पदों की मंज़ूरी नहीं होने के बाद भी क्या श्रम/औद्योगिक अदालत कर्मियों को नियमित करने का आदेश दे सकती हैं? सुप्रीम कोर्ट ने मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपा

LiveLaw News Network

8 Feb 2020 1:42 PM IST

  • पदों की मंज़ूरी नहीं होने के बाद भी क्या श्रम/औद्योगिक अदालत कर्मियों को नियमित करने का आदेश दे सकती हैं? सुप्रीम कोर्ट ने मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपा

    श्रम और औद्योगिक अदालतों को स्वीकृत पद नहीं होने के बावजूद किसी कर्मी को नियमित करने के बारे में आदेश देने का अधिकार है कि नहीं इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी पीठ को सौंप दिया है।

    न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड बना पेट्रोलियम कोल लेबर यूूनियन में आए फ़ैसले पर ग़ौर किए जाने की ज़रूरत है। औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 2(ra) को पाँचवीं अनुसूची के आइटम 10 के साथ पढ़ने के बाद इनके तहत अनुचित श्रम के चलन के अर्थ और इसके कंटेंट के मुद्दे को एक नई पीठ को सौंपा है।

    अदालत ने कहा कि पीसीएलयू में औद्योगिक अधिकरण को यह अधिकार है कि वह इससे संबंधित विवादों पर फ़ैसला दे।

    इन अपीलों में जो मुद्दा उठाया गया वह यह था कि क्या पीसीएलयू के फ़ैसले में क़ानून और तथ्यों को इस आधार पर नज़रंदाज़ किया गया है कि आईडी अधिनियम पाँचवीं अनुसूची के आइटम 10 की व्याख्या को बाध्यकारी नहीं माना।

    महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय बनाम नासिक ज़िला सेठ कामगार संघ; क्षेत्रीय प्रबंधक, स्टेट बैंक अव इंडिया बनाम राजा राम; क्षेत्रीय प्रबंधक, एसबीआई बनाम राकेश कुमार तिवारी; और तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड बनाम इंजीनियरिंग मज़दूर संघ जैसे मामलों में आए फ़ैसलों पर ग़ौर करते हुए पीठ ने कहा,

    " विस्तृत होने के बावजूद, श्रम अदालत और औद्योगिक अदालत किसी कर्मी को नियमित करने का आदेश नहीं दे सकते अगर यह आदेश आम रोज़गार से जुड़ा हुआ है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 के प्रावधानों में दख़ल देता है।

    किसी कामगार कोई राहत दिलाने के बारे में श्रम या औद्योगिक अदालत के वैधानिक अधिकार उसी स्थिति में उपलब्ध है अगर नियोक्ता ने अनुचित श्रम व्यवहार का दोषी है और उसने रिक्तियाँ होने के बावजूद इस पद पर कोई नियुक्ति नहीं की है और अस्थाई नियुक्तियों, दैनिक वेतनभोगियों से काम चला रहा है जबकि ये लोग कम वेतन पर वही काम कर रहे हैं जो एक नियमित कर्मचारी करता है।"

    अगर जहाँ पद उपलब्ध नहीं है वहाँ स्थाई और स्वीकृत पद बनाने का अधिकार अदालत को नहीं है और उस स्थिति में कर्मचारी को नियमित करने का आदेश सिर्फ़ इस आधार पर नहीं दिया जा सकता कि किसी व्यक्ति ने काफ़ी वर्षों से काम किया है।

    ऐसे कामगार जो नियमित कामगार की तरह ही काम करता है पर उसे उन लाभों से वंचित किया गया है जो नियमित कामगारों को मिलता है, को यह छूट है कि वह श्रम या औद्योगिक अदालत का दरवाज़ा खटखटाए क्योंकि ऐसा करना अनुछेद 14 के प्रावधानों का उल्लंघन है।

    अनुचित श्रम व्यवहार तो तब होगा जब नियोक्ता किसी कामगार को बदली, अल्पकालिक या कैजुअल के रूप में सालों तक काम लिया है और इस तरह उसे नियमित कर्मचारियों को मिलनेवाले लाभों से वंचित किया है।

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