घर घर राशन वितरण योजना : सुप्रीम कोर्ट ने योजना के खिलाफ केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई से इनकार किया कहा, मामला हाईकोर्ट में लंबित

LiveLaw News Network

15 Nov 2021 5:02 PM IST

  • घर घर राशन वितरण योजना : सुप्रीम कोर्ट ने योजना के खिलाफ केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई से इनकार किया कहा, मामला हाईकोर्ट में लंबित

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट के 27 सितंबर के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर विचार करने से इनकार कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार की घर घर राशन वितरण योजना (डोस स्टेप राशन डिलीवरी स्कीम) के कार्यान्वयन का मार्ग प्रशस्त किया, जिसके खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

    न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने इस तथ्य के संबंध में याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया कि आक्षेपित आदेश एक अंतरिम आदेश है और यह मामला 22 नवंबर को दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष रखा गया है।

    पीठ ने आदेश में कहा,

    "... हम एसएलपी पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं, क्योंकि मामला हाईकोर्ट में लंबित है।"

    पीठ ने हाईकोर्ट से 22 नवंबर को ही मामले का फैसला करने का अनुरोध करते हुए मामले का निपटारा कर दिया। पीठ ने आदेश में यह भी दर्ज किया कि कोई भी पक्ष स्थगन की मांग नहीं करेगा।

    राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (Government of National Capital Territory of Delhi)की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रस्तुत किया कि योजना की तैयारी प्रगति पर है और इसे एक सप्ताह के भीतर लागू किया जाएगा। पीठ ने इस दलील को आदेश में दर्ज किया।

    कोर्ट ने उचित मूल्य की दुकान के डीलरों के एक संगठन द्वारा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका का भी इसी तरह से निपटारा किया।

    कोर्ट रूम एक्सचेंज

    भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तुत किया कि दिल्ली सरकार की डोरस्टेप डिलीवरी योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के प्रावधानों के खिलाफ है।

    एसजी ने कहा,

    "इस मामले के व्यापक प्रभाव हैं। हमारे पास राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम है जो खाद्यान्न के वितरण के लिए प्रदान करता है। व्यापक प्रश्न यह है कि क्या राज्य सरकार अधिनियम द्वारा निर्धारित वितरण के तरीके से विचलित हो सकती है।"

    एसजी ने बताया कि एनएफएसए के अनुसार, केंद्र द्वारा उचित मूल्य की दुकानों को खाद्यान्न आवंटित किया जाता है, जहां से लाभार्थी खाद्यान्न एकत्र करेंगे। एफपीएस डीलरों का चयन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है और वे आवश्यक वस्तु अधिनियम और अन्य कानूनों के नियंत्रण में काम करते हैं। एसजी ने कहा कि दिल्ली सरकार जो करने का प्रस्ताव कर रही है, वह निजी एजेंटों का चयन करना है, जो लाभार्थियों के दरवाजे तक खाद्यान्न पहुंचाएंगे।

    एसजी ने कहा,

    "जीएनसीटीडी का कहना है कि निजी एजेंटों को अनाज की आपूर्ति की जाएगी। वे अनाज को आटे में बदल देंगे और लोगों को इसकी आपूर्ति करेंगे। अब हम नहीं जानते कि वे कितनी आपूर्ति करेंगे।"

    इस बिंदु पर पीठ ने पूछा कि ये तर्क दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष क्यों नहीं उठाए जा सकते, जिसके समक्ष यह मामला 22 नवंबर को सूचीबद्ध है।

    एसजी ने जवाब दिया कि आदेश का "विनाशकारी प्रभाव" है और कहा कि इसके संचालन पर रोक लगाने की सख्त जरूरत है। उन्होंने जोर देकर कहा कि दिल्ली सरकार की योजना "एक राष्ट्र एक राशन कार्ड योजना" को बाधित कर सकती है, क्योंकि यह सत्यापित करने का कोई साधन नहीं है कि दिल्ली में एक प्रवासी व्यक्ति ने घर पर डिलीवरी के माध्यम से कितनी मात्रा राशन का लाभ उठाया है।

    केंद्र सरकार के शीर्ष कानून अधिकारी ने बताया कि एनएफएसए द्वारा डोरस्टेप डिलीवरी की अनुमति नहीं है। इसे केवल अधिनियम में संशोधन के माध्यम से अनुमति दी जा सकती है, और यह दिल्ली सरकार द्वारा जारी एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से संभव नहीं है। एफपीएस इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क के तहत रजिस्टर्ड हैं और वे वैधानिक अधिकारियों की निगरानी में हैं। दिल्ली सरकार की योजना इस तंत्र को बाधित करेगी।

    एसजी ने कहा,

    "निजी एजेंसियां ​​घर-घर राशन बांट रही हैं, कितनी मात्रा है, कौन सी गुणवत्ता..कोई नहीं जानता..कोई जवाबदेही नहीं है।"

    न्यायमूर्ति नागेश्वर राव ने इस बिंदु पर हस्तक्षेप किया,

    "इस अंतरिम आदेश से कौन प्रभावित है? उचित मूल्य की दुकान के डीलर। एक सप्ताह के भीतर क्या होने जा रहा है? आप हाईकोर्ट के समक्ष बहस क्यों नहीं कर सकते? हम अंतरिम आदेश के खिलाफ आपको क्यों सुनें?"

    एसजी ने कहा,

    "कृपया यह न मानें कि हम उचित मूल्य की दुकान के डीलरों की ओर से हैं। हम अधिनियम का बचाव कर रहे हैं। हाईकोर्ट कुछ ऐसा करने की अनुमति देता है, जिसे अधिनियम प्रतिबंधित करता है। अधिनियम केवल विकलांग लोगों को घर पर डिलीवरी की अनुमति देता है। मुझे दुकान के डीलरों से कोई कोई सरोकार नहीं है, लेकिन मुझे अधिनियम की चिंता है। उन लाखों कूड़ा बीनने वालों, रिक्शा चालकों, प्रवासी श्रमिकों, झुग्गीवासियों का क्या जिनका कोई स्थायी पता नहीं है, उनका क्या होगा? मैं उनका प्रतिनिधित्व करता हूं।"

    एसजी ने आग्रह किया,

    "यह एक अखिल भारतीय मुद्दा होने जा रहा है, जिसका जवाब इस अदालत को देने की जरूरत है। इसे यह कहकर तुच्छ नहीं जाना चाहिए कि यह एक अंतरिम आदेश के खिलाफ है।"

    इसके बाद पीठ ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी से आदेश के क्रियान्वयन की स्थिति के बारे में पूछा।

    सिंघवी ने शुरू में कहा कि हाईकोर्ट के समक्ष रिट भारत सरकार द्वारा नहीं, बल्कि दुकानदारों के एक संगठन द्वारा प्रस्तुत की गई है।

    दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश

    दिल्ली हाईकोर्ट ने 27 सितंबर, 2021 को दिल्ली सरकार को उचित मूल्य की दुकानों की आपूर्ति में उन लोगों की सीमा तक कटौती करने की अनुमति दी थी, जिन्होंने डोर स्टेप डिलीवरी का विकल्प चुना है।

    कोर्ट ने यह देखते हुए आदेश पारित किया कि "भारी संख्या में लोगों" ने डोर स्टेप डिलीवरी का विकल्प चुना है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह सभी उचित मूल्य के दुकानदारों को उन लोगों के बारे में जानकारी दे, जिन्होंने उनके घर पर राशन प्राप्त करने का विकल्प चुना है।

    जस्टिस विपिन सांघी और जसमीत सिंह की पीठ ने स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया के बाद ही ऐसे उचित मूल्य के दुकानदारों को राशन की आपूर्ति करने की आवश्यकता नहीं है। बेंच द्वारा 22 मार्च, 2021 के अपने पहले के आदेश को संशोधित करने के बाद यह प्रगति हुई है, जिसमें कोर्ट ने दिल्ली सरकार को दिल्ली सरकारी राशन डीलर्स संघ, दिल्ली के सदस्यों को खाद्यान्न या आटे की आपूर्ति को रोकने या कम नहीं करने का निर्देश दिया था।

    कोर्ट ने दिल्ली सरकार के बयान को भी रिकॉर्ड पर लिया कि पीडीएस योजना के तहत लाभार्थी, जो दरवाजे पर राशन वितरण का विकल्प चुनते हैं, उनके पास एक बार फिर से बाहर निकलने और उचित मूल्य की दुकानों से राशन लेने का विकल्प होगा। केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार की इस योजना पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि इसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून में संशोधन किए बिना लागू नहीं किया जा सकता है।

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