न्याय के मंदिर का दरवाजा कभी भी बंद नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

13 July 2020 5:22 AM GMT

  • न्याय के मंदिर का दरवाजा कभी भी बंद नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट

    "न्याय के मंदिर का दरवाजा कभी भी बंद नहीं किया जा सकता,"उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) को ऑनलाइन सुनवाई का कोई रास्ता अख्तियार करने की सलाह देते हुए की। एनसीएलएटी में कामकाज निलंबित है।

    न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ उस विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि उनके मुवक्किल ने मुंबई स्थित राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के आदेश के खिलाफ एनसीएलएटी में अपील दायर की है, लेकिन अपीलीय न्यायाधिकरण ने अपने एक कर्मचारी के कोरोना से संक्रमित होने के कारण सुनवाई निलंबित कर दी है।

    बेंच ने उपरोक्त टिप्पणी के साथ एसएलपी खारिज करते हुए कहा,

    "हम एनसीएलएटी से आग्रह करते हैं कि वह कामकाज फिर से शुरू होने के तुरंत बाद अंतरिम रोक के मामले में सुनवाई प्रारंभ करे।"

    न्यायालय ने 'मैसर्स मराठे हॉस्पिटैलिटी बनाम महेश सुरेखा' एसएलपी का यह कहते हुए निपटारा कर दिया कि एनसीएलएटी को ऑनलाइन सुनवाई का कोई तरीका ढूंढना चाहिए था।

    उल्लेखनीय है कि अपीलकर्ता ने एनसीएलटी, मुंबई के आदेश को एनसीएलएटी में चुनौती दी है, लेकिन गत दो जुलाई से वहां न्यायिक कार्य निलंबित कर दिया गया है। जिसके बाद मराठे हॉस्पिटैलिटी ने शीर्ष अदालत का रुख किया था।

    गौरतलब है कि एनसीएलएटी का एक कर्मचारी 26 जून को COVID-19 की जांच में पॉजिटिव पाया गया था। तत्पश्चात, इसके कार्यकारी अध्यक्ष, सदस्यों, रजिस्ट्री के अधिकारियों और कर्मचारियों को कोरोना की जांच से गुजरना पड़ा था।

    एनसीएलएटी ने गत दो जुलाई को एक नोटिस जारी करके सूचित किया था कि कोर्ट कार्य (वर्चुअल सुनवाई) और फाइलिंग आदि 10 जुलाई तक निलंबित रहेंगे। इसने यह भी सूचित किया था कि अध्यक्ष कोर्ट और कोर्ट-II में छह जुलाई से 10 जुलाई तक सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई नहीं हो पायेगी।

    गत 26 जून को कर्मचारी के कोरोना पॉजिटिव पाये जाने की घटना से पहले एनसीएलएटी गत एक जून से अर्जेंट मामलों की सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये करता रहा था। इसने वर्चुअल माध्यम से सुनवाई के लिए मामलों की मेंशनिंग को लेकर वकीलों/ अधिकृत प्रतिनिधियों/ पार्टी-इन-पर्सन के वास्ते मानक परिचालन प्रक्रिया (एसओपी) भी जारी किया था।

    केस का नाम : मेसर्स मराठे हॉस्पिटैलिटी बनाम महेश सुरेखा

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