धारा 21 CPC | मुकदमा दायर करने के स्थान पर आपत्तियों को तब तक अनुमति नहीं दी जा सकती, जब तक कि उन्हें पहले अवसर पर प्रथम दृष्टया न्यायालय में नहीं ले जाया जाता:सुप्रीम कोर्ट
Amir Ahmad
7 Jan 2025 2:29 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 21 के तहत अधिकार क्षेत्र पर आपत्तियां जल्द से जल्द दायर की जानी चाहिए और जब तक अन्याय नहीं होता है, तब तक विलंबित चरण में कोई आपत्ति स्वीकार नहीं की जाएगी।
न्यायालय ने कहा,
"सिद्धांत यह कहता है कि मुकदमा दायर करने के स्थान के बारे में आपत्तियों को तब तक अनुमति नहीं दी जाएगी, जब तक कि ऐसी आपत्ति जल्द से जल्द प्रथम दृष्टया न्यायालय/अधिकरण में नहीं ले ली जाती। इस न्यायालय ने हर्षद चिमन लाल मोदी बनाम डीएलएफ यूनिवर्सल लिमिटेड और अन्य में माना कि यदि ऐसी आपत्ति जल्द से जल्द नहीं ली जाती है तो इसे बाद के चरण में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इन सिद्धांतों को इस न्यायालय ने सुभाष महादेवसा हबीब बनाम नेमासा अंबासा धर्मदास (मृत) एलआरएस और अन्य में दोहराया था।”
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCALT) के उस आदेश को खारिज कर दिया गया, जिसमें दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 (IBC) की धारा 7 के तहत अपीलकर्ता की दिवाला याचिका की स्वीकृति को चुनौती देने वाली एक रिकॉल आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
अपीलकर्ता पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) ने प्रतिवादी नंबर 2 के खिलाफ कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) शुरू करने के लिए IBC की धारा 7 के तहत आवेदन दायर किया।
NCALT कोलकाता ने आवेदन स्वीकार कर लिया, क्योंकि कंपनी का रजिस्ट्रेशन कार्यालय कोलकाता में था। कंपनी ने पीएनबी को अपने पते में कटक में परिवर्तन के बारे में सूचित नहीं किया था। इसके अलावा, कंपनी ने NCALT, कोलकाता के समक्ष कार्यवाही में भाग लिया। बाद में प्रतिवादी नंबर 2 ने CPC की धारा 21 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमे NCALT के प्रवेश आदेश को वापस लेने की मांग की गई, जिसमें दावा किया गया कि पंजीकृत पते में कोलकाता से कटक में परिवर्तन के कारण अधिकार क्षेत्र NCALT कोलकाता के पास नहीं है।
NCALT, कोलकाता द्वारा वापस लेने के आवेदन को खारिज करने के बाद प्रतिवादी नंबर 2 ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत कलकत्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने वापस लेने के आवेदन को खारिज करने वाले NCALT के आदेश को खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट के फैसले से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करके गलती की है।
न्यायालय ने कहा कि चूंकि प्रतिवादियों को NCALT कोलकाता के समक्ष अपीलकर्ता द्वारा शुरू की गई कार्यवाही के बारे में पता था, इसलिए उन्हें धारा 21 के तहत आपत्तियां उठाने में तत्परता दिखानी चाहिए थी।
न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता को पते में हुए बदलाव के बारे में सूचित करने में उनकी विफलता उन्हें बाद में अधिकार क्षेत्र में आपत्तियां उठाने से रोकेगी।
न्यायालय ने कहा कि NCALT के आदेश को रद्द करने का हाईकोर्ट का निर्णय इन तथ्यों की सराहना करने में विफल रहा और अनुच्छेद 227 के तहत सीमित अधिकार क्षेत्र पर पर्याप्त रूप से विचार नहीं किया।
न्यायालय ने कहा,
"हमारे विचार में हाईकोर्ट संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत शक्ति का प्रयोग करने में अधीक्षण की सीमित भूमिका और अधिकार क्षेत्र से अनजान रहा। साथ ही स्पष्ट तथ्यों की पूरी तरह से जांच नहीं की। साथ ही IBC के तहत प्रवेश के आदेश को रद्द करने के परिणामों की भी जांच नहीं की।"
मामले टाइटल: पंजाब नेशनल बैंक बनाम अतीन अरोड़ा और अन्य।