नोटबंदी के कारण जाली मुद्रा और काले धन को सिस्टम से महत्वपूर्ण रूप से बाहर किया गया: अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया

Avanish Pathak

26 Nov 2022 1:32 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में विमुद्रीकरण हो रही बहस में कहा कि जब विमुद्रीकरण की घोषणा की गई तब तेजी से जटिल होती अर्थव्यवस्था में आधुनिक मौद्रिक चुनौतियों की वृहद तस्वीर पर विचार किया गया था, इसलिए, सरकार के नेक इरादों और नीतिगत दृष्टिकोणों को ऑफ-किल्टर के रूप में नहीं लिखा जाना चाहिए।

    अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट समक्ष प्रस्तुत किया,

    "याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सरकार अपने घोषित उद्देश्यों को प्राप्त करने में विफल रही है, यही वजह है कि सरकार का नीतिगत दृष्टिकोण पूरी तरह से गलत है। कोई भी नेकनीयत व्यक्ति यह नहीं कहेगा कि हमारे इरादे त्रुटिपूर्ण थे। बहुत जोरों से यह सुझाव दिया गया कि हमारे पास विशिष्ट सर्वेक्षण, अनुभवजन्य डेटा वगैरह होना चाहिए था। हम देश की अर्थव्यवस्था के बारे में बात कर रहे हैं। विमुद्रीकरण को अलग-थलग करके नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि यह एक अकेला उपाय नहीं था।"

    उल्‍लेखनीय है कि नवंबर 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के उच्च मूल्य के करेंसी नोटों को विमुद्रीकृत करने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ दायर 58 याचिकाओं पर पांच-जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बीआर. गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम, और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल हैं, सुनवाई कर रही है। बेंच अन्य बातों के साथ-साथ 8 नवंबर के सर्कुलर की वैधता पर विचार कर रही है।

    अटॉर्नी-जनरल ने बेंच को नोटबंदी की नीति के विभिन्न प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभों की जानकारी दी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नकली मुद्रा और काला धन, जिन्हें पहचानना कठिन होता जा रहा है, को बाहर करने के लिए सरकार के व्यापक कार्यक्रम के लिए यह कैसे महत्वपूर्ण था।

    उन्होंने आगाह किया,

    "सर्कुलेशन में शामिल नोटों और नकली नोटों संबंधी डेटा और आंकड़े व्यापक मार्गदर्शन के होंगे। यह अदालत आंकड़ों के लिए माइक्रोस्कोप नहीं ले सकती है।"

    वेंकटरमणि ने आश्वासन दिया कि "समग्र प्रवृत्ति" ने संकेत दिया कि जाली मुद्रा और काला धन दोनों को सिस्टम से "महत्वपूर्ण" रूप से बाहर किया गया है।

    अटॉर्नी-जनरल ने कहा, "तथ्य यह है कि इन्हें बाहर किया गया था, यह महत्वपूर्ण है। बाहर गई मुद्रा की मात्रा उतनी महत्वपूर्ण नहीं है।"

    वेंकटरमणी ने संविधान पीठ को बताया,

    "नकली मुद्रा और काला धन ऐसे दुश्मन हैं, जिन्हें आसानी से पहचाना नहीं जा सकता है। वे हर समय चेहरा ढंक कर रखते हैं। यह कहना आसान है कि हम तर्कसंगत मानकों को देखें, प्रचलन से बाहर किए गए धन की मात्रा और प्रचलन में वापस आ गए धन की मात्रा को देखें। हालांकि उन्हें समस्या की जटिलता को देखना चाहिए। नकली मुद्रा और काले धन के कारण औपचारिक अर्थव्यवस्था पटरी से उतर रही थी।"

    याचिकाकर्ताओं के इस तर्क का विरोध करते हुए कि भारतीय रिजर्व बैंक, 1934 की धारा 26 की उप-धारा (2) की व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिए ताकि प्रावधानों द्वारा प्रदत्त शक्ति के "अप्रतिबंधित और अनिर्देशित" अभ्यास के खिलाफ "रक्षा कवच का निर्माण" किया जा सके।

    वेंकटरमणि ने कहा, "रिज़र्व बैंक की भूमिका को सीमित दायरे में परिभाषित नहीं किया जा सकता है।"

    इसके अलावा, अटॉर्नी जनरल ने इस तर्क से भी असहमति व्यक्त की कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने धारा 26 की उप-धारा (2) के तहत स्वतंत्र रूप से अपने विवेक का प्रयोग किया होता और इस तरह, वहर स्रोत होना चाहिए, जिससे उच्च-मूल्य की मुद्राओं को विमुद्रीकृत करने की सिफारिश की गई थी।

    उन्होंने कहा, "मौद्रिक नीति और किसी देश की आर्थिक नीति सभी आंतरिक रूप से जुड़े हुए हैं। इसलिए, सरकार और रिजर्व बैंक का एक सहजीवी संबंध है। यह नहीं कहा जा सकता कि रिजर्व बैंक को सरकार से पूरी तरह अलग होकर अपने विवेक का प्रयोग करना चाहिए था।"

    जस्टिस नागरत्ना ने हालांकि केंद्र से यह प्रदर्शित करने के लिए कहा कि केंद्रीय बैंक ने विवेक का प्रयोग किया था।

    उन्होंने अटॉर्नी-जनरल से पूछा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार और बैंक के बीच एक सहजीवी संबंध है। लेकिन कानून केंद्रीय बोर्ड की विशेषज्ञता और बोर्ड द्वारा विवेक का प्रयोग करने की आवश्यकता को मान्यता देता है। वह कहां है?"

    निर्णय लेने की प्रक्रिया में कथित दोष पर वेंकटरमणि ने कहा, "यह किसी भी अन्य आर्थिक नीति से अलग था, जिसमें हमें पूरी मौद्रिक नीति को इसकी सभी जटिलताओं में देखना होगा। विचारों के अलग सेट का पालन किया गया था। नतीजतन सम्मान की डिग्री भी अधिक होनी चाहिए।"

    केस टाइटलः विवेक नारायण शर्मा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [डब्ल्यूपी (सी) संख्या 906/2016] और अन्य संबंधित मामले

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