सरकार के आदेश के बावजूद प्रवासी मज़दूरों को ठेकेदार पूरा भुगतान नहीं कर रहे हैं : हर्ष मंदर ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

LiveLaw News Network

2 April 2020 1:56 PM GMT

  • सरकार के आदेश के बावजूद प्रवासी मज़दूरों को ठेकेदार पूरा भुगतान नहीं कर रहे हैं : हर्ष मंदर ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

    सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने सुप्रीम कोर्ट में एक अतिरिक्त हलफनामा दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि सरकार द्वारा दिए गए आदेशों के बावजूद कई प्रवासी श्रमिक अभी भी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।

    उन्होंने कहा कि सरकारों के आदेश के बावजूद कि ठेकेदारों को इन श्रमिकों को पूरी मजदूरी का भुगतान करना होगा, ठेकेदार मज़दूरों को कम भुगतान कर रहे हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार के आदेशों के बाद भी पिछले दो दिनों में बहुत बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों को उनके आवास से बाहर निकाल दिया गया।

    अतिरिक्त हलफनामा मंदर और कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज द्वारा दायर याचिका में दिया गया है, जिसमें लॉकडाउन की अवधि के दौरान प्रवासी श्रमिकों के लिए राहत के उपाय की मांग की गई है।

    इस याचिका में कहा गया है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा दिया गया लॉकडाउन का आदेश इस समान आपदा से प्रभावित नागरिकों के बीच मनमाने ढंग से भेदभाव कर रहा है।

    याचिका में कहा गया है कि

    ''हालांकि यह सैद्धांतिक रूप से यह सुनिश्चित करता है कि आपदा के कारण काम करने वाले श्रमिकों को वेतन का कोई नुकसान नहीं होगा, परंतु इसमें स्व-नियोजित दैनिक वेतनभोगियों (प्रवासियों या अन्यथा) की आजीविका के नुकसान के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है, जबकि यह सभी लोग भी उसी आपदा से प्रभावित होते हैं और उसी कष्ट को झेलते हैं।''

    यह भी कहा गया है कि ''यह आदेश उन श्रमिकों की मजदूरी के भुगतान के लिए भी कोई प्रावधान नहीं करता है जो पहले से ही पलायन कर चुके हैं (राज्य के अंदर या राज्य से बाहर दूसरे राज्य में) और अपने 'काम के स्थान पर' मजदूरी लेने के लिए नहीं आ सकते, क्योंकि उनको 14 दिन के अनिवार्य क्वारनटाइन में रखा गया है।''

    याचिकाकर्ताओं ने बताया है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, केंद्र और राज्य सरकारों को आपदाओं के प्रभावों से निपटने और उन्हें कम करने के लिए एक विस्तृत योजना और सिस्टम तैयार करने के लिए बाध्य करता है, जिसमें आपदाओं के पीड़ितों की मदद के लिए आवश्यक कदम उठाना शामिल है जो योजना के अनुसार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हो सकते हैं।

    इस प्रकार, राज्य और केंद्र,दोनों सरकारों का यह कर्तव्य बनता है कि वे उन सभी प्रवासियों को संयुक्त रूप से या अलग-अलग मजदूरी/न्यूनतम मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करें, जो COVID-19 आपदा के अप्रत्यक्ष शिकार हैं।

    याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि सरकार ने इन प्रवासी श्रमिकों के जीवन की रक्षा करने में जो निष्क्रियता दिखाई है उसने ''अभूतपूर्व मानवीय संकट'' के दौरान इन श्रमियों को अपने गांवों में वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया है,जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत उनके जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।

    याचिका में कहा गया है कि ''यह आदेश उन कठोर वास्तविकताओं को नजरअंदाज करता है जिनका सामना यह श्रमिक शहरों में लगातार करते हैं, जो उस समय और जटिल हो गई हैं जब एक लॉकडाउन के आदेश ने उनको उनकी नौकरी, दैनिक मजदूरी और जीवित रहने के साधनों से ही वंचित कर दिया है। इस प्रकार यह आदेश उनके अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन करता है।''

    31 मार्च को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मज़दूर मामले में कहा था कि

    "कंट्रोल रूम से प्राप्त विवरण के अनुसार… प्रवासी श्रमिकों के लिए केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा 21,064 राहत शिविर पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं, जिसमें वे आवश्यकता के अनुसार भोजन, आश्रय और चिकित्सा सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं। लगभग 6,66,291 व्यक्तियों को आश्रय प्रदान किया गया है और 22,88,279 व्यक्तियों को भोजन उपलब्ध कराया गया है।"

    मंदर का कहना है कि इन संख्याओं को सही मानते हुए भी, अकेले दिल्ली में प्रवासी श्रमिकों की संख्या (अनुमानित 1.5 मिलियन) है।

    विभिन्न प्रेस रिपोर्टों का उल्लेख करते हुए, उन्होंने कहा कि इनमें से कई प्रवासी श्रमिक अभी भी उन शहरों में हैं जहां वे काम करते हैं, लेकिन काम करने के साधनों, मजदूरी, पैसे से वंचित हैं और उन तक भोजन पहुंचना भी मुश्किल हो रहा है।

    हलफनामा पढ़ें



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