महिला के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कठिन चुनौती, Abortion संबंधी बहस को 'प्रो-लाइफ बनाम प्रो-चॉइस' के रूप में ध्रुवीकृत न करें: जस्टिस बीवी नागरत्ना
Shahadat
1 April 2024 9:26 AM IST
जस्टिस नागरत्ना ने शनिवार (30 मार्च) को एक कार्यक्रम में बोलते हुए महिला की शारीरिक स्वायत्तता और गर्भपात (Abortion) विरोधी भावनाओं के विचार के इर्द-गिर्द घूमती समकालीन बहस को संबोधित किया। उन्होंने बताया कि कैसे बहस को 'प्रो-लाइफ बनाम प्रो-चॉइस' के रूप में ध्रुवीकृत करने के बजाय, किसी को उस मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और मेडिकल उथल-पुथल के प्रति सचेत रहना होगा, जिसका सामना महिला तब करती है, जब वह अपनी प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने का निर्णय लेती है।
सुप्रीम कोर्ट जज ने प्रो-लाइफ बनाम प्रो-चॉइस विचारधाराओं के बीच संघर्ष को रेखांकित करने के लिए एक्सवाईजेड बनाम गुजरात राज्य के फैसले का उल्लेख किया। उक्त मामले में जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस भुइयां की खंडपीठ ने कहा कि बलात्कार पीड़िता को अपराध के परिणामस्वरूप बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर करना संवैधानिक दर्शन का उल्लंघन होगा।
यह मामला गुजरात के दूरदराज के गांव की आदिवासी महिला से संबंधित था, जिसके साथ शादी के झूठे बहाने के तहत कथित तौर पर बलात्कार किया था। 26 सप्ताह की उम्र में उसने अपनी प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की अनुमति के लिए हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की, लेकिन मेडिकल बोर्ड की अनुकूल राय के बावजूद कोई राहत नहीं दी गई। अपील में सुप्रीम कोर्ट ने प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की याचिका यह कहते हुए स्वीकार कर ली कि इस तरह की प्रेग्नेंसी से महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
यह याद करते हुए कि कैसे उक्त फैसले ने महिलाओं के गर्भपात अधिकारों पर बहस छेड़ दी, जस्टिस नागरत्ना ने बहस को दो कट्टरपंथी विपरीत यानी प्रो-लाइफ और प्रो-चॉइस के रूप में ध्रुवीकृत करने के प्रति आगाह किया।
उन्होंने कहा,
"प्रो-लाइफ और प्रो-चॉइस के संबंध में बहस छिड़ गई। मैं इसके बारे में ज्यादा बात नहीं करना चाहूंगा, लेकिन मैं केवल इतना कहूंगा कि हमें बहस को प्रो-लाइफ और प्रो-चॉइस के रूप में ध्रुवीकृत नहीं करना चाहिए।"
जस्टिस नागरत्ना ने इस मुद्दे को सहानुभूति के नजरिए से देखने और महिला को अपनी प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने का निर्णय लेने में होने वाली गहन जटिलताओं और मनोवैज्ञानिक उथल-पुथल को समझने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। चाहे टर्मिनेट के कारण मेडिकल हों या व्यक्तिगत, महिला को इस तरह के निर्णय को सहन करने के लिए बहुत अधिक मानसिक शक्ति की आवश्यकता होती है।
उन्होंने कहा,
"महिला के लिए अपनी प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करना बहुत ही कठिन निर्णय है। भले ही कोई मेडिकल कारण हो, उसे मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार रहना होगा... महिला को Abortion के निर्णय पर पहुंचने में समय लगता है।"
पिछले साल, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने विवाहित महिला की 26 सप्ताह की अनियोजित प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की अनुमति देने पर खंडित फैसला सुनाया था।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अवांछित गर्भधारण, चाहे परिवार नियोजन में विफलता के कारण हो, या यौन उत्पीड़न के कारण, एक ही परिणाम होता है। चूंकि महिला प्रेग्नेंसी जारी रखने की इच्छुक नहीं है, इसलिए भ्रूण व्यवहार्य है या नहीं, यह अप्रासंगिक विचार है।
जस्टिस नागरत्ना ने इसके साथ ही देश को अपने संवैधानिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए मार्गदर्शन करने में सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण भूमिका पर अपना सकारात्मक दृष्टिकोण साझा किया। वह ऐसे भविष्य की आशा करती है जिसमें अदालत संयुक्त इकाई होने के नाते आने वाली पीढ़ियों की सेवा के लिए संविधान में निर्धारित मूल्यों को संरक्षित करने के लिए समर्पित रहेगी।
उन्होंने इस संबंध में कहा,
"मुझे विश्वास है कि आने वाले दशकों में सुप्रीम कोर्ट समग्र संस्था के रूप में हम भारत के लोगों की सेवा करेगा और हमारे संवैधानिक भाग्य की ओर न्याय के रथ को आगे बढ़ाएगा। ऐसा होने के लिए हमें सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करना होगा।“