उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 :  मुआवजा देने के आर्थिक क्षेत्राधिकार तय करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

LiveLaw News Network

10 July 2021 10:29 AM IST

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 :  मुआवजा देने के आर्थिक क्षेत्राधिकार तय करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 34(1), 47(1)( ए) और 58(1)(ए)(i) के नए अधिसूचित प्रावधानों को चुनौती देने वाली रिट याचिका पर सुनवाई को स्थगित कर दिया जो जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के मंचों के आर्थिक क्षेत्राधिकार से निपटते हैं।

    न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पत्र प्रसारित करने के बाद मामले को स्थगित करने का फैसला किया। कोर्ट ने पहले याचिका पर नोटिस जारी किया था।

    संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के प्रावधानों को चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि दावा किए गए मुआवजे के बजाय उत्पाद या सेवा की खरीद के समय भुगतान किए गए मुआवजे के आधार पर आर्थिक क्षेत्राधिकार की गणना की जाएगी।

    याचिकाकर्ताओं के अनुसार, 15 जुलाई 2020 से अधिनियम के इन प्रावधानों के लागू होने के बाद से, प्रोविज़ो के तहत मुआवजे के दावे की गणना के लिए नए मानदंड 'दावा की गई राशि' से "सेवा या उत्पाद की खरीद के समय भुगतान किए गए मुआवजा" में स्थानांतरित हो गए हैं। '

    अधिवक्ता हरेश रायचुरा के माध्यम से दायर और अधिवक्ता सरोज रायचुरा द्वारा तैयार गई याचिका में कहा गया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के प्रावधानों के लागू होने के बाद 'आर्थिक क्षेत्राधिकार' और 'न्यायिक प्रणाली के पदानुक्रम' के संबंध में एक विसंगति उत्पन्न हुई है।

    याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया है कि वे एक ऐसे व्यक्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं जो फोर्ड एंडेवर टाइटेनियम कार में यात्रा करते समय जलकर मर गया था, जिसमें मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट था।

    कानूनी वारिसों ने उनकी मृत्यु के कारण 50 करोड़ से अधिक के मुआवजे का दावा किया। चूंकि दावा 10 करोड़ रुपये से अधिक था, इसलिए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज की गई थी। हालांकि, एनसीडीआरसी ने माना कि आर्थिक क्षेत्राधिकार की गणना कार के लिए भुगतान की गई कीमत के आधार पर की जानी है, जो लगभग 44 लाख रुपये थी। इसलिए, एनसीडीआरसी ने शिकायत को विचारणीयनहीं बताकर खारिज कर दिया।

    एनसीडीआरसी ने कहा कि,

    "जिला आयोग, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के आर्थिक क्षेत्राधिकार का निर्धारण करने के लिए केवल प्रतिफल के रूप में भुगतान की गई वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य को ही लिया जाना चाहिए।"

    याचिकाकर्ताओं के अनुसार, आर्थिक क्षेत्राधिकार के इस नियम से विसंगतियां पैदा होंगी। इससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है जहां 51 करोड़ रुपये के मुआवजे का दावा करने वाले व्यक्ति को जिला फोरम के समक्ष शिकायत दर्ज करने की आवश्यकता होती है,

    क्योंकि उत्पाद का मूल्य एक करोड़ से कम है। इसका मतलब यह है कि जहां एनसीडीआरसी 11 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग वाली शिकायत पर विचार कर रहा है, वहीं जिला फोरम 51 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग वाली शिकायत से निपट सकता है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार यह मनमाना और अनुचित है।

    याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि आर्थिक क्षेत्राधिकार के लिए वर्गीकरण का पैमाना पूरी तरह से तर्कहीन है।

    इसलिए याचिकाकर्ता ने अदालत से यह निर्देश जारी करने का आग्रह किया है कि उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय (उपभोक्ता मामलों के विभाग) द्वारा जारी की गई अधिसूचना दिनांक 15 जुलाई 2020 से लागू हुए इन नए घोषित प्रावधानों को अनुचित मनमाना वर्गीकरण और न्यायिक अनुक्रम के कारण व्यवधान के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन घोषित किया जाए।

    स्वीकार करने की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्रेयश ललित पेश हुए।

    (मामला: रुतु मिहिर पांचाल और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यूपी (सी) 282/2021)

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