कर्मचारी द्वारा जन्मतिथि में बदलाव का दावा अधिकार के रूप में नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

31 Oct 2021 7:32 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी कर्मचारी द्वारा जन्मतिथि में बदलाव के लिए आवेदन केवल प्रासंगिक प्रावधानों/विनियमों के अनुसार ही हो सकता है। कोर्ट ने दोहराया कि जन्मतिथि में बदलाव का दावा अधिकार के रूप में नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस एमआर शाह और एएस बोपन्ना की बेंच वर्तमान मामले (कर्नाटक रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट लिमिटेड वीटीपी नटराज और अन्य) में कर्नाटक रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट लिमिटेड ("निगम") द्वारा दायर एक अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट के निगम को दिए गए उस निर्देश को चुनौती दी गई थी, जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था निगम के रिकॉर्ड में उसके कर्मचारियों के सर्विस रिकॉर्ड दर्ज जन्मतिथि में परिवर्तन के संबंध में पुनर्विचार करें।

    शीर्ष अदालत ने अपील की अनुमति देते हुए कहा कि

    "आवेदन को देरी के आधार पर खारिज किया जा सकता है और विशेष रूप से जब यह सेवा के अंतिम दौर में किया जाता है और / या जब कर्मचारी सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त होने वाला होता है, तब भी आवेदन को खारिज किया जा सकता है।।"

    तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

    टीपी नटराज ("प्रतिवादी संख्या 1") को 1984 में निगम में नियुक्त किया गया था। उनके सर्विस रिकॉर्ड में उनकी जन्मतिथि एसएसएलसी मार्क्स शीट के अनुसार 4 जनवरी, 1960 के रूप में दर्शाई गई थी। इसके 24 साल बाद नटराज ने 4 जनवरी, 1960 से 24 जनवरी, 1961 तक जन्मतिथि बदलने का अनुरोध किया।

    इसके बाद नटराज ने बंगलौर में अतिरिक्त सिटी सिविल एंड सेशन जज के समक्ष उक्त घोषणा करने की मांग करते हुए एक मुकदमा दायर किया कि उनकी जन्मतिथि 24 जनवरी, 1961 है।

    निगम ने इस मामले में कर्नाटक राज्य सेवक (आयु का निर्धारण) अधिनियम, 1974 (अधिनियम, 1974) और 17 मई, 1991 के प्रस्ताव पर विश्वास जताया, जिसके द्वारा निगम ने कर्नाटक सिविल सेवा नियमों को अपनाया।

    नियमों के अनुसार सर्विस रिकॉर्ड में जन्मतिथि में परिवर्तन का अनुरोध कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के भीतर या अधिनियम, 1974 के लागू होने के एक वर्ष के भीतर किया जा सकता है।

    विचारण न्यायालय ने अधिनियम, 1974 की धारा 5(2) पर भरोसा करते हुए 28 जुलाई 2013 को वाद खारिज कर दिया।

    इससे व्यथित नटराज ने नियमित प्रथम अपील के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। यह देखते हुए कि वादी के लिए सेवा में शामिल होने की तारीख से तीन साल के भीतर अपनी जन्मतिथि बदलाने के उपाय का लाभ उठाना बेहद असंभव था और यह कि 17 मई, 1991 का प्रस्ताव वादी के ध्यान में नहीं लाया गया था, हाईकोर्ट ने 11 मार्च, 2019 को वादी की अपील की अनुमति दी। .

    हाईकोर्ट के इस निर्देश से क्षुब्ध होकर निगम ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    दोनों पक्षों की अदालत में प्रस्तुतियां

    निगम की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गुरुदास एस कन्नूर ने कहा कि हाईकोर्ट ने वाद की डिक्री करने और घोषणात्मक राहत देने में गंभीर त्रुटि की है।

    होम डिपार्टमेंट बनाम आर किरुबाकरन 1994 Supp (1) SCC 155, मध्यप्रदेश राज्य बनाम पिरामल श्रीनिवास (2011) 9 SCC 664, लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया & अन्य बनाम आर बसावराजू (2016) 15 SCC 781 और भारत कोकिंग कोल लिमोटेड और अन्य बनाम श्याम किशोर सिंह (2020) 3 SCC 411 के मामलों में दिए गए निर्णयों पर विश्वास करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जन्मतिथि में परिवर्तन करने संबधित कानून की व्याख्या की, जिसके अनुसार,

    (i) जन्मतिथि में परिवर्तन के लिए आवेदन केवल लागू प्रासंगिक प्रावधानों/विनियमों के अनुसार ही हो सकता है।

    (ii) भले ही दावा करने के ठोस सबूत हों, लेकिन उनका दावा अधिकार के रूप में नहीं किया जा सकता।

    (iii) आवेदन को देरी के आधार पर खारिज किया जा सकता है और विशेष रूप से तब भी जब यह सेवा के अंतिम दौर में किया जाता है और/या जब कर्मचारी सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त होने वाला हो।

    अधिनियम, 1974 की प्रयोज्यता की जानकारी नहीं होने के कर्मचारी के पहलू पर प्रतिवादी के तर्क को नकारते हुए पीठ ने कहा कि,

    "पूर्वोक्त निर्णयों में इस अदालत द्वारा निर्धारित कानून को लागू करते हुए यह देखा गया कि जन्म तिथि के परिवर्तन के लिए प्रतिवादी के आवेदन को देरी और लापरवाही के आधार पर भी खारिज कर दिया गया और इसलिए ऐसे प्रतिवादी कर्मचारी ऐसी घोषणा की मांग करने के हकदार नहीं हैं। हाईकोर्ट की डिक्री और उसके आक्षेपित निर्णय, आदेश न तो टिकाऊ हैं और न ही कानून में मान्य हैं।"

    शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि आवेदक नटराज देरी के आधार पर किसी भी राहत या जन्मतिथि में बदलाव के हकदार नहीं हैं, क्योंकि उनके सेवा में शामिल होने के 24 साल बाद जन्मतिथि बदलने का अनुरोध किया गया।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "निगम का कर्मचारी होने के नाते वह निगम के कर्मचारियों पर लागू होने वाले नियमों और विनियमों को जानते थे। कानून की अनदेखी वैधानिक प्रावधानों की प्रयोज्यता से बाहर निकलने का बहाना नहीं हो सकती।"

    केस टाइटल: कर्नाटक रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट लिमिटेड बनाम टी.पी. नटराज और अन्य।| 2021 की सिविल अपील संख्या 5720

    कोरम: जस्टिस एमआर शाह और एएस बोपन्ना

    प्रशस्ति पत्र : एलएल 2021 एससी 612

    निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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