केरल हाईकोर्ट का फैसला, बच्चों के भरण-पोषण के लिए प‌िता की पेंशन का इस्तेमाल भी किया जा सकता है

LiveLaw News Network

3 Feb 2020 12:07 PM GMT

  • केरल हाईकोर्ट का फैसला, बच्चों के भरण-पोषण के लिए प‌िता की पेंशन का इस्तेमाल भी किया जा सकता है

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना है कि बच्चों के भरण-पोषण के भुगतान के लिए प‌िता की पेंशन का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।

    जस्टिस के हरिलाल और जस्टिस सीएस डायस की एक खंडपीठ इस सवाल पर विचार कर रही थी कि क्या पिता के पेंशन संबंधी लाभों से बच्चों को देय रखरखाव के बकाये का भुगतान करने से छूट दी गई है।

    यह सवाल संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर मूल याचिका में था, जिसमें एक एक्स‌क्यूशन कोर्ट के आदेशों को चुनौती दी गई ‌थी, जिसने याचिकाकर्ता के नियोक्ता- केएसआरटीसी- को कोर्ट में रखरखाव के बकाया को जमा करने का निर्देश दिया ‌था, साथ ही उसके बच्चों को वह रकम न‌िकालने की अनुमति दी थी।

    याचिकाकर्ता ने यह दलील दी थी कि पेंशन अधिनियम की धारा 11 और नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 60 (1) (जी) के तहत पेंशन को जब्ती/कुर्की से मुक्त रखा गया है।

    कोर्ट ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता केएसआरटीसी का सेवानिवृत्त कर्मचारी है, इसलिए पेंशन की अदायगी के ‌लिए केएसआर-पार्ट III लागू होगा, न कि पेंशन अधिनियम की धारा 11। KSR के नियम 124 के अनुसार, पेंशनभोगी के खिलाफ किसी भी मांग के लिए लेनदार के आग्रह पर पेंशन जब्ती/ कुर्की के अधीन नहीं है।

    हालांकि, कोर्ट ने कहा कि रखरखाव के लिए पत्नी और बच्चों के दावे को कर्ज नहीं माना जा सकता है और न उन्हें लेनदार माना जा सकता है।

    कोर्ट इंग्लैंड के हल्सबरी कानून, स्ट्राउड्स जू‌डीशल ड‌‌िक्शनरी, और चतुर्भुज बनाम सीता बाई, रमेश चंदर कौशल व अन्य बनाम वीना कौशल व अन्य जैसे कई अदालती मिसालों में दी गई 'लेनदार' और 'गुजारा भत्ता' की परिभाषाओं के आधार पर इस निष्कर्ष तक पहुंचा।

    जस्टिस सीएस ड‌ायस द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया:

    'लेनदार' शब्द की परिभाषा की रोशनी में, गुजारा भत्ता का भुगतान ऋण या देनदारी नहीं है, यह एक अनुबंध, व्यक्त या निहित पर आधारित नहीं है, यह पत‌ि व पिता का पत्नी व बच्चों के लिए गुजाराभत्ते के दायित्व के प्रवर्तन का एक कानूनी साधन है, हमारा मानना है कि प्रतिवादी 2 और 3 को 'लेनदार' नहीं माना जा सकता है। याचिकाकर्ता का अपने बच्चों को गुजाराभत्ता देने का दायित्व वैधानिक और पवित्र है, जैसा कि रमेश चंदर कौशल (सुप्रा) के मामले में कहा गया है, ये संविधान के अनुच्छेद 15 (3) और अनुच्छेद 39 का हिस्सा है।

    कोर्ट ने कहा-

    "अगर पत्नियों और बच्चों को नियम 124 के तहत‌ वंचित किए गए 'लेनदार' की श्रेणी में रखा जाएगा तो यह रखरखाव के भुगतान से संबंधित कानूनों को फालतू बना देगा। ऐसी दमनात्मक व्याख्या की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

    इस संबंध में, फैसले में यह भी कहा गया कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 39 एक ऐसे व्यक्ति, जिसे गुजारभत्ता प्राप्त करने का अधिकार है, को ऐसे व्यक्ति की संपत्ति का प्रभार प्राप्त करने का अधिकार देती हे, जो उसे गुजाराभत्ता देने के लिए बाध्य है।

    कोर्ट ने सीपीसी की धारा 60 (1) (जी) की भी जांच की और कहा कि विधायिका ने जानबूझकर उक्त धारा के तहत 'परिवार पेंशन फंड' शब्द शामिल किया है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि पति/पिता की अपनी पत्नी/बच्चों के रखरखाव की जिम्मेदारी वैधानिक होने के साथ-साथ संवैधानिक भी है और यह अनुच्छेद 15(3) और अनुच्छेद 39 के दायरे में आती है। याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि बच्चों के पास पिता की संपत्तियों का प्रभार है और पिता द्वारा रखरखाव किए जाने का उनका अधिकार (याचिकाकर्ता) कानून में दी गई इस तरह की सभी छूटों के ऊपर है।

    निर्णय डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Tags
    Next Story