हाईकोर्ट त्रुटिपूर्ण तरीके से मंजूर डिफॉल्ट जमानत को सीआरपीसी की धारा 439 (2) के तहत रद्द कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

21 Nov 2020 6:03 AM GMT

  • हाईकोर्ट त्रुटिपूर्ण तरीके से मंजूर डिफॉल्ट जमानत को सीआरपीसी की धारा 439 (2) के तहत रद्द कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 (2) के तहत मंजूर की गयी 'डिफॉल्ट जमानत' सीआरपीसी की धारा 439 (2) के तहत रद्द की जा सकती है।

    इस मामले में, हाईकोर्ट ने बेंगलूर स्थित राजस्व खुफिया निदेशालय के खुफिया अधिकारी की ओर से सीआरपीसी की धारा 439(2) के तहत दायर उस याचिका को मंजूर कर लिया था, जिसमें अभियुक्त को सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत मंजूर की गयी नियमित जमानत रद्द करने की मांग की गयी थी।

    आरोपियों के खिलाफ नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटांसेज एक्ट, 1985 की धारा 21 (सी), 22 (सी), 23 (सी), 28 और 29 के साथ पढ़ी जाने वाली धारा आठ (सी) के अंतर्गत आने वाले अपराधों के लिए मुकदमा चलाया गया जा रहा था। हाईकोर्ट के समक्ष अभियोजन पक्ष ने दलील दी थी कि इससे जुड़े मामले में एकल आरोप पत्र महाराष्ट्र राज्य के ओमेरगा स्थित अतिरिक्त सत्र अदालत के समक्ष लंबित था, क्योंकि संबंधित अपराध का एक हिस्सा ओेमेरगा की कथित सत्र अदालत के अधिकार क्षेत्र के तहत अंजाम दिया गया था। यद्यपि आरोप पत्र आरोपी की रिमांड की तारीख से 180 दिन के भीतर दायर की जाती है। अभियोजन पक्ष ने दलील दी थी कि चूंकि हैदराबाद के विशेष सत्र न्यायाधीश के संज्ञान में यह बात नहीं लायी गयी थी, इसलिए उन्होंने अभियुक्त की गलत तरीके से डिफॉल्ट जमानत मंजूर कर ली थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए 'पंडित दयानु खोट बनाम महाराष्ट्र सरकार एवं अन्य, (2008) 17 एससीसी 745' में की गई निम्नलिखित टिप्पणियों का उल्लेख किया :-

    "धारा 167 के प्रावधान खुद स्पष्ट करती है कि धारा 167(2) के प्रावधानों के तहत जमानत पर छूटने वाले प्रत्येक व्यक्ति को चैप्टर 33 के तहत जमानत पर रिहा माना जाएगा। इसलिए यदि कोई व्यक्ति धारा 167(2) के तहत जमानत पर अवैध या गलत तरीके से रिहा होता है तो सीआरपीसी की धारा 439(2) के तहत उचित आदेश जारी करके उसकी जमानत निरस्त की जा सकती है। इस कोर्ट ने 'पूरन बनाम रामविलास [(2002) 6 एससीसी 338' के मामले में भी स्पष्ट किया है कि गैर-न्यायोचित, अवैध या दुराग्रही आदेश को खारिज करने की अवधारणा अभियुक्त के खराब आचरण के आधार पर या कुछ नये तथ्यों के सामने आने पर जमानत खारिज किये जाने की अवधारणा से बिल्कुल अलग है।"

    अपील खारिज करते हुए न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने कहा :

    यह सत्य है कि दो अपराध की घटनाएं दर्ज की गयी थी - एक डीआरआई हैदराबाद की ओर से डीआरआई 48 / 2018 के रूप में और दूसरा - विशेष एनडीपीएस नंबर 17 / 2018 के तौर पर डीआरआई बेंगलूर की जोनल यूनिट की ओर से। दोनों अपराधों से संबंधित एक संयुक्त शिकायत विशेष अदालत, ओमेरगा के समक्ष दर्ज करायी गयी थी, क्योंकि जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, वहां भी हुई अपराध की घटनाओं को लेकर पूछताछ की गयी थी और उससे निपटा गया था। शिकायत में इस बात के पुख्ता तथ्य मौजूद हैं कि नारकोटिक पदार्थों को महाराष्ट्र के ओमेरगा से ट्रांसपोर्ट किया गया था और उसे कथित तौर पर चेन्नई ले जाया जा रहा था, जिसे हैदराबाद में पकड़ा गया था। रिकॉर्ड में लायी गयी शिकायत में अपीलकर्ता की यात्रा और हैदराबाद में उनके पकड़े जाने के विस्तृत तथ्यों को उजागर किया गया है। संयुक्त शिकायत छह जुलाई 2018 को दर्ज करायी गयी थी, जो 180 दिन की अवधि के भीतर है। ऐसे में हाईकोर्ट ने अपीलकर्ताओं को 12 जुलाई को मंजूर डिफॉल्ट जमानत रद्द करके कोई गलती नहीं की है।

    केस : वेंकटेसन बालासुब्रमण्यन बनाम खुफिया अधिकारी, डीआरआई, बेंगलूर [क्रिमिनल अपील नंब 801 / 2020]

    कोरम : न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह

    वकील : सीनियर एडवोकेट एम करपगा विनायगम, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी

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