RDB एक्ट के तहत पुनर्विचार आवेदन में देरी को माफ करने की DRT के पास कोई शक्ति नहीं : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
27 Jan 2020 4:01 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऋण वसूली न्यायाधिकरण ( डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल) के पास ऋण की वसूली और दिवालियापन अधिनियम 1993 (आरडीबी अधिनियम) के तहत पुनर्विचार के लिए आवेदन दाखिल करने में देरी को माफ करने की कोई शक्ति नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि लिमिटेशन एक्ट के प्रावधान, इसमें धारा 5 के तहत देरी करने का प्रावधान है, केवल आरडीबी एक्ट की धारा 19 के तहत दायर मूल आवेदनों पर ही लागू होते हैं, न कि पुनर्विचार के आवेदनों के लिए।
जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक बनाम एमएसटीसी लिमिटेड मामले में ये फैसला दिया।
इस मामले में अदालत ने उल्लेख किया कि आरडीबी अधिनियम की धारा 24 में कहा गया है कि लिमिटेशन एक्ट के प्रावधान " ट्रिब्यूनल के लिए किए गए आवेदन" पर लागू होते हैं।
दरअसल अधिनियम की धारा 2 (बी) अधिनियम की धारा 19 के तहत किए गए किसी आवेदन के रूप में एक "आवेदन" को परिभाषित करता है, जो एक मूल आवेदन है। पुनर्विचार के लिए आवेदन धारा 19 के तहत नहीं बल्कि धारा 22 (2) (ई) के अनुसार ऋण वसूली न्यायाधिकरण (प्रक्रिया) नियम, 1993 के नियम 5 ए के तहत दायर किया जाता है।
इस आधार पर पीठ ने कहा,
"यह स्पष्ट है कि पुनर्विचार के लिए एक आवेदन को संभवतः अधिनियम के प्रावधानों के सरसरी तौर पर पढ़ने पर धारा 19 के तहत दायर एक आवेदन नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि यह धारा 22 (2) (ई) के साथ नियम 5 की उत्पत्ति का पता लगाता है। "
"ऐसे आवेदन (नियम 5 ए के तहत दायर) ऋणों की वसूली के लिए नहीं हैं, बल्कि केवल धारा 19 के तहत दायर एक आवेदन में दिए गए निर्णय में रिकॉर्ड पर स्पष्ट त्रुटियों को सही करने के लिए आवेदन हैं।"
पीठ ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में इंटरनेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम एल्ड्रिच फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड और अन्य के आधिकारिक परिसमापक के फैसले को भी लागू किया जिसमें कहा गया था कि डीआरटी अपील में देरी माफ नहीं कर सकता है।
"इस न्यायालय का निर्णय इसे सामान्य बनाता है, हालांकि थोड़े अलग संदर्भ में, कि केवल एकमात्र आवेदन जिसे आरडीबी अधिनियम की धारा 24 द्वारा संदर्भित किया गया है, धारा 19 के तहत दायर एक आवेदन है और कुछ अन्य नहीं। पुनर्विचार आवेदन के लिए, धारा 19 के तहत आवेदन नहीं किया जा रहा है बल्कि नियम 5 ए के साथ धारा 22 (2) (ई) के तहत एक आवेदन का यह निर्णय (इंटरनेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड मामला) सभी चारों मामलों पर लागू होगा जो RDB अधिनियम की धारा 24 के दायरे से आए आवेदनों पर पुनर्विचार करते हैं।"
नियम 5 ए की प्रतिगामी भाषा यह भी स्पष्ट करेगी कि 30 दिनों से ज्यादा देरी को माफ करने के लिए कोई शक्ति नहीं है, पीठ ने नोट किया।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट एक रिट याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा था, जिसके तहत उसने देरी के आधार पर एक पुनर्विचार आवेदन को खारिज करने के DRT के आदेश को रद्द कर दिया था।
हाईकोर्ट ने कहा था कि इंटरनेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड के मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय केवल अपीलों तक ही सीमित है और DRT के पास पुनर्विचार आवेदन दाखिल करने में देरी माफ करने की शक्ति है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के दृष्टिकोण को गलत माना।