शाहीन बाग धरना: कोरोना वायरस के फैलने की आशंका के कारण धरने को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी 

LiveLaw News Network

16 March 2020 8:48 AM GMT

  • शाहीन बाग धरना: कोरोना वायरस के फैलने की आशंका के कारण धरने को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी 

    नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में चल रहे विरोध प्रदर्शन को हटाने के लिए एक अर्जी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है।

    बीजेपी के पूर्व विधायक और इस केस में याचिकाकर्ता नंदकिशोर गर्ग ने कोरोना वायरस के प्रकोप की आशंका के कारण शाहीन बाग के प्रदर्शन को खत्म करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।

    अर्जी में कहा गया है कि कोरोना वायरस लोगों के सम्पर्क में आने में बढ़ता है और जब सुप्रीम कोर्ट से लेकर सभी अदालतों में कोरोना के प्रभाव से बचने के लिए प्रयास किये जा रहे है। साथ ही स्कूल, कॉलेज, मॉल और सिनेमाघर सब बंद कर दिए गए हैं को ऐसे में धरने को कैसे इजाजत दी जा सकती है।

    अर्जी में कहा गया है कि अगर देश के किसी भी हिस्से में ऐसा कोई भी प्रदर्शन हो रहा है तो उस पर भी रोक लगाने के निर्देश जारी किए जाने चाहिएं।

    इससे पहले 28 फरवरी को जस्टिस एस के कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच ने कहा था कि वो इस याचिका पर 23 मार्च को सुनवाई करेंगे और फिलहाल कोई आदेश जारी नहीं करेंगे क्योंकि माहौल अनुकूल नहीं है। ये दिल्ली में हिंसा को देखते हुए कहा गया था।

    17 फरवरी को शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन के कारण सड़क नाकाबंदी के समाधान की खोज के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन की मध्यस्थता टीम का गठन किया था और प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत करने को कहा था।

    जस्टिस एस के कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच अदालत वकील अमित साहनी और नंदकिशोर गर्ग की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन को हटाने की मंज़ूरी मांगी गई है जो नागरिकता संशोधन अधिनियम और नेशनल पापुलेशन रजिस्टर के खिलाफ तीन महीने से सड़क पर चल रहा है।

    सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति कौल ने बार-बार विरोध करने के अधिकार का प्रयोग करने में "संतुलन" की आवश्यकता पर जोर दिया था।

    "लोकतंत्र विचारों की अभिव्यक्ति पर काम करता है। लेकिन इसकी रेखाएं और सीमाएं हैं। यदि आप विरोध करना चाहते हैं, जबकि मामला यहां सुना जा रहा है, तो भी यह ठीक है। लेकिन हमारी चिंता सीमित है। आज एक कानून हो सकता है। कल एक और कानून को लेकर समाज का दूसरे खंड को समस्या हो सकती है।

    न्यायमूर्ति कौल ने कहा था,

    " यातायात अवरुद्ध करना और असुविधा का कारण हमारी चिंता है। मेरी चिंता यह है कि अगर हर कोई सड़कों को अवरुद्ध करना शुरू कर दे, यह कहां रुकेगा।"

    न्यायमूर्ति कौल ने सॉलिसिटर जनरल से कहा था, "हम चाहते हैं कि आप जिस चीज पर गौर करना चाहते हैं, वे विरोध के लिए सड़कों पर जाने के बजाय विकल्प के रूप में हैं।"

    सहमत होते हुए सॉलिसिटर जनरल ने प्रस्तुत किया था कि ऐसा आभास नहीं दिया जाना चाहिए कि संस्था प्रदर्शनकारियों के सामने झुक रही है।

    "मैं नहीं चाहता कि संदेश यह हो कि हमें हमारे घुटनों पर लाया गया है, " SG ने कहा था।

    तुषार ने कहा था, "यह उन पर चर्चा करने और फिर सूचित करने के लिए है। हम सुझाव देंगे, लेकिन यह उनका तर्क नहीं हो सकता है कि चूंकि हम विकल्प नहीं खोज पाए हैं, इसलिए वे वहां जारी रहेंगे।"

    दरअसल 10 फरवरी को सीएए-एनपीआर-एनआरसी के खिलाफ 15 दिसंबर से चल रहे धरना- प्रदर्शन के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था न्यायमूर्ति एस के कौल और के एम जोसेफ की एक पीठ ने हालांकि प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए अंतरिम निर्देश के लिए याचिकाकर्ताओं की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिय था।

    अमित साहनी और नंदकिशोर गर्ग द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति कौल ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, "विरोध प्रदर्शन हो सकता है, लेकिन यह उस क्षेत्र में किया जाना चाहिए जो विरोध के लिए नामित है।"

    "एक सार्वजनिक क्षेत्र में अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन नहीं किया जा सकता है। यदि हर कोई हर जगह विरोध करना शुरू कर देता है, तो क्या होगा? कई दिनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा है, लेकिन आप लोगों को असुविधा होने नहीं दे सकते हैं, " जस्टिस कौल ने कहा।

    गौरतलब है कि वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को कोई दिशा- निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया था। 14 जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने सरकार और पुलिस को हालात को देखते हुए कानून के मुताबिक कार्रवाई करने को कहा था।

    सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य याचिका दाखिल कर इस मामले में व्यापक दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया है ।

    याचिकाकर्ता बीजेपी नेता नंदकिशोर गर्ग ने कहा है कि इसमें कोई शक नहीं है कि शाहीन बाग का विरोध संविधान के पैरामीटर के भीतर है और इसे गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता।

    हालांकि, पूरे विरोध ने उस समय अपनी वैधता को खो दिया, जब दूसरों को संविधान से मिले संरक्षण को धता बताते हुए

    सार्वजनिक स्थान पर उनका रास्ता रोका गया जिससे लोगों को जबरदस्त कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

    उन्होंने प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए एक दिशा-निर्देश भी मांगा है जिसमें आरोप लगाया गया है कि राज्य कानून प्रवर्तन मशीनरी को प्रदर्शनकारियों की सनक और जिद के लिए बंधक बनाया जा रहा है।

    उन्होंने कहा कि अत्यंत व्यस्त सार्वजनिक स्थानों जैसे दिल्ली से नोएडा को जोड़ने वाले सड़क मार्ग पर इस तरह के विरोध को प्रतिबंधित करने के लिए दिशानिर्देशों की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि इसका

    हजारों लोगों द्वारा अपनी आजीविका के लिए और अस्पताल और स्कूल जाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

    दरअसल कालिंदी कुंज - शाहीन बाग मार्ग, ओखला अंडरपास के साथ, 15 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में स्थानीय लोगों द्वारा शुरु किए गए धरने के चलते बंद कर दिया गया था। यह रास्ता नोएडा, फरीदाबाद और हरियाणा जाने वाले मार्गों को जोड़ता है।

    Next Story