COVID-19: प्रवासी श्रमिकों को सरकार द्वारा वेतन देने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई 

LiveLaw News Network

1 April 2020 11:19 AM GMT

  • COVID-19: प्रवासी श्रमिकों को सरकार द्वारा वेतन देने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई 

    सर्वोच्च न्यायालय उस याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है, जिसमें मांग की गई है कि देशव्यापी लॉकडाउन के बीच सभी प्रवासी श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान सरकार द्वारा किया जाए, चाहे वह नियमित हो या अनियमित या फिर स्व-नियोजित हो।

    अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने टेलिफोन के जरिए न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव के समक्ष बुधवार को इस याचिका का उल्लेख किया गया।

    सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और अंजलि भारद्वाज द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा दिया गया लॉकडाउन का आदेश इस समान आपदा से प्रभावित नागरिकों के बीच मनमाने ढंग से भेदभाव कर रहा है।

    याचिका में कहा गया है कि-''हालांकि यह सैद्धांतिक रूप से यह सुनिश्चित करता है कि आपदा के कारण काम करने वाले श्रमिकों को वेतन का कोई नुकसान नहीं होगा। परंतु इसमें स्व-नियोजित दैनिक वेतनभोगियों (प्रवासियों या अन्यथा) की आजीविका के नुकसान के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। जबकि यह सभी लोग भी उसी आपदा से प्रभावित होते हैं और उसी कष्ट को झेलते हैं।''

    यह भी कहा गया है कि

    ''यह आदेश उन श्रमिकों की मजदूरी के भुगतान के लिए भी कोई प्रावधान नहीं करता है जो पहले से ही पलायन कर चुके हैं (राज्य के अंदर या राज्य से बाहर दूसरे राज्य में) और अपने 'काम के स्थान पर' मजदूरी लेने के लिए नहीं आ सकते हैं क्योंकि उनको 14 दिन के अनिवार्य क्वारनटाइन में रखा गया है।''

    याचिकाकर्ताओं ने बताया है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, केंद्र और राज्य सरकारों को आपदाओं के प्रभावों से निपटने और उन्हें कम करने के लिए एक विस्तृत योजना और सिस्टम तैयार करने के लिए बाध्य करता है, जिसमें आपदाओं के पीड़ितों की मदद के लिए आवश्यक कदम उठाना शामिल है जो योजना के अनुसार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हो सकते हैं।

    इस प्रकार, राज्य और केंद्र,दोनों सरकारों का यह कर्तव्य बनता है कि वे उन सभी प्रवासियों को संयुक्त रूप से या अलग-अलग मजदूरी/न्यूनतम मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करें, जो COVID-19 आपदा के अप्रत्यक्ष शिकार हैं।

    याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि सरकार ने इन प्रवासी श्रमिकों के जीवन की रक्षा करने में जो निष्क्रियता दिखाई है उसने ''अभूतपूर्व मानवीय संकट'' के दौरान इन श्रमियों को अपने गांवों में वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया है,जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत उनके जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।

    याचिका में कहा गया है कि ''यह आदेश उन कठोर वास्तविकताओं को नजरअंदाज करता है जिनका सामना यह श्रमिक शहरों में लगातार करते हैं, जो उस समय और जटिल हो गई हैं जब एक लॉकडाउन के आदेश ने उनको उनकी नौकरी, दैनिक मजदूरी और जीवित रहने के साधनों से ही वंचित कर दिया है। इस प्रकार यह आदेश उनके अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन करता है।''

    यह भी कहा गया है कि

    ''अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को गरिमा के साथ जीवन जीने की सभी न्यूनतम आवश्यकताओं तक पहुंच का अधिकार देता है। इसके परिणाम स्परूप यह राज्य को बाध्य करता है कि इनसे वंचित होने पर वह न्यूनतम /सुविधाएं प्रदान करें। विशेष रूप से जब राज्य के किसी आदेश (तब भी जब आपदाओं से निपटने के लिए इस तरह के आदेश आवश्यक हों) के कारण ऐसी आवश्यकताओं से वंचित होना पड़ रहा हो।''

    इसी बीच, याचिकाकर्ताओं ने प्रार्थना की है कि सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह आपदा प्रबंधन व सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र के विशेषज्ञों की राष्ट्रीय और राज्य सलाहकार समितियों को तुरंत सक्रिय कर दें। ताकि वह COVID-19 महामारी से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत आवश्यक सभी प्रासंगिक पहलुओं, राहत उपायों ,उनकी संभावित लागतों और परिणामों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन योजना तैयार कर लें।

    याचिका अधिवक्ता चेरिल डिसूजा और राहुल गुप्ता ने तैयार की है।




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