आईटी एक्ट की धारा 143(1-ए) के तहत अतिरिक्त कर की मांग तभी की जा सकती है जब करदाता ने जानबूझकर टैक्स चुराया हो: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

22 March 2020 5:00 AM GMT

  • आईटी एक्ट की धारा 143(1-ए) के तहत अतिरिक्त कर की मांग तभी की जा सकती है जब करदाता ने जानबूझकर टैक्स चुराया हो: सुप्रीम कोर्ट

    “जिस उद्देश्य से कर अधिनियम को लागू किया गया है, उसे विफल नहीं होने दिया जा सकता।”

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आयकर अधिनियम की धारा 143(1ए) केवल तभी लगाई जा सकती है जब करदाता टैक्स से बचने के प्रयास के तहत आयकर रिटर्न में कम आय दिखाता हो।

    इस अपील में यह दलील दी गयी थी कि आयकर कानून की धारा 143(1ए) के तहत लगाया गया 20 प्रतिशत अतिरिक्त टैक्स जुर्माना है और यह तभी थोपा जा सकता है जब करदाता ने जानबूझकर गलत रिटर्न भरा हो। यह भी दलील दी गयी थी कि इस तरह के अतिरिक्त टैक्स केवल उस स्थिति में ही भरने योग्य हो सकते हैं जहां करदाता के आय की गणना टैक्स भरने के उद्देश्य से की गयी हो। इसे तब नहीं लगाया जा सकता जब आय न हुई हो या घाटा हुआ हो। करदाता के अनुसार, इस मामले में अनजाने में हुई गलती के कारण उसने रिटर्न में सौ फीसदी मूल्यह़्रास का दावा किया था।

    न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति मोहन एम. शांतनगौदर की खंडपीठ ने कहा कि

    'आयकर आयुक्त गौहाटी बनाम सती ऑयल उद्योग लिमिटेड एवं अन्य (2015)7 एससीसी 304' मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 143(1ए) के प्रावधानों, उद्देश्य एवं वैधता पर विचार किया था। वित्त अधिनियम 1993 में शामिल आयकर अधिनियम की धारा 143 (1ए) की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर बरकरार रखा गया था कि धारा 143(1ए) तभी लागू किया जा सकता जब यह पता चले कि करदाता ने कर से बचने के लिए आय के निर्धारण में गड़बड़ी की हो और गड़बड़ रिटर्न भरा हो।

    इस मामले के तथ्यों एवं रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए पीठ ने व्यवस्था दी कि धारा 143(1ए) का यंत्रवत् इस्तेमाल किया जाता है। यह सच है कि टैक्स विधान की व्याख्या करते समय परिणामों और कठिनाई पर ध्यान नहीं दिया जाता है, लेकिन जिस उद्देश्य से कर कानून बनाए गए हैं उसे विफल नहीं किया जा सकता।

    इस कोर्ट ने धारा 143(1ए), उसके विषय एवं उद्देश्यों को विचार करते हुए और इस प्रावधान को सही ठहराते हुए कहा कि करदाता द्वारा कर चोरी के प्रयास का आरोप साबित करने का दारोमदार राजस्व विभाग पर है, जो तथ्यों और परिस्थितियों से यह साबित कर सकता है कि करदाता ने जानबूझकर रिटर्न भरने में गड़बड़ी की है और करचोरी की है।

    मौजूदा मामले में करदाता की ओर से 100 फीसदी मूल्यह्रास का दावा किया गया था, जिसमें से 25 फीसदी की अनुमति नहीं दी गयी थी, लेकिन यह साबित करने की थोड़ी भी गुंजाइश नहीं बन रही थी कि करचोरी के इरादे से गलत रिटर्न भरा गया। मौजूदा मामलो के तथ्यों और इसी कोर्ट द्वारा 'आयकर आयुक्त गौहाटी बनाम सती ऑयल उद्योग लिमिटेड एवं अन्य (2015)7 एससीसी 304' मामले में दिये गये फैसले के परिप्रेक्ष्य में हम धारा 143(1ए) को यंत्रवत् इस्तेमाल नहीं कर सकते। उस फैसले में व्यवस्था दी गयी है कि आईटी एक्ट की धारा 143(1-ए) के तहत अतिरिक्त कर की मांग तभी की जा सकती है जब करदाता ने कर चोरी के इरादे से आयकर की गणना जानबूझकर गलत की हो। उपरोक्त के मद्देनजर हमारा मानना है कि मौजूदा मामले में धारा 143(1ए) का यंत्रवत इस्तेमाल अनुचित है।

    केस का विवरण

    केस नं : सिविल अपील नं. 8590/2010

    केस का नाम : राजस्थान राज्य विद्युत बोर्ड बनाम आयकर उपायुक्त (आकलन)

    कोरम : न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति मोहन एम. शांतनगौदर

    वकील : सीनियर एडवोकेट अरिजीत प्रसाद एवं एडवोकेट रुपेश कुमार



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