अभियुक्त के अपराध निर्धारण के लिए अप्रासंगिक कारकों को सजा सुनाये जाने के समय विचार किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

20 March 2021 4:53 AM GMT

  • अभियुक्त के अपराध निर्धारण के लिए अप्रासंगिक कारकों को सजा सुनाये जाने के समय विचार किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वैसे कारक जो अभियुक्त के जुर्म के निर्धारण के लिए प्रांसगिक नहीं हो सकते, उन पर सजा निर्धारण के स्तर पर विचार किया जा सकता है।

    इस मामले में अभियुक्त को एक नाबालिग लड़की के अपहरण के लिए अन्य अभियुक्तों के साथ साजिश रचने के आरोप में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 344 और 366 के तहत दोषी ठहराया गया था। उन सभी को आईपीसी की धारा 344 के तहत अपराध के लिए एक वर्ष की साधारण कारावास की सजा सुनायी गयी थी तथा दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया था। साथ ही, आईपीसी की धारा 366 के तहत अपराध के लिए दो वर्ष साधारण कारावास की सजा सुनायी गयी थी एवं पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया था। कर्नाटक हाईकोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

    न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर नोटिस जारी किया था। एसएलपी का दायरा सजा की अवधि तक ही सीमित था।

    कोर्ट ने कहा कि यहां तक कि शिकायत में भी इस बात का उल्लेख किया गया था कि मुख्य अभियुक्त का पीड़िता लड़की के साथ प्रेम संबंध था। कोर्ट ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि यह कथित घटना 2014 की है और उन लोगों ने तीन माह जेल की सजा काट ली है और जुर्माना की राशि भी जमा करा दी है। कोर्ट ने अभियुक्त की उन दलीलों पर भी विचार किया कि उसके घर में उसके नाबालिग बेटे और उसके वृद्ध माता पिता की देखभाल करने वाला कोई नहीं है।

    बेंच ने कहा,

    "बहुत से कारक जो अपराध के निर्धारण के लिए प्रासंगिक नहीं भी हो सकते हैं, उन पर सजा निर्धारण के स्तर पर ही मानवीय दृष्टिकोण से विचार किया जाना चाहिए। सजा का निर्धारण करते वक्त प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार किया जाना चाहिए।"

    बेंच ने आंशिक तौर पर अपील मंजूर कर लिया और दोषसिद्धि तथा जुर्माना को सही ठहराते हुए सजा की अवधि को संशोधित करके इसे काटी गयी जेल की अवधि तक कर दिया।

    केस : के. प्रकाश बनाम कर्नाटक सरकार [क्रिमिनल अपील 336 / 2021]

    कोरम : न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी

    वकील : एडवोकेट आनंद संजय एम. नुली, एडवोकेट सुभ्रांशु पाधी

    साइटेशन : एलएल 2021 एससी 169

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