"फाइलिंग कम हुई, वर्चुअल सुनवाई वकीलों को प्रभावित कर रही है" : सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में कहा
LiveLaw News Network
17 March 2021 10:39 AM IST
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) की ओर से हाइब्रिड सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री द्वारा जारी एसओपी को खारिज करने की मांग करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने (मंगलवार) वकीलों और लीगल कम्युनिटी के बीच COVID 19 महामारी के चलते आने वाली विभिन्न परेशानी को उजागर किया।
न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति सुभाष रेड्डी की खंडपीठ के समक्ष एडवोकेट सिंह ने वर्चुअल कामकाज को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि,
"असफल और संघर्ष करने वाले वकील आज असली पीड़ित हैं। एक व्यक्ति के रूप में मुझे कठिनाई नहीं है, लेकिन यह कोई प्वाइंट नहीं है। मेरी सुविधा को याद्दाश्त के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। बार की औसत संख्या ऐसा नहीं कर सकती।"
एडवोकेट सिंह की दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जजों की कमेटी और नवनिर्वाचित सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के बीच एक बैठक बुलाई, जिसमें एसओपी के बारे में बनी धारणा के चलते उत्पन्न मतभेदों को खत्म किया जाए।
यह तर्क देते हुए कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी एसओपी के संबंध में बार के रुख से अनजान थे। एडवोकेट सिंह जो कि एससीबीए अध्यक्ष हैं, ने तर्क दिया कि इस विषय पर बार एसोसिएशन की सुनवाई किए बिना एसओपी जारी किया गया था।
असफल और संघर्ष कर रहे वकीलों का COVID 19 की वजह से जीना मुश्किल हो गया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह जो शारीरिक सुनवाई को फिर से शुरू करने की मांग कर रहे हैं, ने असफल और संघर्षरत वकीलों के लिए महामारी में लीगल कम्युनिटी में जीवित रहने के लिए आने वाली परेशानियों को उजागर किया। एडवोकेट सिंह के अनुसार, ऐसे वकील "वास्तविक पीड़ित" हैं।
आगे कहा कि कई स्थापित और सफल वकीलों ने COVID19 महामारी के बीच अच्छी कमाई करने का सौभाग्य प्राप्त किया। एडवोकेट सिंह ने कहा कि "एक व्यक्ति के रूप में मुझे कठिनाई नहीं है लेकिन यह कोई प्वाइंट नहीं है। मेरी सुविधा को याद्दाश्त के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। बार की औसत संख्या ऐसा नहीं कर सकती।"
इसे देखते हुए एडवोकेट सिंह इस बात को प्रस्तुत करने के लिए आगे बढ़े कि बार में वकीलों के सामने आने वाली कठिनाइयों के कारण, वकीलों को अपना घर चलाने और अपने बच्चों की फीस का भुगतान करने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ा और इतना ही नहीं कुछ ने तो अपना पेशा भी बदल लिया है।
एडवोकेट सिंह ने कहा कि,
"मामलों की फाइलिंग 20 से 25 प्रतिशत घट गई है। कुछ वकीलों को अपने बच्चों की फीस का भुगतान करने और अपना घर चलाने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। कुछ ने अपना पेशा भी छोड़ दिया है।"
इस बिंदु पर, न्यायमूर्ति सुभाष रेड्डी ने हस्तक्षेप किया और एडवोकेट सिंह द्वारा बताई गई शिकायत का समर्थन करते हुए कहा कि खंडपीठ युवा वकीलों के सामने आने वाली समस्याओं को जानती है, हालांकि उन्होंने निर्दिष्ट किया कि ऐसी स्थिति में एक संतुलन बनाना होगा।
कोर्ट में पहनना मास्क पहनना और हाथों को सैनिटाइज करना अनिवार्य है।
जस्टिस रेड्डी द्वारा देश में COVID19 मामलों की बढ़ती संख्या के मुद्दे पर द्वारा किए गए हस्तक्षेप पर एडवोकेट विकास सिंह ने प्रस्तुत किया कि शारीरिक (फिजिकल) रूप से न्यायालयों में उपस्थित होने वाले वकीलों के लिए मास्क पहनना और हाथों को सैनिटाइज करना अनिवार्य बनाया जा सकता है।
एडवोकेट सिंह द्वारा प्रस्तुत किए जाने के बाद यह बात सामने आई कि राष्ट्रीय राजधानी में अधिकांश मामले लोगों की लापरवाही के कारण आए हैं और कई लोग सडकों पर मास्क नहीं पहनते हैं।
एडवोकेट सिंह ने कहा कि,
"अब देखें कि सड़कों पर स्थिति कैसे खराब हो गई है। लोग मास्क नहीं पहन रहे हैं। लोग अपने हाथों को सैनिटाइज भी नहीं कर रहे हैं। हमारे यहां सुनवाई के लिए मास्क पहनना अनिवार्य है और ऐसा हम कई दिनों से कर रहे हैं। यह हम नियमित रूप से होने वाली सुनवाई में करते हैं। अगर किसी को लगता है कि उसका मामला कोर्ट में 12 बजे तक नहीं पहुंचेगा, तो उसे कोर्ट में आने की जरूरत नहीं है।
एसओपी तैयार करते समय बार एसोसिएशन से परामर्श नहीं लिया गया और एसओपी को बार में सीधे 'पैराशूट' की तरह लाया गया।
वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह तर्क दिया कि एसओपी जारी करते समय बार एसोशिएशन से परामर्श या सलाह नहीं ली गई। एडवोकेट सिंह के अनुसार, यदि एसओपी के कारण 99% समस्या बार के लोगों को हो रही है तो बार को एसओपी के नियम तय करना चाहिए था।
एडवोकेट सिंह ने कहा कि,
"अगर 99% समस्या बार के लोगों को है तो एसओपी भी बारे के लोगों को ही तय करनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि वकीलों के बीच इसकी बिल्कुल भी चर्चा नहीं की जाती है।"
एडवोकेट सिंह ने तर्क दिया कि,
"मैं आज एसओपी को खत्म करने के लिए यहां आया हूं। बार के अध्यक्ष के रूप में मुझे पिछले 16 दिनों से बैठक के लिए नहीं बुलाया गया है और अगर मुझे सुना नहीं जाता है और अगर मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश समिति के पास मुझे सुनने का समय नहीं है और अगर मेरे विचार इस एसओपी के उद्देश्य के लिए अप्रासंगिक हैं, तो मैं कुछ भी नहीं कहना चाहता हूं। एसओपी को हमारे सामने कभी नहीं रखा गया। बार में सीधे पैराशूट से उतर गया। "
चिकित्सा विशेषज्ञों की राय एक दिखावा है।
न्यायमूर्ति एसके कौल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बैठक के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों की राय पर COVID 19 की स्थिति के रूप में माना जाता है। इस पर एडवोकेट सिंह ने पिछले साल अक्टूबर में हुए बिहार चुनावों के उदाहरण का हवाला देते हुए कहा कि यह सिर्फ एक दिखावा है।
एडवोकेट सिंह ने कहा कि,
"यह सिर्फ एक दिखावा है। जब COVID 19 महामारी अपने चरम पर थी तब बिहार में चुनाव अक्टूबर में चुनाव कराया गया। यहां 2000 मतदाताओं को शारीरिक मतदान करने की अनुमति नहीं थी। ऐसे में लॉर्डशिप यह संस्थान बंद कर सकते हैं।"
एडवोकेट सिंह ने यह भी तर्क दिया कि जब वर्तमान में हवाई अड्डों और सिनेमा हॉल के संचालन को पूरी तरह से काम करने की अनुमति है, तो न्यायालय को भी शारीरिक कामकाज के लिए खुद को खोलने पर विचार करना चाहिए।
एडवोकेट सिंह ने प्रस्तुत किया कि,
"ऐसे हवाई अड्डे हैं जो शारीरिक रूप से काम कर रहे हैं, लोग 2 या 3 घंटे के लिए एक-दूसरे के पास बैठे हैं। यदि वह कोरोना मामलों के दर को प्रभावित नहीं कर रहा है, तो हम यहां क्यों नहीं हो सकते हैं?"
इस बिंदु पर, न्यायमूर्ति एसके कौल ने टिप्पणी की कि,
"विभिन्न मुद्दों पर बहस हो रही है। अगर एसओपी में कुछ क्षेत्र हैं जो काम करने योग्य हैं, तो समिति को इस पर गौर करना चाहिए। ये सभी प्रशासनिक मुद्दे हैं। हम कुछ पहलुओं पर ध्यान देंगे। उचित पोस्ट न्यायाधीश समिति के साथ इस पर चर्चा करें और सुझावों के साथ हमारे पास आएं। एकमात्र समाधान समिति के साथ चर्चा करना है।"
याचिका की पृष्ठभूमि
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 15 मार्च से हाइब्रिड कोर्ट की सुनवाई फिर से शुरू करने का निर्देश देते हुए 5 मार्च को एसओपी जारी किया। बार एसोसिएशन द्वारा COVID 19 महामारी के संबंध में दिए गए सुझावों पर विचार करने और इसके कामकाज के संबंध में कई दिशा-निर्देश जारी किए गए थे।
इसलिए प्रायोगिक आधार पर हाइब्रिड तरीके से मामलों की सुनवाई के लिए एक पायलट योजना तैयार की गई थी। योजना के अनुसार अंतिम सुनवाई और नियमित मामलों की सुनवाई मंगलवार, बुधवार और गुरूवार को हाइब्रिड मोड में सुना जाएगा और यह सुनवाई एक मामले में पार्टियों की संख्या और कोर्ट रूम की सीमित क्षमता पर विचार करने के बाद किया जाएगा। हालांकि सोमवार और शुक्रवार को सूचीबद्ध किए गए अन्य सभी मामलों को वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग मोड में सुना जाएगा।
बाद में एससीबीए ने उक्त एसओपी को स्वीकार नहीं करने का फैसला किया क्योंकि यह सीजेआई बोबड़े द्वारा 1 मार्च 2021 को आयोजित बैठक में दिए गए आश्वासन के बावजूद बार को विश्वास में लिए बिना तैयार किया गया था।
दलील में कहा गया है कि 1 मार्च को सीजेआई के साथ एससीबीए की कार्यकारी समिति की बैठक में यह आश्वासन दिया गया था कि कार्यकारी समिति द्वारा दिए गए सुझावों को ध्यान में रखते हुए रजिस्ट्री द्वारा इस पर शीघ्रता से काम किया जाएगा। हालांकि, यह आरोप लगाया गया कि रजिस्ट्री द्वारा लगाए गए एसओपी को एकतरफा जारी किया गया है।
याचिका में आगे कहा गया है कि बार में आम भावना है कि पिछले कुछ वर्षों से सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री बार को विश्वास में लिए बिना सर्कुलर जारी कर रही है, हालांकि इस तरह के सर्कुलर सीधे तौर पर वकीलों की प्रैक्टिस को प्रभावित करते हैं।
आगे कहा गया कि सुनवाई के अजीबोगरीब तरीकों के चलते बड़ी संख्या में अत्यावश्यक मामले सूचीबद्ध होने के बावजूद नहीं सुने जा रहे हैं। मेल भेजकर रजिस्ट्रार को सूचित किया जा रहा है।
बार एसोसिएशन ने यह भी कहा है कि दिल्ली उच्च न्यायालय सहित अधिकांश उच्च न्यायालयों ने या तो शारीरिक रूप से सुनवाई शुरू कर दी है या भौतिक रूप से सुनवाई कर रहे हैं और यह सबसे सही समय है कि हर दूसरे संस्थान की तरह, सुप्रीम कोर्ट भी सामान्य स्थिति बहाल करे और प्रवेश द्वार पर तापमान की जांच, मास्क पहनना और सामाजिक दूरी बनाए रखने जैसी पर्याप्त सावधानियों के साथ शारीरिक सुनवाई शुरू करें।