'विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा दिए गए परस्पर विरोधाभासी निर्णय': सुप्रीम कोर्ट ने मोटर वाहन नियमों के रूल 9 पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया
LiveLaw News Network
1 Aug 2021 11:00 AM IST
सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को उस विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर नोटिस जारी किया है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पारित अंतिम आदेश को चुनौती दी गई है। इस आदेश के तहत हाईकोर्ट यह सराहना करने में विफल रहा है कि मोटर वाहन नियमों 1989 के रूल 9 की व्याख्या से संबंधित एक समान कानूनी मुद्दा, पहले से ही सर्वोच्च न्यायालय (न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम लक्ष्मी व अन्य) के समक्ष विचाराधीन है।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विभिन्न अन्य हाईकोर्ट द्वारा दिए गए बिल्कुल विपरीत विचारों की भी अवहेलना की है, जिनमें यह माना गया था कि एक खाली टैंकर चलाने के लिए, इस आशय की ड्राइविंग लाइसेंस पर अनुमोदन करवाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मोटर वाहन नियम (नियम) के रूल 9 के तहत वाक्यांश 'कैरींग' पर विचार किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने याचिका पर 8 सप्ताह के लिए नोटिस जारी किया है।
याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'कृष्ण कुमार बनाम यूनाइटेड इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड' और बॉम्बे हाईकोर्ट ने 'कमल बनाम अर्चना राजू' के मामले में इस संबंध में कानून के विपरीत स्थिति को निर्धारित किया है। तदनुसार, याचिका में तर्क दिया गया किः
''विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा दिए गए परस्पर विरोधाभासी निर्णयों के कारण, यह आवश्यक है कि यह माननीय न्यायालय इस मामले पर विचार करे और इसमें शामिल मुद्दों पर एक आधिकारिक घोषणा करे।''
तत्काल मामले में, हमलावर वाहन यानी खाली भारी मोटर वाहन और एक मारुति ओमनी वैन के बीच एक सड़क दुर्घटना हुई थी। नतीजतन, मारुति कार में सवार लोगों को काफी चोट आई और उनकी मृत्यु हो गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 18 जनवरी, 2021 के आदेश के तहत उस अपील को खारिज कर दिया,जो याचिकाकर्ता ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ दायर की थी। अपील को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि टैंकर के चालक के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था, जो उसे खतरनाक सामान लाने-ले-जाने वाले टैंकर को चलाने की अनुमति देता हो।
याचिका में दिए गए तर्कः
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि दुर्घटना के समय अफेंडिंग वाहन यानी टैंकर खाली था और कोई खतरनाक सामान नहीं ले जा रहा था। इसके अलावा यह प्रस्तुत किया गया कि आक्षेपित आदेश ने अन्य निर्णयों की अवहेलना की है,जिनमें यह स्पष्ट रूप से माना गया है कि दुर्घटना के निकटतम कारण की जांच की जानी चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि इस बात की भी जांच करने की आवश्यकता है कि क्या ड्राइविंग लाइसेंस की शर्त का उल्लंघन इतना बुनियादी है कि उसके कारण संबंधित दुर्घटना हो गई?,परंतु इस पर हाईकोर्ट ने विचार नहीं किया।
याचिका में यह भी कहा गया है कि आक्षेपित आदेश उन पूर्व न्यायिक निर्णयों को भी ध्यान में रखने में विफल रहा है,जिनमें यह माना गया है कि यह साबित करने का भार कि टैंकर खतरनाक सामान ले जा रहा था, बीमाकर्ता पर है।
याचिका में आगे कहा गया है कि, ''आक्षेपित फैसले में गलत तरीके से यह मान लिया गया है कि अनुमोदन के अभाव में बीमा कंपनी पर यह साबित करने को बोझ नहीं ड़ाला जा सकता है कि दुर्घटना के प्रासंगिक समय अफेंडिंग वाहन खतरनाक या असुरक्षित सामान ले जा रहा था या नहीं''
न्यायालय को यह भी बताया गया कि वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता केवल आफेंडिंग वाहन के मालिक का अधिकृत प्रतिनिधि है और इस तरह उस पर व्यक्तिगत दायित्व का बोझ नहीं डाला जा सकता है।
इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि चालक के पास नियमों की धारा 9 के अनुसार वैध लाइसेंस है,यह सुनिश्चित करने की ड्यूटी नियम 132(5) के तहत सामान के मालिक पर केवल उस स्थिति में उत्पन्न होती है जब वाहन वास्तव में खतरनाक और असुरक्षित सामान लेकर जा रहा हो।
याचिका में दोहराया गया है कि,''किसी वाहन को खतरनाक और असुरक्षित सामान ले जाने वाला मानने के लिए सबसे पहले मानव जीवन के लिए किसी खतरनाक या असुरक्षित सामान को 'ले जाने' की आवश्यकता है।''
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता धीरज अब्राहम फिलिप कर रहे हैं।
केस का शीर्षकः रमेश चंद्र तिवारी बनाम मदन सिंह व अन्य
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