विचारों को रिट याचिका में परिवर्तित करने का चलन बन गया" : दिल्ली हाईकोर्ट ने भारत में अनुमति मांगने वाले विदेशी टीका निर्माताओं के ब्योरे संबंधी याचिका पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया
LiveLaw News Network
20 May 2021 10:24 AM IST
भारत में टीका निर्माण की मंजूरी के लिए आवेदन करने वाले विदेशी टीका निर्माताओं के ब्योरे और आंकड़ों तथा उनके आवेदनों की स्थिति की जानकारी मांगने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार (18 मई) को कहा कि "यह याचिका जनहित याचिका के निजी जिज्ञासा याचिका में परिवर्तित होने का उत्कृष्ट उदाहरण है।"
मुख्य न्यायाधीश डी. एन. पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 एवं कानून में उपलब्ध अन्य उचित उपायों के जरिये सूचना प्राप्त करने का रास्ता मौजूद है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,
"याचिका में मांगी गयी राहत की प्रकृति इस बात की संकेतक है कि याचिकाकर्ता इस रिट याचिका को सरकारी विभाग से जानकारी हासिल करने के माध्यम के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है, जो अनुमति योग्य नहीं है। हमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए इस रिट याचिका की सुनवाई का कोई कारण नहीं दिखता।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि जानकारी हासिल करने के अन्य उपायों का इस्तेमाल किये बिना या सक्षम अधिकारी के समक्ष अपना प्रतिनिधित्व रखे बिना याचिकाकर्ता ने जानकारी और साक्ष्य हासिल करने के लिए रिट याचिका को एक हथियार के तरह इस्तेमाल के वास्ते कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से यह भी कहा,
"शिकायतों के निपटारों के वैकल्पिक तरीकों का इस्तेमाल किये बिना रिट याचिकाएं छोटी-छोटी बातों के लिए दायर की जा रही हैं। जनहित याचिका काफी समय तक व्यापक तौर पर मानवाधिकारों की रक्षा तथा पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों के लिए एक नयी पद्धति थी, लेकिन अब इसे 'पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन' बनाये जाने की अनुमति निश्चित तौर पर नहीं दी जा सकती है।"
कोर्ट ने कहा कि मानव मस्तिष्क में आने वाले विचारों को रिट याचिकाओं में परिवर्तित करने और जनहित याचिका के तौर पर दायर करने का वास्तव में फैशन बन गया है।
अंतत:, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अधिकार क्षेत्र के दुरुपयोग की अनुमति नहीं दिये जाने पर बल देते हुए कोर्ट ने 10 हजार रुपये के जुर्माने के साथ रिट याचिका खारिज कर दी। जुर्माने की इस राशि का भुगतान याचिकाकर्ता चार सप्ताह के भीतर दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को करेगा।
कोर्ट ने आगे कहा कि उपरोक्त राशि का इस्तेमाल 'एक्सेस टू जस्टिस' कार्यक्रम के लिए किया जायेगा।
केस का शीर्षक : मयंक वाधवा बनाम भारत सरकार एवं अन्य