सुप्रीम कोर्ट से दिल्ली सरकार ने सेवाओं पर उसकी शक्तियों को कम करने वाले कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई का आग्रह किया
Sharafat
27 Sept 2023 12:49 PM IST
दिल्ली सरकार ने बुधवार (27 सितंबर) को सुप्रीम कोर्ट से एनसीटी दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2023 को चुनौती देने वाली याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया, जो सिविल सेवकों के नियंत्रण पर दिल्ली के उपराज्यपाल को अधिभावी शक्तियां देता है।
जीएनसीटीडी की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी के मौखिक उल्लेख पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले की जल्द सुनवाई में कठिनाइयों का हवाला दिया, क्योंकि आने वाले हफ्तों में 7-न्यायाधीशों की दो पीठ की सुनवाई होने वाली है। बिना कोई खास तारीख बताए सीजेआई ने कहा कि वह इस मामले को देखेंगे।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार की प्रारंभिक चुनौती उस अध्यादेश को थी जिसे 19 मई, 2023 को राष्ट्रपति द्वारा घोषित किया गया था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ जिसमें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे, उस पीठ ने मामले को 5 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था। सिंघवी ने पहले भी तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था, लेकिन सीजेआई ने अनुच्छेद 370 मामले के लिए पूर्व निर्धारित कार्यक्रम का हवाला देते हुए अनुरोध पर विचार नहीं किया।
12 अगस्त, 2023 को राष्ट्रपति ने विधेयक पर अपनी सहमति दे दी, जिसे संसद ने अध्यादेश के स्थान पर पारित कर दिया। यह अधिनियम 19 मई से पूर्वव्यापी रूप से लागू हुआ, जिस दिन अध्यादेश प्रख्यापित किया गया था।
आज सिंघवी ने मामले की तात्कालिकता को रेखांकित करते हुए कहा- " मैं प्रशासन की पीड़ा को व्यक्त नहीं कर सकता। सिविल सेवक आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं। "
हालांकि सीजेआई ने मामले को जल्द सूचीबद्ध करने में कठिनाई का उल्लेख किया और कहा-
" संविधान पीठ के पुराने मामले हैं जिन्हें हम सूचीबद्ध कर रहे हैं और दो सात न्यायाधीशों की पीठ के मामले आ रहे हैं... वे सभी भी महत्वपूर्ण हैं और वे वर्षों से लंबित हैं। लेकिन मुझे इस पर एक नजर डालने दीजिए।"
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ 4 अक्टूबर, 2023 से दो मामलों की सुनवाई करेगी। पहला मामला इस मुद्दे से संबंधित है कि क्या वोट के लिए रिश्वत लेने वाले सांसदों/ विधायकों को आपराधिक कानून से छूट है और दूसरा मामला इस मुद्दे से संबंधित है कि क्या बिना मुहर लगे/अपर्याप्त मुहर लगे मध्यस्थता समझौते अप्रवर्तनीय हैं।
सिंघवी ने जोर देकर कहा कि उनके मामले को समायोजित किया जाए और कहा- " आप मुझे किसी भी संविधान पीठ में शामिल कर सकते हैं। "
इस समय दिल्ली एलजी की ओर से पेश संजय जैन ने कहा कि शुरू में तैयार किए गए प्रश्नों को बदलने की जरूरत है।
तब सीजेआई ने कहा,
" मिस्टर सिंघवी, आप और मिस्टर जैन कॉफी पर बैठ सकते हैं और मुद्दों पर निर्णय ले सकते हैं। हम सामान्य संकलन तैयार करने के लिए कहेंगे। 4 सप्ताह में अपना सबमिशन तैयार करें और फिर हम कहेंगे कि उल्लेख करने की स्वतंत्रता है... मामले को पकने दीजिए। मैं इस बात को ध्यान में रखूंगा।"