तथ्य-संबंधी सवाल खड़े होने पर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दर्ज शिकायत निरस्त नहीं की जा सकती : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
12 Feb 2020 12:45 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट (एनआई) एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस की शिकायत निरस्त नहीं की जा सकती, जब तथ्य संबंधी विवादित सवाल उसमें निहित हों।
इस मामले में हाईकोर्ट ने आरोपी की ओर से दायर याचिका में कहा था कि चूंकि कथित फर्जी रसीद के आधार पर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया था, इसलिए शिकायत निरस्त की जाती है।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह दलील दी गयी थी कि हाईकोर्ट ने इस बात पर गौर नहीं किया कि आरोपी ने स्वीकार किया है कि उसके अपने एनआरई खाते से चेक जारी किया गया है।
इस दलील पर सहमति जताते हुए न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि एकबारगी चेक जारी करने की बात स्वीकार लेने/स्थापित हो जाने के बाद एनआई एक्ट की धारा 139 के तहत उपधारणा चेक होल्डर के पक्ष में जाएगी।
अपील स्वीकार करते हुए बेंच ने कहा :
" एक बार चेक जारी करने की बात स्वीकार लेने/स्थापित हो जाने के बाद एनआई एक्ट की धारा 139 के तहत उपधारणा चेक होल्डर के पक्ष में जाएगी और यह शिकायतकर्ता-अपीलकर्ता संख्या 3 हैं।
एनआई एक्ट की धारा 139 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 118(ए) के तहत तर्कों की प्रकृति खंडन योग्य है। योगेशभाई ने निश्चित तौर पर अपने बचाव में कहा था कि कोई गैरकानूनी प्रवर्तनीय ऋण नहीं है और उसने अपीलकर्ता संख्या-3 हसमुखभाई को जमीन खरीदने में मदद के लिए चेक दिया था।
साक्ष्य मुहैया कराकर दलील के खंडन का दायित्व आरोपी पर है। हाईकोर्ट ने इस बात को ध्यान में नहीं रखा कि जब तक आरोपी अपने बोझ का निर्वहन नहीं करता तब तक एनआई एक्ट की धारा 139 के तहत मामला बना रहेगा।
साक्ष्य पेश करके इस उपधारणा के खंडन की जिम्मेदारी योगेशभाई पर है। जब तथ्यों से संबंधित विवादित वैसे सवाल शामिल हों, जिनके निर्धारण के लिए दोनों पक्षों द्वारा साक्ष्य मुहैया कराना जरूरी हो, तो हाईकोर्ट को एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 का इस्तेमाल करके निरस्त नहीं करना चाहिए था।"
सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्राप्त शक्तियों के संदर्भ में बेंच ने कहा :
"यद्यपि, कोर्ट के पास एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दर्ज आपराधिक शिकायत को समय-सीमा आदि जैसे कानूनी मुद्दों पर खारिज करने का अधिकार है, लेकिन एनआई एक्ट की धारा 139 के तहत योगेशभाई के खिलाफ दर्ज आपराधिक शिकायत को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए था कि अपीलकर्ता संख्या-3 और प्रतिवादी संख्या-2 के बीच परस्पर विवाद है।
हमारा मानना है कि हाईकोर्ट ने एनआई एक्ट की धारा 139 के तहत कानूनी उपधारणा को ध्यान में रखे बिना एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दर्ज आपराधिक शिकायत (सीसी संख्या 367/2016) को निरस्त करके गंभीर त्रुटि की है।"
केस का नाम : राजेशभाई मुलजीभाई पटेल बनाम गुजरात सरकार
केस नं. – क्रिमिनल अपील नं.- 251-252/2020
कोरम : न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना
वकील : एडवोकेट डी एन पारिख और सीनियर एडवोकेट ऐश्वर्या भाटी
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