COVID-19 मृत्यु मुआवजा: सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि केवल ऑफलाइन दायर करने पर दावों को खारिज न करें

LiveLaw News Network

5 Feb 2022 5:52 AM GMT

  • COVID-19 मृत्यु मुआवजा: सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि केवल ऑफलाइन दायर करने पर दावों को खारिज न करें

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राज्य सरकारों को सभी आवेदनों को स्वीकार करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही वे दावे ऑनलाइन दायर किए गए हों या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी भी आवेदन को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि उन्हें ऑफ़लाइन दायर किया गया। कोर्ट ने राज्य सरकारों को ऑफलाइन दायर दावों को खारिज करने के फैसले की समीक्षा के लिए एक सप्ताह का समय दिया।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    "सभी राज्यों को योग्यता के आधार पर आवेदन स्वीकार करना होगा। वह आदेवन ऑनलाइन किया गया हो या ऑफलाइन। केवल इस आधार पर कोई आवेदन खारिज नहीं होगी कि आवेदन ऑफ़लाइन दायर किया गया। इसलिए, जहां कहीं भी दावों को ऑफलाइन दायर करने के आधार पर खारिज किया गया, राज्य सरकारें ऐसे निर्णय की एक सप्ताह के भीतर समीक्षा करें..."

    COVID-19 की मौतों के लिए मुआवजे के वितरण से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए बेंच ने अपने पहले के आदेश को दोहराते हुए निर्देश दिया गया कि अन्यथा योग्य दावों को तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए। यदि कोई तकनीकी समस्या है तो उसे सुधारने का अवसर दिया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "प्रस्तुत रिपोर्ट से ऐसा लगता है कि कई राज्यों में आवेदनों की एक बड़ी संख्या को खारिज कर दिया गया। हम दोहराते हैं और निर्देश देते हैं कि तकनीकी आधार पर आवेदनों को खारिज नहीं किया जाएगा। यदि कोई तकनीकी गड़बड़ी पाई जाती है तो राज्य सरकारों एक कल्याणकारी राज्य के रूप में पीड़ित परिवारों को उक्त दोषों को दूर करने का एक अवसर दे।"

    बेंच ने आगे कहा,

    "इस बीच राज्यों को दावों की प्राप्ति से 10 दिनों की अवधि के भीतर मुआवजे का भुगतान करने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए।"

    ऑफ़लाइन दायर किए गए दावों को खारिज करने के लिए बेंच ने महाराष्ट्र को फटकार लगाई

    बेंच इस बात से परेशान है कि महाराष्ट्र ने केवल इसलिए आवेदन खारिज कर दिए, क्योंकि उन्हें ऑफलाइन दायर किया गया था। बेंच चिंतित है कि यदि अन्यथा पात्र दावेदार किसी कारण से ऑनलाइन आवेदन जमा करने में विफल रहता है तो यह कैसे उचित है कि उनके आवेदन सीधे खारिज कर दिए गए। पीठ ने महाराष्ट्र राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता राहुल चिटनिस को याद दिलाया कि एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते वे पात्र दावेदारों को मुआवजे का भुगतान करने के लिए बाध्य हैं।

    बेंच ने कहा,

    "आपके राज्य ने ऑफ़लाइन दायर आवेदनों को खारिज कर दिया। आपको ऑफ़लाइन और ऑनलाइन दोनों आवेदनों पर विचार करना होगा। मान लीजिए कि कोई ऑनलाइन आवेदन दर्ज नहीं कर सकता तो आप उन्हें अस्वीकार कर देंगे? अगर कुछ आवेदन ऑफ़लाइन दिया गया तो उन्हें स्वीकार करें। अपने मुख्यमंत्री से कहें कि वे दान नहीं कर रहे हैं, एक कल्याणकारी राज्य के रूप में यह उनका कर्तव्य है।"

    बेंच ने यह भी जोड़ा,

    "क्या 61,000 रिजेक्शन हो सकते हैं?"

    महाराष्ट्र सरकार ने प्राप्त हुए 2,27,107 दावों में से 61,848 दावों को खारिज कर दिया। इनमें से कुछ अस्वीकरण केवल इस आधार पर किए गए कि आवेदन ऑफलाइन जमा किए गए। इस तरह की कार्रवाई को खारिज करते हुए बेंच ने राज्य सरकार को एक सप्ताह की अवधि के भीतर महाराष्ट्र कानूनी सेवा प्राधिकरण के साथ अस्वीकृति के प्रासंगिक विवरण साझा करने का निर्देश दिया। प्राधिकरण राज्य द्वारा नियुक्त किए जाने वाले नोडल अधिकारी के परामर्श से समीक्षा करेगा कि क्या तकनीकी आधार पर अस्वीकृति की गई। यदि ऐसा पाया जाता है तो दावेदारों को अपने आवेदन में सुधार करने का अवसर दिया जाएगा।

    बेंच ने कहा,

    "प्रस्तुत रिपोर्ट से ऐसा प्रतीत होता है कि जहां तक ​​महाराष्ट्र राज्य का संबंध है, प्राप्त किए गए 2,27,107 दावों में से 61,848 दावों को खारिज कर दिया गया। यह भी बताया गया कि जहां तक ​​महाराष्ट्र राज्य का संबंध है, कुछ आवेदन महज इसलिए खारिज कर दिए गए, क्योंकि वे ऑफलाइन जमा किए गए थे। इस तरह की अस्वीकृति को अस्वीकृत किया जाता है। यह इस न्यायालय द्वारा पहले पारित आदेश में कहा गया है।

    महाराष्ट्र राज्य को शुक्रवार से एक सप्ताह के भीतर कानूनी सेवा प्राधिकरण, महाराष्ट्र के सदस्य सचिव को कारणों के साथ खारिज किए गए आवेदनों का पूरा विवरण देने का निर्देश दिया जाता है। उक्त अधिकारी जांच करेंगे और उन आधारों पर विचार करेंगे जिनके कारण आवेदन खारिज कर दिए गए। यदि यह पाया जाता है कि उन्हें तकनीकी आधार पर खारिज किया गया तो वह नोडल अधिकारियों के परामर्श करेंगे कि उन व्यक्तियों को उनके आवेदन पर पुनर्विचार करके गलती को सुधारने का अवसर दिया जाए।"

    आवेदक के अधिवक्ता गौरव बंसल ने पीठ को सूचित किया कि कर्नाटक में दावेदारों को जारी किए गए कुछ चेक बाउंस हो गए।

    कर्नाटक राज्य की ओर से पेश हुए अधिवक्ता रघुपति ने कहा कि उनके पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है और वे इस संबंध में निर्देश मांगेंगे।

    पीठ ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि राजस्थान सरकार ने अनुग्रह राशि का भुगतान करने के लिए 10 करोड़ रुपये के एक और बजटीय प्रावधान के लिए आवेदन किया, जब उन्हें राज्य आपदा प्रबंधन कोष से धन वितरित करना होता है जो उनके पास पहले से ही उपलब्ध है।

    पीठ ने कहा कि राज्य द्वारा दायर नवीनतम हलफनामे के अनुसार, प्राप्त दावों को सत्यापित करने की प्रक्रिया में है।

    राजस्थान राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ मनीष सिंघवी ने पीठ को अवगत कराया कि राज्य ने प्राप्त दावों के 95% से अधिक के संबंध में भुगतान किया। हालांकि, उन्होंने कहा कि सत्यापन प्रक्रिया में वे यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि पैसा केवल मृतक की पत्नियों को मिले। इसलिए, जहां बेटे को भुगतान किया गया है, यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी प्रक्रिया को फिर से देखना होगा कि पत्नी को अनुग्रह मुआवजा दिया गया है। उन्होंने दावा किया कि यह प्रक्रिया समय लेने वाली है। फिर भी, उन्होंने बेंच को योग्य दावेदारों को जल्द से जल्द मुआवजा देने का आश्वासन दिया।

    उन्होंने कहा,

    "हम सुविधा देने की कोशिश कर रहे हैं। मुआवजा की राशि कभी-कभी बेटा को मिल जाती है। हम इसे मृतक की पत्नी को देने की कोशिश कर रहे हैं। हमारा प्रयास उन तक पहुंचने के लिए है न कि उन्हें अस्वीकार करने के लिए ... हमें एक सप्ताह का समय दें, हम इसे करेंगे।"

    [मामले का शीर्षक: गौरव बंसल बनाम भारत संघ एमए 1805 का 2021 में डब्ल्यूपी (सी) नंबर 539 का 2021]

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