'एओआर परीक्षा में दृष्टिबाधित व्यक्ति वकील को सहयोगी लेखक नहीं बना सकता': सीजेआई चंद्रचूड़

Avanish Pathak

7 Dec 2022 4:56 PM IST

  • एओआर परीक्षा में दृष्टिबाधित व्यक्ति वकील को सहयोगी लेखक नहीं बना सकता: सीजेआई चंद्रचूड़

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को टिप्पणी की कि एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (एओआर) की परीक्षा में शामिल दृष्टिबाधित व्यक्ति को ऐसा सहयोगी लेखक उपलब्ध नहीं कराया जा सकता, जिसके पास एलएलबी डिग्री हो या वह वकील हो।

    कोर्ट ने यह टिप्पणी एक दृष्टिबाधित वकील की ओर से उल्लेखित एक मामले में की। वह एओआर परीक्षा में सहायता प्राप्त करने के लिए अपने सहयोगी लेखक (जो एलएलबी डिग्री धारक था) के लिए क्लियरिंग पाने में असमर्थ था। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया गया था।

    सीजेआई चंद्रचूड़ ने एओआर परीक्षा के लिए एलएलबी डिग्री धारक को सहयोगी लेखक के रूप में अनुमति देने पर अपनी अस्वीकृति व्यक्त की।

    उन्होंने कहा,

    "सहयोगी लेखक वह नहीं हो सकता जो एलएलबी डिग्री धारक हो। यह कोई और होना चाहिए। एओआर परीक्षा में सहयोगी लेखक के रूप में एक वकील नहीं हो सकता है।"

    हालांकि, पीठ ने याचिकाकर्ता को एक अलग सहयोगी लेखक प्रदान करने की पेशकश की ताकि वह बिना किसी बाधा के सफलतापूर्वक एओआर परीक्षा दे सके। सीजेआई चंद्रचूड़ ने उल्लेख सुनने के बाद कहा कि वह सहयोगी लेखक के लिए अनुमति देने पर प्रशासनिक आदेश पारित करेंगे

    मामले में याचिकाकर्ता 100% दृष्टिबाधित एडवोकेट था। 2018 में यूपीएससी क्लियर करने के बाद, याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय एजेंसी अनुभाग में सहायक सरकारी वकील (एजीए) के रूप में नियुक्त किया गया था।

    उक्त पद की पहचान भारत सरकार ने RPWD एक्ट के तहत दृष्टिबाधित व्यक्ति के लिए उपयुक्त पद के रूप में की है। हालांकि, केंद्रीय एजेंसी ने याचिकाकर्ता को दृष्टिबाधित होने के कारण सेवा में शामिल होने की अनुमति नहीं दी।

    उसके बाद उन्हें शास्त्री भवन में सहायक कानूनी सलाहकार के पद पर फिर से नियुक्त किया गया। दो साल से अधिक समय तक भारतीय कानूनी सेवा में अधिकारी के रूप में कार्य करने के बाद उसे पता चला कि उसे नियमितीकरण से वंचित किया जा रहा है, क्योंकि कानूनी मामलों के विभाग, कानून और न्याय मंत्रालय ने याचिकाकर्ता को एजीए के रूप में मानना जारी रखा था और उसके नियमितीकरण को इस आधार पर बाधित कर रहा है कि नियुक्त होने के दो साल के भीतर सुप्रीम कोर्ट में एओआर परीक्षा पास करने के लिए एजीए की आवश्यकता होती है।

    याचिकाकर्ता ने याचिका के माध्यम से सहायक सरकारी एडवोकेट सेवा संवर्ग के विकलांग अधिकारियों पर दो साल की अवधि के भीतर एओआर परीक्षा उत्तीर्ण करने की शर्त लगाने को चुनौती दी।

    याचिका में कहा गया कि एओआर परीक्षा में पेपर II की संरचना से दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को नुकसान होता है।

    याचिका के अनुसार, प्रश्न पत्र उम्मीदवार की मसौदा तैयार करने की क्षमता का परीक्षण करता है और इसमें वर्णनात्मक मामले के बयानों से संबंधित प्रश्न शामिल होते हैं, जिन्हें याचिका के प्रारूप के व्यापक ज्ञान के साथ-साथ शामिल कानूनों के व्यापक ज्ञान से सुप्रीम कोर्ट की दलीलों में परिवर्तित करने की आवश्यकता होती है।

    याचिका में कहा गया, "एलएलबी से कम सहयोगी लेखक की योग्यता पर कोई स्पष्टता नहीं है, जिसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति जिसने हायर सेकेंडरी या अंडर ग्रेजुएट पूरा कर लिया है। यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि कानूनी प्रैक्टिस से परिचित हुए बिना सहयोगी लेखक के साथ पेपर देने से उत्तरों में त्रुटियों का खतरा बढ़ जाता है...."

    याचिका के अनुसार, इस तरह की त्रुटियां विकलांग उम्मीदवार के पेपर की गुणवत्ता और सामग्री को खराब कर सकती हैं और उन्हें महत्वपूर्ण अंकों से वंचित कर सकती हैं। इसलिए, याचिका में कहा गया कि इस तरह की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप कीमती समय बर्बाद होता है और विकलांग उम्मीदवारों को दी गई एक घंटे की छूट भी बेकार जाती है।


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