वादी को वाद दायर करने का कारण हासिल हो जाता है जब उसका कोई अधिकार स्पष्ट और जाहिर तौर पर खतरे में हो : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
2 March 2020 4:30 AM GMT
![National Uniform Public Holiday Policy National Uniform Public Holiday Policy](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2020/02/19/750x450_370427-national-uniform-public-holiday-policy.jpg)
Supreme Court of India
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वादी को वाद दायर करने का कारण तब मिल जाता है जब उसके अधिकार के स्पष्ट और जाहिर तौर पर हनन का खतरा होता है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की खंडपीठ ने यह टिप्पणी हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखते हुए की, जिसमें कहा गया था कि ज़ी टेलीफिल्म्स लिमिटेड एवं अन्य के खिलाफ वादियों के वाद निश्चित समय सीमा से प्रतिबंधित नहीं थे।
इस मामले में फिल्म निर्माण, वितरण और सिनेकला प्रदर्शन के व्यवसाय से जुड़े वादियों ने बचाव पक्ष द्वारा नामित चार व्यक्तियों को 23 दिसम्बर 1994 को नौ साल के लिए 16 हिन्दी फिल्मों के सेटेलाइट प्रसारण के अधिकार दिये थे। वादियों ने अधिसूचित फिल्मों को लेकर बचाव पक्षों के अधिकार, टाइटल एवं कॉपीराइट समाप्त करने और इसे लेकर सदा के लिए निषेधाज्ञा जारी करने की मांग को लेकर 2003 में एक मुकदमा दायर किया था।
ट्रायल कोर्ट ने समय सीमा समाप्त होने के आधार पर वाद खारिज करते हुए कहा था कि वाद दायर करने का कारण 1995 में ही उस वक्त सामने आया था जब दिये गये फिल्मों के संदर्भ में प्रथम बचाव पक्ष के दावों की जानकारी वादी को मिली थी और उन्होंने 10 अक्टूबर 1994 के करार के संदर्भ में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करायी थी। ट्रायल कोर्ट ने अन्य सभी मुद्दे वादियों के पक्ष में पाये थे।
हाईकोर्ट ने निश्चित समय सीमा को लेकर ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा और 'दया सिंह और अन्य बनाम गुरदेव सिंह (मृत), (2010) 2 एससीसी 194' मामले का हवाला देते हुए कहा,
वादी को वाद दायर करने का कारण तब मिल जाता है जब उसके अधिकार के स्पष्ट और जाहिर तौर पर हनन का खतरा होता है। वादी ने 23 दिसम्बर 1994 के असाइनमेंट डीड के जरिये नौ साल के लिए अपने अधिकार सौंप दिये थे और इस नौ वर्ष की अवधि के दौरान वाद का कोई कारण नहीं था। जब वादियों ने खुद ही 23 दिसम्बर 1994 को फिल्मों के प्रसारण का अधिकार दे दिया था तो 1995 में उनके अधिकार के लिए कोई खतरा नहीं हो सकता था।
केस का नाम : जी टेलीफिल्म्स लिमिटेड बनाम सुरेश प्रोडक्शन्स
केस नं. : सिविल अपील नं. 1716/2020
कोरम : न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा
वकील : श्रीधर पोटाराजू और टी. रघुराम
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