सीआरपीसी की धारा 319 के तहत किसी भी व्यक्ति को कोर्ट में बुलाने के लिए ठोस साक्ष्य जरूरी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

27 Nov 2019 11:04 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 319 के तहत किसी भी व्यक्ति को कोर्ट में बुलाने के लिए ठोस साक्ष्य जरूरी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    Cogent Evidence Required To Summon Any Person Under S.319 Of CrPC: Allahabad HC

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 319 के तहत किसी व्यक्ति को कोर्ट में बुलाने के लिए ठोस साक्ष्य आवश्यक हैं और वो ट्रायल कोर्ट, जिसे याचिका पर फैसला देना है, के परीक्षण का विषय हैं।

    अदालत ने कहा, "ये अदालत उत्तरदाता की ओर से विद्वान वकील द्वारा दी गई दलीलों पर जवाब नहीं दे सकती है। ये ट्रायल कोर्ट की जांच का विषय है, जिसे कानून के अनुसार धारा 319 सीआरपीसी के तहत य‌ाच‌िका पर फैसला करना है।"

    ये आदेश ज‌स्टिस नरेंद्र कुमार जौहरी ने द्व‌िजेंद्र नाथ मिश्रा की पुनरीक्षण या‌चिका को अनुमति देते हुए पारित किया। द्विजेंद्र नाथ मिश्रा ने कानपुर के विशेष न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ, जिसके तहत धारा 319 सीआरपीसी के तहत दायर उनके आवेदन में विपक्षी दल संख्या 2 से 7 को आरोपी के रूप में सुनवाई के लिए बुलाने के निवेदन खार‌िज कर दिया गया था, पुनरीक्षण याचिका दायर की थी।

    धारा 319 अदालत की शक्ति को अभियुक्तों के अलावा उन व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए निर्धारित करती है, जिन पर दोषी होने का अनुमान है।

    मौजूदा मामले में दहेज की य‌ाचिकाकर्ता की बेटी को उसके ससुराल वालों ने कथित तौर दहेज न देने पर मार डाला था। नतीजतन, उनके पति और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई। जांच अधिकारी ने अपनी जांच में पार्टी नंबर 2 से 7 के विपरीत, परिवार के सदस्यों की कोई भूमिका नहीं पाई और अपनी अंतिम रिपोर्ट दे दी। ट्रायल के दौरान याचिकाकर्ता ने अपने परीक्षण में दिए साक्ष्यों में विपरीत पार्टी नंबर 2 से 7 के सदस्यों की भागीदारी का उल्लेख किया था और आरोपी के रूप में मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाने के लिए धारा 319 सीआरपीसी के तहत अपना आवेदन दिया। हालांकि यह आवेदन अदालत द्वारा खारिज कर दिया गया था, जिसके चलते वर्तमान संशोधन याचिका दायर करनी पड़ी।

    दलीलें

    याचिकाकर्ता ने कहा कि विपरीत पार्टी के नंबर 2 से 7 के संबंध में जांच अधिकारी ने क्लोजर रिपोर्ट दे दी है तो ये अदालत पर है कि याचिकाकर्ता को विरोध प्रकट करने के लिए नोटिस दे।दलील के लिए राजेश व अन्य बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा 2019 (108) एसीसी 978 के मामले पर भरोसा किया गया, जिसमें कहा गया था कि

    "यह मानते हुए कि एफआईआर में नामजद शेष अभियुक्तों के खिलाफ आरोप-पत्र / चालान न दाखिल करना क्लोजर रिपोर्ट ही कही जा सकती है, उस मामले में भी, कानून के व्यव‌स्थित प्रस्तावों के अनुसार और विशेष रूप से, इसी अदालत के भगवंत सिंह (सुप्रा) के मामले में दिए फैसले के मुताबिक, क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार करने से पहले, मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता/ मूल सूचनकर्ता को नोटिस जारी करने के लिए बाध्य है और शिकायतकर्ता/ मूल सूचनाकर्ता को विरोध आवेदन प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाना आवश्यक है और, इसके बाद, शिकायतकर्ता / मूल सूचनाकर्ता को एक अवसर देने के बाद, मजिस्ट्रेट या तो क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर सकता है या क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार नहीं कर सकता है और उन व्यक्तियों के खिलाफ आगे बढ़ने का निर्देश दे सकता है जिनके लिए क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। "

    उन्होंने आगे कहा कि एग्जामिनेशन इन चीफ धारा 319 सीआरपीसी के तहत आवेदन की अनुमति देने के लिए पर्याप्त सबूत है। हरदीप सिंह व अन्य बनाम स्टेट ऑफ पंजाब 2014 (3) एससीसी 92 पर भरोसा किया गया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा हैः

    "हमे 319 के तहत एग्जामिनेशन इन चीफ के पूरा होने के चरण में अपनी शक्ति के प्रयोग का अधिकार है और अदालत को तब तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है जब तक कि इसके लिए उक्त सबूत का क्रॉस-एग्जामिनेशन नहीं किया जाता है और जो अदालत द्वारा दर्ज किए गए कारणों से जुटाया जा सकता है, जो ऐसे व्यक्ति (ओं) के शामिल होने के संबंध में हो, जो अपराध में मुकदमे का सामना नहीं कर रहे हों। "

    नतीजे

    उत्तरदाताओं द्वारा दिए गए इस तर्क के बावजूद कि कोई भी एफआईआर और एग्जामिनेशन इन चीफ के सबूतों में कोई विशिष्ट भूमिका नहीं सौंपी गई थी, अदालत ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता के आवेदन पर कानून के अनुसार पुनर्विचार करे।

    अदालत ने टिप्पणी की कि धारा 319 में इस्तेमाल की गई भाषा "जहां, अपराध के किसी भी जांच या परीक्षण के दौरान, सबूतों से यह प्रकट होता है कि किसी भी व्यक्ति जो आरोपी नहीं है, अपराध नहीं किया है...", कानूनविदों के इरादे को दर्शाता है कि वहां किसी भी व्यक्ति को बुलाने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ "ठोस सबूत" होने चाहिए।

    इसमें कहा गया है कि अदालत को एग्जामिनेशन इन चीफ के दौरान मुख्य साक्ष्य पर भरोसा करना था क्योंकि जब तक सभी पक्षों को तलब नहीं किया जाता तब तक जिरह संभव नहीं थी।

    "माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार, शिकायतकर्ता ने धारा 319 Cr।PC के तहत आवेदन किया है किकोर्ट में एग्जामिनेशन इल चीफ क‌ी रिकॉर्डिंग के आधार पर विपरीत पार्टी के नं 2 से 7 को ट्रायल के लिए अभियुक्त के रूप में बुलाया जाए।"

    अंत में हाईकोर्ट ने ये कहते हुए कि व्यक्ति, जिसे अदालत के समक्ष बुलाने की मांग की गई थी, उसका मामले में शामिल होने का प्रमाण का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए, निर्देश दियाः

    "संशोधन की अनुमति दी जा सकती है। तारीख 16 अक्टूबर 2017 को अतिरिक्त सत्र / विशेष न्यायाधीश ईसी अधिनियम, 2016 के सत्र ट्रायल संख्या 569 में कानपुर नगर द्वारा पारित किया गया, कानून सम्‍मत न होने के कारण अलग रखा गया है। इस मामले को अदालत में वापस भेज दिया गया है, जिसे कानून के अनुसार धारा 319 सीआरपीसी के तहत आवेदन पर फैसला लेना है।"

    याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व एडवोकेट सर्वेश ने किया और जबकि राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट राम सजीवन मिश्रा ने पक्ष रखा।

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