किसी सरकारी कर्मचारी को सरकारी आवास देने से इसलिए इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसके पास पहले से कम स्तर का सरकारी आवास है, पढ़िए फैसला

LiveLaw News Network

19 Oct 2019 10:24 AM GMT

  • किसी सरकारी कर्मचारी को सरकारी आवास देने से इसलिए इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसके पास पहले से कम स्तर का सरकारी आवास है, पढ़िए फैसला

    पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि केवल इसलिए कि एक सरकारी कर्मचारी का सरकारी आवास पर कब्जा रहा है, जो उसके पद के अनुसार और कानूनी अधिकारों से कम स्तर का है, उस व्यक्ति को उसके कानूनी अधिकार के अनुसार दूसरा आवास आवंटित करने से इंकार नहीं किया जा सकता।

    इस अवलोकन के साथ, न्यायमूर्ति राजीव नारायण रैना ने चंडीगढ़ प्रशासन को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता, राजिंद्र प्रसाद को उनके अधिकार के अनुसार सरकारी आवास अलॉट करे।

    प्रसाद पंजाब के विधानसभा में ओएसडी हैं, जिन्हें चंडीगढ़ में उपलब्ध सरकारी आवास के पंजाब पूल से "टाइप एक्स" हाउस का आबंटन किया गया था। यह आवंटन बाद में दो कारणों का हवाला देते हुए रद्द कर दिया गया था।

    i चंडीगढ़ में आवास की कमी; तथा

    ii याचिकाकर्ता पहले से ही सरकारी आवास "टाइप XIII" में रह रहा है।

    उल्लेखनीय रूप से टाइप XIII आवास, टाइप X आवास की तुलना में याचिकाकर्ता को मिले अधिकारों के अनुसार छोटा घर है।

    यह कहते हुए कि इन दोनों कारणों का इस्तेमाल याचिकाकर्ता को अपने कानूनी अधिकारों से वंचित करने के लिए "मनमाने ढंग से" नहीं किया जा सकता, न्यायमूर्ति रैना ने कहा कि याचिकाकर्ता को अपने अधिकार के अनुसार सरकारी आवास आवंटित पाने का अधिकार था।

    अदालत ने कहा,

    "सरकारी आवास की कमी के दावे की पुष्टि के लिए कोर्ट के सामने कोई डेटा पेश नहीं किया गया। याचिकाकर्ता अपने अधिकार से एक स्तर कम के आवास में रह रहा है। यह भी आवास के आवंटन से इनकार करने का कोई उचित कारण नहीं होगा।

    एक बार किसी सक्षम अधिकारी द्वारा आवास आबंटित किए जाने के बाद, आदेश को रद्द करने के लिए बहुत ही ठोस आधार मौजूद होना चाहिए और यह कार्रवाई न्यायिक जांच पर खरी उतरनी चाहिए।"

    इन टिप्पणियों के साथ, अदालत ने टाइप एक्स आवास के लिए याचिकाकर्ता के आवंटन को रद्द करने के आदेश को रद्द कर दिया और सरकार को इस संबंध में प्रशासन द्वारा निर्धारित टाइम-लाइन के अनुसार यह आवास याचिकाकर्ता को अलॉट करने का निर्देश दिया।

    याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट विवेक शर्मा ने किया और राज्य के लिए एडवोकेट अमन पाल ने पैरवी की।

    फैसले की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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