'पुलिस का औपनिवेशिक रवैया खत्म नहीं हुआ ' : सुप्रीम कोर्ट से हिरासत में यातना को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने की मांग

LiveLaw News Network

8 July 2020 5:39 AM GMT

  • पुलिस का औपनिवेशिक रवैया खत्म नहीं हुआ  : सुप्रीम कोर्ट से हिरासत में यातना को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने की मांग

     तमिलनाडु में पिता-पुत्र जयराज और बेनिक्स की हिरासत में खौफनाक मौत की पृष्ठभूमि में भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें हिरासत में यातना की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश की मांग की गई है।

    दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि तमिलनाडु की घटना "इस देश में पुलिस व्यवस्था के भीतर संस्थागत सुधार की तत्काल आवश्यकता और भारत के लिए अत्याचार और हिरासत में मौत के मामलों को रोकने और मुकदमा चलाने के लिए जीवन के अधिकार की सुरक्षा की गारंटी देने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों को लेकर अपने कानूनी दायित्वों की पूर्ति में, एक मजबूत कानून बनाने की तीव्र आवश्यकता को रेखांकित करती है।"

    पीपुल्स चेरिएटीर ऑर्गेनाइजेशन (PCO) ने अपने सचिव, लीगल सेल, वकील देवेश सक्सेना के माध्यम से याचिका दायर की कि "हम अपनी पुलिस के औपनिवेशिक रवैये को खत्म करने में विफल रहे।"

    दलीलों में कहा गया है कि डीके बसु मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बावजूद, हिरासत में अत्याचार निरंतर जारी है।

    याचिका मेंं कहा गया,

    "... भारत के कानूनी, विधायी और वैधानिक ढांचे में कानूनी खामियां हैं, जिसके कारण हम हिरासत में हिंसा / रेप / अत्याचार की एक प्रचलित महामारी देख रहे हैं, जो वर्दी में हमारे कुछ लोगों के हाथों कुछ और नहीं बल्कि राज्य मशीनरी द्वारा वैध, सुगम और स्थायी तरीके से मानवाधिकारों के हनन और अपमान के अलावा कुछ भी नहीं है।'

    याचिकाकर्ता का कहना है कि प्रकाश सिंह बनाम संघ (2006 8 SCC 1) और DK बसु बनाम राज्य पश्चिम बंगाल (1997) 1 SCC 1916 के मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित दिशानिर्देशों के क्रियान्वयन में कमी है।

    इस पृष्ठभूमि में, याचिकाकर्ता ने भारतीय विधिक प्रणाली में व्याप्त खामियों को भरने के लिए दिशानिर्देश जारी करने और लागू के लिए प्रार्थना की है, और एक प्रभावी और उद्देश्यपूर्ण रूपरेखा सुनिश्चित करने और जीवन को अधिकार व गरिमापूर्व जीवन के अधिकार को सुनिश्चित करने और सुरक्षित करने के संवैधानिक दायित्व को पूरा करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण और निहित शक्ति के अभ्यास में हिरासत में यातना / मौत / बलात्कार की रोकथाम; के लिए इसे लागू करने की मांग की है।

    याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक स्वतंत्र समिति बनाने के लिए केंद्र सरकार को एक निर्देश देने का भी अनुरोध किया है, जिसमें सभी विभागों / मंत्रालयों के सदस्यों को शामिल किया जाए जो पूरे कानूनी ढांचे की समीक्षा करे और मौजूदा कानूनी ढांचे में खामियों का पता लगाए और हिरासत में यातना / मौतों / बलात्कारों के खतरे को रोके. ताकि विधि आयोग और अंतर्राष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था की सिफारिशों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुरूप विधायी तंत्रों के पुन: निर्धारण को सक्षम बनाया जा सके।

    याचिका को वकील शाश्वत आनंद ने तैयार किया है।

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