सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हैंडराटिंग एक्सपर्ट की राय दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकती

LiveLaw News Network

15 Jan 2020 6:46 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हैंडराटिंग एक्सपर्ट की राय दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकती

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि स्वतंत्र और विश्वसनीय पुष्टि के बिना, हैंडराइटिंग एक्सपर्ट्स की राय को दोषसिद्घ‌ि का आधार नहीं बनाया जा सकता है।

    जस्टिस आर भानुमती और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा है कि हेंडराइटिंग एक्सपर्ट की राय पर काम करने से पहले, विवेक की आवश्यकता है कि कोर्ट को यह देखना होगा कि ऐसे सबूतों की अन्य सबूतों द्वारा प्रत्यक्ष पुष्टि हो रही हो या परिस्थितिजन्य साक्ष्य द्वारा पुष्टि हो रही हो।

    कोर्ट आईपीसी की धारा 467 और 468 के तहत अभियुक्तों की सजा के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा था। इस अपील में दलील दी गई थी कि यह साबित किए बिना कि अभियुक्त ने डिलीवरी स्लिप में जाली हस्ताक्षर किए हैं, आईपीसी की धारा 467 और 468 के तहत अपीलकर्ता की सजा बरकरार नहीं रखी जा सकती है।

    मुरारी लाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1980) 1 एससीसी 704 और मगन बिहारी लाल बनाम पंजाब राज्य (1977) 2 एससीसी 210 के मामलों का उल्लेख करते हुए, बेंच ने कहा:

    बेशक, हैंडराटिंग विशेषज्ञ के सुबूत पर पूरी तरह से विश्वास को सुरक्षित करना है। जैसा कि मगन बिहारी लाल बनाम पंजाब राज्य (1977) 2 SCC 210 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि-

    "विशेषज्ञ की राय को हमेशा बड़ी सावधानी के साथ इस्तेमाल किया जाना चाहिए .. ठोस पुष्टि के बिना विशेषज्ञ की राय पर को अपराध का आधार बनाना असुरक्षित है। इस नियम पर सार्वभौमिक रूप से कार्रवाई की गई है और यह लगभग कानून का नियम बन गया है।"

    यह बहुत अच्छी तरह से तय किया गया है कि हैंडराइटिंग विशेषज्ञ की राय पर काम करने से पहले, विवेक की आवश्यकता है कि कोर्ट को यह देखना चाहिए कि इस तरह के सबूतों को प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्यों द्वारा द्वारा पुष्टि की जाती हो।"

    हालांकि, इस मामले में, कोर्ट ने उल्लेख किया कि न‌िचली अदालतें ने केवल हैंडराइटिंग विशेषज्ञों की राय को अपराध का आधार नहीं बनाया है। बेंच ने कहा कि हैंडराइटिंग विशेषज्ञों के सुबूत अभियोजन पक्ष के अन्य गवाहों के सुबूतों को पुष्ट‌ करने के लिए सबूत का एक टुकड़ा मात्र है।

    केस: पदुम कुमार बनाम यूपी राज्य

    केस नं : Cri. Appeal 87 of 2020

    कोरम: जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस एएस बोपन्ना

    अपीलकर्ता के वकील: एडवोकेट सौरभ मिश्रा

    सरकारी वकील: एडवोकेट आदर्श उपाध्याय

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