खाद्य सुरक्षा : सुप्रीम कोर्ट ने रसोईघरों की याचिका पर जवाब दाखिल ना करने पर 5 राज्यों पर लगाया 5 लाख का अतिरिक्त जुर्माना 

LiveLaw News Network

17 Feb 2020 7:10 AM GMT

  • खाद्य सुरक्षा : सुप्रीम कोर्ट ने रसोईघरों की याचिका पर जवाब दाखिल ना करने पर 5 राज्यों पर लगाया 5 लाख का अतिरिक्त जुर्माना 

    सामुदायिक रसोई और खाद्य सुरक्षा कानून पर लापरवाही बरतने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए पांच राज्यों पर 5-5 लाख रुपये का अतिरिक्त जुर्माना लगा दिया है।

    जस्टिस एन वी रमना ने सोमवार को राज्य सरकारों द्वारा जवाब दाखिल ना करने पर कड़ी नाराज़गी जाहिर की।

    पीठ ने दिल्ली ,महाराष्ट्र उड़ीसा, गोवा और मणिपुर राज्यों पर हलफनामा दाखिल ना करने पर ये जुर्माना लगाया। हालांकि केंद्र सरकार ने अपना हलफनामा दाखिल किया है और कोर्ट से अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने के लिए अनुमति मांगी। पीठ इस मामले की अप्रैल में सुनवाई करेगा।

    गौरतलब है कि पिछली दस फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कानून और न्याय मंत्रालय, महिला और कल्याण, समाजिक न्याय और अधिकारिता, ग्रामीण विकास समेत कई मंत्रालयों व राज्यों पर पांच लाख रुपये जुर्माना लगाया था।

    जस्टिस एन वी रमना की पीठ ने कहा था कि इन उत्तरदाताओं ने PDS अलग बेघर और बिना आधार कार्ड वाले लोगों के लिए योजनाओं पर अदालत में हलफनामा दाखिल नहीं किया। ये गंभीर लापरवाही का मामला है और इससे पता चलता है कि सरकारें इसे लेकर गंभीर नहीं है।

    दरअसल नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वह देश में फैली भुखमरी, कुपोषण और भुखमरी से होने वाली मौतों को कम करने के लिए सामुदायिक रसोईघरों की स्थापना की मांग वाली याचिका पर अपना जवाब दाखिल करे।

    न्यायमूर्ति एन वी रमना और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने ये निर्देश जारी किए थे।

    दरअसल वकील असीमा मंडला, फुजैल अहमद अय्यूबी और मंदाकिनी सिंह के माध्यम से सामाजिक कार्यकर्ताओं अनुन धवन, ईशान धवन और कुंजना सिंह ने ये याचिका दायर की है।

    याचिकाकर्ताओं ने विभिन्न जनगणना और सांख्यिकीय रिपोर्टों पर भरोसा करते हुए कहा है कि देश में कुपोषण और भुखमरी एक खतरनाक दर से बढ़ रही है, जिससे 'भोजन के अधिकार' को खतरा है जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत 'जीने के अधिकार' में निहित है।

    "यूएन वर्ल्ड फूड प्रोग्राम, यूएन डब्ल्यूएचओ: ग्लोबल डेटाबेस ऑन चाइल्ड ग्रोथ एंड कुपोषण, 2006, यूएन फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन: एसओएफआई 2006 रिपोर्ट में कहा गया है कि एक दिन में 7000 व्यक्तियों (बच्चों सहित) और सालभर में 25 लाख से अधिक लोगों (बच्चों सहित) की भूख से मौत हो जाती है, " याचिका में कहा गया है।

    इस संबंध में उन्होंने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सामुदायिक रसोई की स्थापना के लिए योजनाएं बनाने के लिए दिशा-निर्देश मांगे हैं। उन्होंने केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की है कि वे ऐसे लोगों के लिए एक राष्ट्रीय खाद्य ग्रिड का निर्माण करें, जो सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ उठाने के काबिल नहीं हैं और बेघर होने और कार्ड जारी न करने के कारण सार्वजनिक वितरण योजनाओं के दायरे से बाहर हैं।

    याचिकाकर्ताओं द्वारा यह भी सुझाव दिया गया है कि ये प्रतिष्ठान कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के अनुसार कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत निधियों का प्रभावी रूप से उपयोग करने के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के रूप में स्थापित किए जा सकते हैं।

    इसमें भारत में कुछ राज्यों द्वारा स्थापित विभिन्न सामुदायिक रसोईघरों, तमिलनाडु में अम्मा उनावगम, आंध्र प्रदेश में अन्ना कैंटीन, ओडिशा में अहार केंद्र, आदि की सफलता का हवाला दिया गया है। इसमें अमेरिका और यूरोप में "सूप रसोई" का उदाहरण भी बताया गया है जो पकाया हुआ पौष्टिक भोजन परोसकर बाजार मूल्य से कम में गरीबों को खिलाते हैं।

    याचिकाकर्ताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि वे मौजूदा सरकारी योजनाओं में से किसी का बदलाव नहीं चाहते बल्कि इन प्रतिष्ठानों को पौष्टिक भोजन के प्रावधान के लिए एक अतिरिक्त तंत्र के रूप में चाहते हैं।

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