दिल्ली हाईकोर्ट के देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देने के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

LiveLaw News Network

16 Jun 2021 8:03 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट के देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देने के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

    दिल्ली दंगा मामले में देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देने वाले दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

    दिल्ली हाईकोर्ट ने 15 जून के अपने फैसले में पाया कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपराध दिल्ली दंगों की साजिश मामले में छात्र नेताओं आसिफ इकबाल तन्हा, नताशा नरवाल और देवांगना कलिता के खिलाफ प्रथम दृष्टया नहीं बनते हैं।

    तन्हा, नरवाल और कलिता के जमानत आवेदनों की अनुमति देने वाले तीन अलग-अलग आदेशों में हाईकोर्ट ने यह पता लगाने के लिए आरोपों की तथ्यात्मक जांच की है कि क्या उनके खिलाफ यूएपीए की धारा 43 डी (5) के प्रयोजनों के लिए प्रथम दृष्टया मामला बनता है। इसके अलावा, हाईकोर्ट द्वारा विरोध के मौलिक अधिकार और नागरिकों की असहमति को दबाने के लिए यूएपीए के तुच्छ उपयोग के संबंध में महत्वपूर्ण टिप्पणियां की गई हैं।

    दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि दिसंबर 2019 से नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ उनके द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन फरवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में हुए उत्तर पूर्वी दिल्ली सांप्रदायिक दंगों के पीछे एक "बड़ी साजिश" का हिस्सा थे।

    हालांकि, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की एक हाईकोर्ट की पीठ ने आरोपपत्र के प्रारंभिक विश्लेषण के बाद पाया कि आरोप प्रथम दृष्टया आतंकवादी गतिविधियों (धारा 15,17 और 18) से संबंधित कथित यूएपीए अपराधों का गठन नहीं करते हैं।

    इसलिए, खंडपीठ ने कहा कि जमानत देने के खिलाफ यूएपीए की धारा 43 डी (5) की कठोरता आरोपी के खिलाफ सही नहीं थी। इसलिए वे आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत सामान्य सिद्धांतों के तहत जमानत देने के हकदार है।

    पीठ ने कहा था,

    "चूंकि हमारा विचार है कि धारा 15, 17 या 18 यूएपीए के तहत कोई अपराध अपीलकर्ता के खिलाफ विषय चार्जशीट और अभियोजन द्वारा एकत्र और उद्धृत सामग्री की प्रथम दृष्टया प्रशंसा पर नहीं बनता है, अतिरिक्त सीमाएं और धारा 43डी(5) यूएपीए के तहत जमानत देने के लिए प्रतिबंध लागू नहीं होते हैं। इसलिए अदालत सीआरपीसी के तहत जमानत के लिए सामान्य विचारों पर वापस आ सकती है।"

    इन तीन छात्र नेताओं ने तिहाड़ जेल में एक साल से अधिक समय बिताया है। यहां तक ​​कि COVID-19 महामारी की दो घातक लहरों के बीच भी। महामारी के कारण अंतरिम जमानत का लाभ उन्हें उपलब्ध नहीं था, क्योंकि वे यूएपीए के तहत आरोपी थे। पिछले महीने नताशा नरवाल के अपने पिता महावीर नरवाल को COVID-19 के चलते खो देने के बाद हाईकोर्ट ने अंतिम संस्कार करने के लिए उन्हें तीन सप्ताह के लिए अंतरिम जमानत दी थी।

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