'लॉ स्कूल में प्रवेश लेने से पहले ही भेदभाव शुरू हो जाता है'- जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा- लॉ एंट्रेंस एग्जाम केवल अंग्रेजी में ही क्यों होती है?

LiveLaw News Network

15 April 2021 1:50 PM GMT

  • लॉ स्कूल में प्रवेश लेने से पहले ही भेदभाव शुरू हो जाता है- जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा- लॉ एंट्रेंस एग्जाम केवल अंग्रेजी में ही क्यों होती है?

    सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने बुधवार को कहा कि,

    "लॉ स्कूल में प्रवेश लेने से पहले ही भेदभाव शुरू हो जाता है। अधिकांश शीर्ष लॉ स्कूल पांच साल के इंटीग्रेटेड लॉ कोर्स के लिए एक प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन करते हैं, इसी के आधार पर स्टूडेंट्स को लॉ स्कूल में प्रवेश मिलता है। हालांकि यह परीक्षा केवल अंग्रेजी होती है इसके अलावा अंग्रेजी भाषा का भी एक अलग से टेस्ट लिया जाता है।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि,

    "इसका परिणाम यह होता है कि केवल उच्च-गुणवत्ता वाली अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा प्राप्त करने वाले विशेषाधिकार प्राप्त छात्र ही यह परीक्षा आसानी से पास कर लेते हैं, जबकि वंचित छात्र जिनकी पूर्व शिक्षा राष्ट्रीय या क्षेत्रीय भाषाओं में हुई है और जो न्यायिक सेवाओं में प्रवेश करने की आकांक्षा रखते हैं वे इन संस्थानों में प्रवेश से वंचित रह जाते हैं। इसके साथ ये नेशनल लॉ स्कूल उन उम्मीदवारों को भी प्रवेश देने से इंकार कर देते हैं जो प्राइवेट लीगल फर्मों में प्लेसमेंट पाने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं। यह न्यायपालिका में शामिल होने वालों के कानूनी शिक्षा का परिणाम है।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ शिक्षा और रोजगार में भेदभाव के उन्मूलन के बनी कम्युनिटी (सीईडीई) की वर्चुअल लॉन्च इवेंट में उपस्थित वकीलों, लॉ फर्मों, न्यायाधीशों और अन्य संगठनों और व्यक्तियों के बीच बोल रहे थे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने भारतीय कानूनी पेशे को सुधारने के लिए कुछ चीजों का जिक्र किया।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि पिछले साल तक CLAT परीक्षा में कुछ तार्किक प्रश्न शामिल थे, जिन्हें सॉल्व करने के लिए दृष्टि की आवश्यकता होती है। यह नेत्रहीन उम्मीदवारों के खिलाफ भेदभाव करता है। हालांकि नेशनल लॉ स्कूल के कंसोर्टियम ने अब यह आश्वासन दिया है कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा। हमें लॉ स्कूल की तरफ से दिए गए आवश्वासन के पूरे होने का इंतजार है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि,

    "यहां तक कि अगर कोई छात्र इस परीक्षा को पास करता है तो माध्यमिक ग्रेडिंग शुरू होता है, जिसमें लॉ स्कूल का सिलेक्शन करना होता है। विभिन्न लॉ स्कूलों में एक वास्तविक और कथित पूर्वाग्रह है कि शीर्ष स्तरीय नेशनल लॉ विश्वविद्यालयों के लॉ छात्रों को उनके अनुसार बेहतर माना जाता है। लेकिन ये संस्थान महंगे हैं और छात्रवृत्ति या यहां तक कि लोन आधारित छात्रवृत्ति से भी पूरी नहीं हो सकती है। इसलिए 18 वर्षीय एक परीक्षा एक अंतर उपचार का साधन बन जाती है, जिसके परिणाम उनके स्कूल के अनुभव और जीवन पर पड़ते हैं।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि लॉ स्कूल तीसरा ग्रेडेशन जो निर्धारित करता है कि कौन से छात्र कामयाब होते हैं और सफल होते हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि दलित, आदिवासी और अन्य हाशिए पर रहने वाले छात्र अक्सर न केवल अकादमिक ग्रेड के मामले में अपेक्षाकृत पिछड़ जाते हैं बल्कि मूट, बहस और इंटर्नशिप जैसी अन्य पाठ्येतर गतिविधियां में भी पिछड़ा हुआ पाया जाता है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि,

    "इसके लिए जो स्पष्टीकरण सबसे अधिक दिया जाता है वह यह है कि वे लोगो दबाव के कठिन परिस्थितियों को ठीक से सामना नहीं कर रहे हैं। सच्चाई से आगे कुछ भी नहीं हो सकता है! तथ्य यह है कि उनके समकक्षों को प्राकृतिक विशेषाधिकार प्राप्त है। यहां तक कि प्रशिक्षण और मेंटरशिप की भी मिलती है और इसके विपरीत पिछड़े छात्रों को पर्याप्त फैकेल्टी समर्थन भी नहीं मिल रहा है। वे प्रकाशन और अनुसंधान सहायता से वंचित हैं। इंटर्नशिप अक्सर टियर 1 शहरों में होती है और इस इंटर्नशिप के दौरान जीवन व्यापने के लिए स्टाइपेंड तक नहीं दिया जाता है। इन सब वजहों से पिछड़े वर्ग के छात्र इन अवसरों का लाभ नहीं उठा पाते हैं।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने चौथे ग्रेडेशन का जिक्र किया जो लॉ स्कूल के बाद नौकरी का स्टेज है। हाशिए पर डाले दिए गए समुदाय से आने वाले छात्रों को लीगल फर्मों में अपर्याप्त रूप से प्रस्तुत किया जाता है। यहां तक कि अधिवक्ताओं / वरिष्ठ अधिवक्ताओं के चेंबर में नौकरी विशेषाधिकार प्राप्त नेटवर्क के माध्यम से मिलती है और जिन छात्रों का परिवार कानूनी पेशे से पहले से जुड़ा हुआ है उन्हें तो और अधिक लाभ मिलता है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि,

    "23-25 साल का एक वकील जो अपने करियर के प्रारंभ चरण में है, पहले ही उसके मन में चौथा ग्रेडेशन (नौकरी) खटखटता है। इसमें उसकी कोई गलती नहीं है।"

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