जजमेंट में वादी की जाति या धर्म का उल्लेख कभी नहीं किया जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों से कहा

Sharafat

12 Oct 2023 12:05 PM IST

  • जजमेंट में वादी की जाति या धर्म का उल्लेख कभी नहीं किया जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों से कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा जजमेंट के काज़ टाइटल में किसी पक्षकार की जाति या धर्म का उल्लेख करने की प्रथा की निंदा की है।

    राजस्थान में एक बाल यौन शोषण मामले से उत्पन्न आपराधिक अपील पर निर्णय लेते समय सुप्रीम कोर्ट ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों के काज़ टाइटल से यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि प्रतिवादी की जाति का उल्लेख किया गया है। न्यायालय ने आगे कहा कि उसी दोष को विशेष अनुमति याचिका में आगे बढ़ाया गया, क्योंकि प्रतिवादी-अभियुक्त का विवरण न्यायालयों के निर्णयों के काज़ टाइटल से कॉपी किया गया होगा।

    जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने फैसले में आदेश दिया ,

    "जब अदालत किसी आरोपी के मामले की सुनवाई करती है तो उसकी कोई जाति या धर्म नहीं होता है। हम यह समझने में असफल हैं कि हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के निर्णयों के टाइटल में आरोपी की जाति का उल्लेख क्यों किया गया है। आरोपी की जाति या धर्म का उल्लेख क्यों किया गया है? किसी वादी का उल्लेख फैसले के काज़ टाइटल में कभी नहीं किया जाना चाहिए।''

    पीठ ने इससे पहले भी 14 मार्च, 2023 को मामले में एक अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें पार्टियों की जाति का नाम उद्धृत करने की प्रथा की निंदा की गई थी।

    पीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा एक बच्ची से बलात्कार के दोषी को दी गई सजा को आजीवन कारावास से घटाकर बारह साल करने के आदेश को चुनौती देने वाली राजस्थान राज्य हाईकोर्ट द्वारा दायर अपील पर फैसला करते हुए ये टिप्पणियां कीं। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को बहाल नहीं किया, लेकिन निर्देश दिया कि दोषी को बिना छूट के 14 साल की सजा काटनी होगी। न्यायालय ने अभियुक्त की कम उम्र (22 वर्ष) को कम करने वाले कारकों में से एक माना।

    न्यायालय ने राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि संबंधित पीड़ित मुआवजा योजना के तहत पीड़ित को उसकी पात्रता के अनुसार मुआवजा तुरंत दिया जाए, यदि पहले से भुगतान नहीं किया गया है।

    न्यायालय ने यौन अपराधों के शिकार बच्चों के समर्थन के संबंध में एक सामान्य निर्देश भी पारित किया।

    ऐसा करना सरकार का कर्तव्य होगा। हम निर्देश दे रहे हैं कि इस जजमेंट की कॉपी राज्य के संबंधित विभागों के सचिवों को भेजी जाएं।”

    केस टाइटल : राजस्थान राज्य बनाम गौतम पुत्र मोहनलाल

    निर्णय पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें




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