वकीलों के विरोध का सामना कर रहे डीआरटी सदस्य को मिली राहत; सुप्रीम कोर्ट ने गुण-दोष के आधार पर फैसला करने की अनुमति देते हुए टकराव से बचने की दी सलाह
Shahadat
3 Dec 2022 12:22 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश में संशोधन किया, जिसमें ऋण वसूली न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य को लंबित मामलों में प्रतिकूल आदेश पारित करने से रोक दिया गया था। हाईकोर्ट ने डीआरटी बार एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि न्यायिक सदस्य वकीलों के साथ अभद्र व्यवहार कर रहे थे।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह का आदेश कानून में टिकाऊ नहीं है।
खंडपीठ ने कहा,
"इस तरह का एक अंतरिम आदेश (हाईकोर्ट का) न्यायिक सदस्य द्वारा लंबित किसी भी मामले में कोई प्रतिकूल आदेश पारित नहीं किया जा सकता है और यह अस्थिर है।"
पीठ न्यायिक अधिकारी द्वारा उच्च न्यायालय के 27 अक्टूबर के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। ऋण वसूली न्यायाधिकरण बार एसोसिएशन ने यह तर्क देते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था कि न्यायिक सदस्य जानबूझकर प्रतिकूल आदेश पारित कर रहे थे।
सुनवाई के दौरान न्यायिक सदस्य के वकील ने बताया कि ऋण वसूली न्यायाधिकरण बार एसोसिएशन द्वारा हड़ताल का आयोजन किया गया।
खंडपीठ ने मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स को सुनने के बाद पूछा,
"बार सिर्फ हावी कैसे हो सकता है और ट्रिब्यूनल पर कब्जा कर सकता है?"
सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने प्रस्तुत किया कि बार एसोसिएशन केवल अपने स्वाभिमान की रक्षा करना चाहता है।
खंडपीठ ने पूछा,
"सम्मान होना चाहिए। लेकिन सम्मान का मतलब यह नहीं है कि हाईकोर्ट इस तरह का आदेश पारित कर सकता कि संबंधित ट्रिब्यूनल सदस्य को कार्य नहीं करना चाहिए। इसने कहा कि ट्रिब्यूनल के जज को कोई प्रतिकूल आदेश पारित नहीं करना चाहिए। इसका मतलब क्या है? कि उन्हें केवल आवेदनों की अनुमति देनी चाहिए?"
सिंह ने प्रस्तुत किया कि ट्रिब्यूनल सदस्य वकीलों को 'नियमित चीजों' के लिए दंडित कर रहा है।
उन्होंने पहले भी ऐसा किया है, ऐसा उनका ट्रैक रिकॉर्ड है।'
बेंच ने कहा,
"वह (न्यायिक अधिकारी) अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। बार और बेंच को सौहार्दपूर्ण ढंग से काम करना चाहिए। बार को अनावश्यक स्थगन की मांग नहीं करनी चाहिए और अनावश्यक लंबी बहस नहीं करनी चाहिए।"
सिंह ने तब आश्वासन दिया कि यदि संबंधित सदस्य योग्यता के आधार पर लंबित मामलों का फैसला करता है तो बार सहयोग करेगा। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा है तो बार को हाईकोर्ट के आदेश को संशोधित करने में कोई आपत्ति नहीं होगी।
इसे ध्यान में रखते हुए बेंच ने दोहराया कि बेंच और बार दोनों से अपेक्षा की जाती है कि वे न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सौहार्दपूर्ण तरीके से व्यवहार करें।
बेंच ने कहा,
"हम हाईकोर्ट के आदेश को संशोधित करते हैं और ट्रिब्यूनल के न्यायिक सदस्य को गुण-दोष के आधार पर उसके समक्ष सुनवाई के मामलों को आगे बढ़ाने की अनुमति देते हैं। यह बिना कहे चला जाता है कि न्यायिक सदस्य के साथ-साथ बार को भी सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखना चाहिए, क्योंकि दोनों ही न्याय वितरण प्रणाली का हिस्सा हैं। दोनों न्याय के रथ के दो पहिए हैं। यह उम्मीद की जाती है कि दोनों एक-दूसरे का सम्मान करें। हम याचिकाकर्ता को यह देखने के लिए प्रभावित करते हैं कि कोई अनावश्यक टकराव न हो और गुण-दोष के आधार पर ही मामले का फैसला करें।"
मामले को 12 दिसंबर को पोस्ट करने से पहले खंडपीठ ने याचिका प्रति सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के कार्यालय में भेजने के लिए कहा।
केस टाइटल: एमएम धोनचक बनाम ऋण वसूली न्यायाधिकरण बार एसोसिएशन और अन्य | एसएलपी (सी) नंबर 21138/2022 IV-बी