कीमतों में वृद्धि 'सुनिश्चित अदायगी' को इनकार करने का एक मात्र आधार नहीं हो सकती : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
11 April 2021 7:09 PM IST
Escalation Of Prices Cannot Be The Sole Ground To Deny Specific Performance: Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कीमतों में वृद्धि 'सुनिश्चित अदायगी' को इनकार करने का एक मात्र आधार नहीं हो सकती।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की खंडपीठ ने यह भी कहा कि 'सुनिश्चित अदायगी' के लिए एकबारगी जब मुकदमा दायर किया जा चुका है तो कोर्ट की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप हुए किसी भी विलंब को सुनिश्चित अदायगी की डिक्री में वादी के खिलाफ कानून का मामला नहीं बनाया जा सकता।
कोर्ट मद्रास हाईकोर्ट की डिविजन बेंच के उस फैसले के खिलाफ अपील की सुनवाई कर रही थी, जिसमें एकल बेंच द्वारा सुनिश्चित अदायगी के लिए दी गयी डिक्री को दरकिनार कर दिया गया था।
अपीलकर्ता ने 20 मार्च 1991 को हुए बिक्री समझौते 24 जनवरी 1994 के सहमति ज्ञापन (एमओयू) की सुनिश्चित अदायगी के लिए वर्ष 2000 में चार मुकदमे दायर किये थे। (संबंधित प्रॉपर्टी के अनिवार्य अधिग्रहण के खिलाफ आयकर अधिकारियों की ओर से दायर रिट याचिकाओं को हाईकोर्ट द्वारा मंजूर किये जाने के दो साल बाद मुकदमे दायर किये गये थे)।
इन मुकदमों में एकल पीठ ने डिक्री दी थी। डिविजन बेंच ने बकाये राशि के भुगतान में देरी आदि जैसे तथ्यों का हवाला देकर एकल पीठ के फैसले को पलट दिया था।
शीर्ष अदालत के समक्ष अपील में प्रतिवादियों की ओर से यह दलील दी गयी थी कि चेन्नई में प्रॉपर्टी की कीमतों में उछाल और अपीलकर्ताओं द्वारा की गयी देरी 'सुनिश्चित अदायगी' को इनकार करने के प्रासंगिक कारक हैं।
इन दलीलों का संज्ञान लेते हुए बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट की डिविजन बेंच का यह निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण है कि रिट याचिका के निपटारे के तुरंत बाद बकाया राशि का भुगतान न करके अपीलकर्ता करार के तहत अपने हिस्सा का जिम्मा पूरी करने को न तो तैयार थे और न ही इच्छुक भी।
कोर्ट ने अपील मंजूर करते हुए कहा,
"सुनिश्चित अदायगी के लिए दायर मुकदमे को केवल विलंब अथवा अवधि बीत जाने के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। हालांकि, इस नियम का अपवाद भी है कि जहां अचल सम्पत्ति को निश्चित अवधि के भीतर बेचा जाना है, समय मूल तत्व है, और यह नहीं पाया गया है कि वादी की ओर से किसी डिफॉल्ट के कारण बिक्री निर्धारित अवधि के भीतर नहीं हो सकती है।
'सुनिश्चित अदायगी' के लिए एकबारगी जब मुकदमा दायर किया जा चुका है तो कोर्ट की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप हुए किसी भी विलंब को सुनिश्चित अदायगी की डिक्री में वादी के खिलाफ कानून का मामला नहीं बनाया जा सकता। हालांकि, प्रत्येक मामले के तथ्यों के संबंध में यह कोर्ट के विवेकाधीन होता है कि यहां तक कि अपीलीय स्तर पर सुनिश्चित अदायगी के पक्ष में डिक्री आती है तो क्या वादी द्वारा कुछ अतिरिक्त राशि दी जानी चाहिए या नहीं।
हम अपीलकर्ताओं से सहमत हैं कि वे रिट अपीलों के लंबित रहने के कारण 1998 में रिट याचिका के निपटारे के तत्काल बाद सिविल सूट दायर नहीं कर सके। कीमतों में वृद्धि सुनिश्चित अदायगी को नकारने का इकलौता आधार नहीं हो सकती। हमारा मानना है कि प्रतिवादी कोई अतिरिक्त राशि देने के लिए बाध्य नहीं है, क्योंकि अपीलकर्ताओं द्वारा 1994 से पहले ही बिक्री राशि के 90 प्रतिशत हिस्से का भुगतान किया जा चुका था।"
केस : ए आर मदन गोपाल बनाम रामनाथ पब्लिकेशन्स प्राइवेट लिमिटेड
कोरम : न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट
वकील : एडवोकेट राघवेन्द्र एस श्रीवास्तव, सीनियर एडवोकेट पी एस नरसिम्हा
साइटेशन : एलएल 2021 एस सी 206