डॉ. आंबेडकर ने भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में संस्कृत का प्रस्ताव रखा था: सीजेआई शरद अरविंद बोबड़े

LiveLaw News Network

15 April 2021 11:05 AM IST

  • डॉ. आंबेडकर ने भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में संस्कृत का प्रस्ताव रखा था: सीजेआई शरद अरविंद बोबड़े

    भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े ने बुधवार को कहा कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने संस्कृत को भारत संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में प्रस्तावित किया था क्योंकि वे भाषाओं को लेकर होने वाले विवाद से अवगत थे।

    सीजेआई बोबड़े ने महाराष्ट्र में महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (MNLU) के शैक्षणिक भवन के उद्घाटन समारोह में कहा कि डॉ. आंबेडकर लोगों की सामाजिक और राजनीतिक जरूरतों को समझते थे।

    सीजेआई बोबड़े ने कहा कि,

    "डॉ. आंबेडकर ने भाषा के मुद्दे पर एक प्रस्ताव पेश किया, जिस पर कुछ मुल्लों, पुजारियों और स्वंय डॉ. आंबेडकर ने हस्ताक्षर किए थे। मैं यह नहीं जानता कि प्रस्ताव प्रस्तावित किया गया था या नहीं, लेकिन यह संस्कृत को भारत संघ का आधिकारिक भाषा बनाना था। यह प्रस्ताव अंततः प्रस्तावित नहीं हुआ।"

    सीजेआई बोबड़े ने डॉ. आंबेडकर की 130 वीं जयंती के अवसर पर कहा कि न्यायविद को पता है कि गरीब क्या चाहते हैं। उत्तर भारतीयों ने तमिल का उसी तरह विरोध किया, जिस तरह से दक्षिण भारतीय ने हिंदी का किया। हालांकि डॉ. आंबेडकर ने यह समझा कि संस्कृत को दोनों क्षेत्र शांति से अपना लेंगे।

    सीजेआई ने अपना भाषाण अंग्रेजी में पूरा किया, यह देखते हुए कि अंग्रेजी को पूरे देश ने स्वीकार किया है।

    सीजेआई बोबड़े और न्यायमूर्ति बीआर गवई कार्यक्रम में फिजिकल रूप में उपस्थिति थे और इसके अलावा विश्वविद्यालय के चांसलर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, केंद्रीय मंत्री और नागपुर के सांसद नितिन गडकरी और विपक्षी नेता देवेंद्र फडणवीस और अन्य ने इस कार्यक्रम में वर्चुअल मोड में भाग लिया।

    इस समारोह में बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता भी मौजूद थे।

    महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि कॉर्पोरेट्स के लिए अपनी शिक्षा का उपयोग न करें, इसका उपयोग गरीबों के लिए करें।

    सीएम ठाकरे ने अपने संबोधन में विश्वविद्यालय के भावी स्नातकों से कॉर्पोरेट दिग्गजों के साथ जुड़ने के बजाय दलितों के अधिकारों के लिए लड़ने का आग्रह किया।

    सीएम ठाकरे ने कहा कि,

    "मैं उन छात्रों से भी अनुरोध करूंगा जो इस विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद सफल होंगे, वे जितना चाहें उतना बड़ा बन सकते हैं, लेकिन आप लोगों को उन लोगों की जरूरतों को याद रखना चाहिए जिन्हें किसी भी तरह का विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हैं।"

    सीएम ठाकरे ने विश्वविद्यालय के शिक्षकों की तुलना देवता के मूर्तिकार से की। उन्होंने आगे कहा कि एक मूर्तिकार यह ध्यान में रखते हुए प्रयास करता है कि उसकी रचना उस देवता के अनुयायियों द्वारा श्रद्धा रखने वाली है। शिक्षकों को शिक्षण के दौरान इसे ध्यान में रखना होगा।

    सीएम ठाकरे ने आगे कहा कि सरकार या राज्य के सीएम, जहां तक अदालतों या उसके संस्थानों का सवाल है, राज्य सरकार अतीत में और भविष्य में भी वह हमेशा इसका सम्मान करेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि हम ऐसे लोग हैं जो कानून के शासन का सम्मान करते हैं और गरीबों के लिए न्याय करने में विश्वास रखते हैं।

    विश्वविद्यालय के बारे में

    साल 2016 में नागपुर में महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के निर्माण लिए साठ एकड़ जमीन निर्धारित की गई। यह देश का उन्नीसवां नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी है। विश्वविद्यालय का निर्माण तीन फेज में हुआ। पहले फेज में एक छात्रावास, प्रशासनिक विंग, मेस, स्टाफ क्वार्टर और मेन गेट शामिल है। इसका निर्माण जल्द ही पूरा होने की संभावना है।

    पाठ्यक्रम

    सीजेआई बोबड़े ने विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों के बारे में कहा कि यह अपनी तरह का पहला विश्वविद्यालय होगा जो विशेष रूप से अधिक-से-अधिक न्यायाधीश बनाने के उद्देश्य से होगा। मुझे इस विश्वविद्यालय के बारे में दो अनूठी बातों का उल्लेख करना चाहिए। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की तर्ज पर जो न केवल सैनिकों बल्कि अधिकारी भी बनाता है। इसी तरह विश्वविद्यालय भी न सिर्फ अधिवक्ता बल्कि न्यायाधीशों का भी निर्माण करेगा।

    सीजेआई बोबड़े ने कहा कि प्राचीन भारतीय पाठ में 'न्याय शास्त्र' पर पाठ्यक्रम है। इस पाठ्यक्रम को एक साथ रखना मुश्किल है क्योंकि पूरी सामग्री संस्कृत में है। जब मैंने 'न्याय शास्त्र' पर लिखीं पाठ्यपुस्तकों को देखा तो पाया कि भारतीय सिस्टम किसी भी तरह से एरिस्टोटेलियन सिस्टम से कमतर नहीं है।

    सीजेआई बोबड़े ने कहा कि,

    "मुझे कोई कारण नहीं दिखता कि हमें अपने पूर्वजों की प्रतिभाओं को त्यागना या अनदेखा करना चाहिए और लाभ नहीं उठाना चाहिए।"

    सीजेआई बोबड़े 23 अप्रैल को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। उन्होंने कहा कि लॉ स्कूल वह नर्सरी है जहां से कानूनी पेशेवर और न्यायाधीशों की फसल उगती है। महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (MNLU) के साथ कई लोगों के सपने सच हो गए हैं।

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