निर्भया केस : फांसी की निर्धारित तारीख से एक दिन पहले पवन गुप्ता की पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज
LiveLaw News Network
31 Jan 2020 5:01 PM IST

निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में दोषियों की निर्धारित फांसी के एक दिन पहले शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने चार दोषियों में से एक पवन कुमार गुप्ता की नाबालिग होने का दावा करने वाली पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में पवन गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 20 जनवरी को दिए गए आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी।
20 जनवरी को पवन गुप्ता की उस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था जिसमें उसने दावा किया था कि 2012 में जब ये घटना हुई तब वह नाबालिग था।
ट्रायल कोर्ट ने 1 फरवरी को चार दोषियों को फांसी देने का आदेश दिया है।
जस्टिस आर बानुमथी, जस्टिस अशोक भुषण और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने चैंबर में पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 20 जनवरी को यह कहते हुए पवन की विशेष अनुमति याचिका खारिज की थी कि इस दावे को अदालत उचित विचार के बाद पहले ही खारिज कर चुकी है।
पवन ने पुनर्विचार याचिका में तर्क दिया था कि स्कूल दस्तावेज़ को सबूत के रूप में अनदेखा किया गया और आदेश पारित किया गया। उसने अपने दावे में कहा कि यह सबूत बताता है कि वह अपराध की तारीख में नाबालिग था।
दोषी पवन ने याचिका में कहा था कि उसे सुने बिना ही आदेश पारित कर दिया गया था। उसने आरोप लगाया कि पुलिस ने मामले में स्कूल रिकॉर्ड पेश नहीं किया। याचिका में कहा गया था कि याचिका पर पुलिस द्वारा प्रस्तुत कागजात की जांच के लिए उनके वकील को कोई अवसर नहीं दिया गया था।
जस्टिस आर बानुमति, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एएस बोपन्ना पीठ ने 20 जनवरी को सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कहा था कि याचिका में कोई आधार नहीं मिला है। इस मामले में पहले ट्रायल कोर्ट, फिर हाईकोर्ट और जुलाई 2018 में पुनर्विचार याचिका में सुप्रीम कोर्ट फैसला दे चुका है। इसलिए बार-बार इस मामले में याचिका को अनुमति नहीं दी जा सकती। वहीं सुनवाई के दौरान पवन की ओर से वकील एपी सिंह ने कहा था कि 2017 का जिला अंबेडकरनगर के स्कूल का दस्तावेज बताता है कि पवन की जन्म तारीख 8 अक्तूबर 1996 है।
दिल्ली पुलिस ने ये तथ्य जानबूझकर अदालत से छिपाया। ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने भी इस तथ्य को नजरअंदाज किया। ये सब मीडिया और जनता के दबाव में हुआ। वहीं पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि पुलिस ने जनवरी 2013 में आयु परीक्षण प्रमाण पत्र लगाया था और उसके मां- पिता ने भी इसकी पुष्टि की थी। दोषी ने कभी भी इस पर विवाद नहीं किया। बार- बार दोषी को याचिका दाखिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
पीठ ने भी कहा कि जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका में इस मुद्दे को खारिज कर दिया था। 2013 में ट्रायल कोर्ट और इसके बाद हाईकोर्ट ने भी इसे खारिज कर दिया था।