदवार के चयन से जुड़े सवाल और जवाब से संबंधित है, तो वो उन सवाल और जवाब की भी जांच कर सकती है।"

    जस्टिस भादुड़ी ने कहा कि इस तरह की दोषपूर्ण परीक्षा पास करने वाले उम्मीदवार न्यायपालिका की उचित सेवा नहीं कर सकते:

    "न्यायालय सिविल जज बनने जा रहे उम्मीदवार के अधिकार को और जब वो वो न्याय पालिक के प्रमुख भाग के लिए चुना लिया जाता है तो उसके कर्तव्य क्या होंगे, उसे याद कर ठीक ही रहेगा। यदि कोई व्यक्ति ऐसी परीक्षा उत्तीर्ण करता है, जिसमें प्रश्न दोषपूर्ण हैं तो ये अनुमान लगाना पड़ेगा कि उस परीक्षा से चुने गए उम्मीदवार को लेकर शुरुआत में यही राय रहेगी कि फैसले करते समय उसका रवैया अगंभीर और कैजुअल रह सकता है। इसके अलावा, जब चयन की दोषपूर्ण प्रक्रिया को रोका नहीं जाता और उसे शाश्वत बना दिया गया है तो एक जज जो फैसले देता है, वह अपने दिमाग में ऐसी धारणा बना लेगा कि जानबूझकर मानवीय गलतियां करना आम बात है और इसे निर्णय प्रकिया में शमिल करने की अनुमति दी जा सकती है। "

    "चयनित जज को अनुमान की अज्ञानता और उसके बाद निर्णयों/आदेशों को पारित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।"

    मामले में बीपी शर्मा, राकेश पांडे, शक्ति राज सिन्हा, वैभव शुक्ला, आस्था शुक्ला, शोभित मिश्रा, अमित चौकी, नवीन निराला याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता थे। प्रियंवदा सिंह व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता के रूप में शामिल हुईं। अदालत ने राज्य अतिरिक्त महाधिवक्ता आलोक बख्शी, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के वकील राजीव श्रीवास्तव और छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के वकील आशीष श्रीवास्तव, विवेक शर्मा के पक्षों को भी सुना।

    पूरा निर्णय यहां पढ़ें-



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