Delhi LG वीके सक्सेना मानहानि मामले में मेधा पाटकर को प्रोबेशन पर रिहा करने का आदेश, कोर्ट ने जुर्माना कम किया

Amir Ahmad

8 April 2025 8:01 AM

  • Delhi LG वीके सक्सेना मानहानि मामले में मेधा पाटकर को प्रोबेशन पर रिहा करने का आदेश, कोर्ट ने जुर्माना कम किया

    दिल्ली कोर्ट ने मंगलवार को निर्देश दिया कि नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और एक्टिविस्ट मेधा पाटकर को 2001 में विनय कुमार सक्सेना द्वारा उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि मामले में एक साल की प्रोबेशन पर रिहा किया जाए।

    वीके सक्सेना वर्तमान में दिल्ली के उपराज्यपाल (Delhi LG) हैं।

    साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशन जज विशाल सिंह ने पाटकर की वृद्धावस्था को ध्यान में रखते हुए आदेश पारित किया कि वह सामाजिक प्रतिष्ठा वाली व्यक्ति हैं और उन पर पहले कोई दोष सिद्ध नहीं हुआ है। इसलिए उन्हें जेल की सजा की आवश्यकता नहीं है।

    अदालत ने उन पर लगाए गए 10 लाख रुपये के मुआवजे को और कम किया और उन्हें सक्सेना को 1 लाख रुपये देने को कहा।

    दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा कल उन्हें छूट दिए जाने के बाद पाटकर वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से निचली अदालत में पेश हुईं।

    02 अप्रैल को जज ने मामले में उनकी दोषसिद्धि के खिलाफ उनकी अपील खारिज कर दी थी।

    पाटकर ने पिछले साल एमएम कोर्ट द्वारा दी गई सजा और दोषसिद्धि को चुनौती दी थी। अपील में उन्हें जमानत दी गई और 5 महीने की कैद और 10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाए जाने के आदेश को अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

    पाटकर को भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 500 के तहत आपराधिक मानहानि के अपराध के लिए दोषी ठहराया गया।

    सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। उस समय वे अहमदाबाद स्थित NGO नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे।

    सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ 25 नवंबर, 2000 को 'देशभक्त का असली चेहरा' शीर्षक से एक प्रेस नोट में उन्हें बदनाम करने का मामला दर्ज कराया था।

    प्रेस नोट में पाटकर ने कहा,

    "हवाला लेन-देन से दुखी वीके सक्सेना खुद मालेगांव आए, एनबीए की तारीफ की और 40,000 रुपये का चेक दिया। लोक समिति ने भोलेपन से तुरंत रसीद और पत्र भेजा, जो ईमानदारी और अच्छे रिकॉर्ड रखने को दर्शाता है। लेकिन चेक भुनाया नहीं जा सका और बाउंस हो गया। जांच करने पर बैंक ने बताया कि खाता मौजूद ही नहीं है।"

    पाटकर ने कथित तौर पर कहा कि सक्सेना 'कायर हैं, देशभक्त नहीं'। उन्हें दोषी ठहराते हुए अदालत ने कहा कि पाटकर की हरकतें जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण थीं, जिसका उद्देश्य सक्सेना की छवि खराब करना था और उनकी प्रतिष्ठा और साख को काफी नुकसान पहुंचा। उन्होंने पाया कि पाटकर के बयान जिसमें सक्सेना को कायर कहना और देशभक्त नहीं कहना और हवाला लेन-देन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाना, न केवल अपने आप में अपमानजनक थे बल्कि नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए भी गढ़े गए थे।

    केस टाइटल: मेधा पाटकर बनाम वीके सक्सेना

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