दिल्ली कोर्ट ने 2018 के ट्वीट मामले में मोहम्मद जुबैर को जमानत दी

Brij Nandan

15 July 2022 9:13 AM GMT

  • दिल्ली कोर्ट ने 2018 के ट्वीट मामले में मोहम्मद जुबैर को जमानत दी

    दिल्ली कोर्ट (Delhi Court) ने ऑल्ट न्यूज़ (Alt News) के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर (Mohammed Zubair) को उनके खिलाफ हाल ही में 2018 में किए गए अपने ट्वीट के माध्यम से धार्मिक भावनाओं को आहत करने और दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए दर्ज दिल्ली एफआईआर में जमानत दी।

    पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेंद्र कुमार जांगला ने कल फैसला सुरक्षित रख लिया था।

    कोर्ट ने जमानत देते हुए कहा कि कोर्ट की अनुमति के बिना जुबैर देश नहीं छोड़ सकते हैं। इसके साथ ही उसे 50,000 का निजी बॉन्ड भरने की शर्त पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

    जुबैर को मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट स्निग्धा सरवरिया ने 2 जुलाई को जमानत देने से इनकार कर दिया था।

    जुबैर को 27 जून को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह हिरासत में है।

    जुबैर को भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना, आदि) और आईपीसी के धारा 295 (किसी भी वर्ग के धर्म का अपमान करने के इरादे से पूजा स्थल को नुकसान पहुंचाना या अपवित्र करना) के तहत गिरफ्तार किया गया है।

    दिल्ली पुलिस के अनुसार, एक ट्विटर हैंडल से एक शिकायत प्राप्त होने के बाद मामला दर्ज किया गया है, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि जुबैर ने "एक विशेष धर्म के भगवान का जानबूझकर अपमान करने के उद्देश्य से एक संदिग्ध तस्वीर" ट्वीट की थी।

    एफआईआर के अनुसार, हिंदू भगवान हनुमान के नाम पर 'हनीमून होटल' का नाम बदलने पर 2018 से जुबैर का ट्वीट उनके धर्म का अपमान है।

    एफआईआ में आरोप लगाया गया है कि जुबैर द्वारा एक विशेष धार्मिक समुदाय के खिलाफ इस्तेमाल किए गए शब्द और तस्वीर अत्यधिक उत्तेजक और लोगों में नफरत की भावना को भड़काने के लिए पर्याप्त से अधिक है जो समाज में सार्वजनिक शांति बनाए रखने के लिए हानिकारक हो सकता है।

    मोहम्मद जुबैर की ओर से पेश एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट को मामले के समग्र तथ्यों से अवगत कराया। उन्होंने तर्क दिया कि विचाराधीन तस्वीर एक हिंदी फिल्म "किसी से ना कहना" की है, जो 1983 में बनी थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि कई ट्विटर यूज़र ने तस्वीर शेयर की थी, हालांकि, केवल जुबैर को "निशाना" बनाया गया।

    जुबैर के वकील एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने तर्क दिया कि जुबैर की फेक्ट चेक पत्रकारिता को टारगेट करने के लिए एक प्रतिशोधी कार्रवाई के रूप में मामला दर्ज किया गया है। उन्होंने बताया कि ट्वीट ने 1983 में रिलीज़ हुई एक फिल्म के स्क्रीनशॉट को व्यंग्यपूर्ण टिप्पणी के साथ साझा किया था और इससे चार साल तक कोई उत्तेजना नहीं हुई थी। उन्होंने तर्क दिया कि एक गुमनाम ट्विटर हैंडल द्वारा ट्वीट के खिलाफ शिकायत किए जाने के तुरंत बाद दिल्ली पुलिस हरकत में आई।

    उन्होंने एफसीआरए उल्लंघन के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि ऑल्ट न्यूज़ केवल घरेलू योगदान स्वीकार कर सकता है। उन्होंने पेमेंट गेटवे रेजरपे द्वारा जारी बयान पर भरोसा किया कि ऑल्ट न्यूज के लिए केवल घरेलू भुगतान विकल्प सक्रिय किया गया था।

    कल सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अभियोजन पक्ष से पूछा था कि आरोपी का बयान क्यों नहीं दर्ज किया गया।

    कोर्ट ने पूछा था, " क्या आपने इस व्यक्ति का बयान दर्ज किया है? आपने अभी तक बयान ही नहीं लिखा है। (आपने अभी तक बयान दर्ज नहीं किया है) आपने कितने पीड़ितों के बयान बरामद किए हैं? "


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