क्या है बिजो इमैनुएल केस? जिसका जिक्र जस्टिस सुधांशु धूलिया ने हिजाब मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए किया

Brij Nandan

13 Oct 2022 4:24 PM GMT

  • हिजाब केस

    हिजाब केस

    हिजाब मामले (Hijab Case) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के दोनों जजों ने अलग-अलग फैसला सुनाया।

    जस्टिस हेमंत गुप्ता (Justice Hemant Gupta) ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, वहीं दूसरे जज जस्टिस सुधांशु धूलिया (Justice Sudhanshu Dhulia) ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज किया।

    जस्टिस धूलिया ने जस्टिस गुप्ता से एक अलग विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आक्षेपित आदेश की वैधता का परीक्षण अनुच्छेद 19(1)(ए) और 25(1) के आधार पर किया जाना चाहिए। मेरे फैसले का मुख्य जोर यह है कि आवश्यक धार्मिक प्रथाओं की यह पूरी अवधारणा, मेरी राय में इस विवाद के निपटान के लिए आवश्यक नहीं थी। उच्च न्यायालय ने वहां गलत रास्ता अपनाया। यह केवल अनुच्छेद 19(1)(a) और अनुच्छेद 25(1) का प्रश्न था। हिजाब पहनना पसंद की बात है।

    उन्होंने कहा कि यह लड़कियों की शिक्षा का मामला है। उन्होंने स्वीकार किया कि लड़कियों को अपनी शिक्षा के साथ-साथ अवैतनिक देखभाल और घरेलू काम का बोझ उठाना पड़ता है। जस्टिस धूलिया ने आश्चर्य जताया कि क्या उस पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने से एक बालिका का जीवन बेहतर होगा।

    इसके साथ ही जस्टिस सुधांशु ने बिजो इमैनुएल केस में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट की भी जिक्र किया।

    क्या है बिजो इमैनुएल केस?

    अगस्त 1986 में जस्टिस ओ चिन्नप्पा रेड्डी और जस्टिस एम एम दत्त की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बिजो इमैनुएल एंड अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य मामले में, अंतरराष्ट्रीय धार्मिक संप्रदाय 'यहोवा साक्षी संप्रदाय' के तीन बच्चों को सुरक्षा प्रदान की, जो स्कूल में राष्ट्रगान नहीं गाया था।

    दरअसल, 1985 में कोट्टायम जिले के किदंगूर में भाई-बहन यानी 15 साल के बिजो इमैनुएल जो 10 वीं में पढ़ते थे और 14 साल की बीनू और और 10 साल की बिंदू कक्षा 9वीं और 5 वीं में पढ़ रहे थे। राष्ट्रगान नहीं गाने पर एक शिकायत के बाद उनके स्कूल से निलंबित कर दिया गया था।

    तीनों हिंदू संगठन नायर सर्विस सोसाइटी द्वारा संचालित एनएसएस हाई स्कूल के छात्र थे। उस समय स्कूल में यहोवा के साक्षियों के धार्मिक संप्रदाय के 11 विद्यार्थी थे।

    उनके माता-पिता, कॉलेज के प्रोफेसर वीजे इमैनुएल और मां लिलिकुट्टी ने उच्च न्यायालय का रुख किया, जहां एकल पीठ ने याचिका खारिज कर दी।

    बच्चों के पिता वी.जे. इमानुएल ने याचिका दायर कर कहा था कि यहोवा के साक्षियों के लिए केवल यहोवा की उपासना की जानी चाहिए। चूंकि राष्ट्रगान एक प्रार्थना थी, इसलिए उनके बच्चे सम्मान के साथ खड़े हो जाते थे, लेकिन उन्हें इसे गाने की अनुमति नहीं दी।

    उनकी पुन: अपील भी विफल रही, जिसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट ने राहत प्रदान की थी।

    अदालत ने फैसले में कहा था कि बच्चों को जबरन राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर करना उनके धर्म के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

    कोर्ट ने कहा था कि स्कूल से तीन बच्चों का निष्कासन इस कारण से कि उनकी कर्तव्यनिष्ठा धार्मिक आस्था के कारण वे सुबह की सभा में राष्ट्रगान नहीं गाए थे। हालांकि वे राष्ट्रगान के समय सम्मानपूर्वक खड़े रहते थे। यह अंतरात्मा की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

    कोर्ट में जीत के बाद इमैनुएल के तीन बच्चे सिर्फ एक दिन के लिए स्कूल गए। परिवार ने तब अपने सात बच्चों में से किसी के लिए औपचारिक शिक्षा जारी नहीं रखने का फैसला किया।

    उनके पिता ने कहा था,

    "मैं अपने बच्चों के स्कूल में पढ़ने के अधिकार की रक्षा नहीं करने के लिए अदालत गया था। यह यहोवा के साक्षियों के सभी सदस्यों की उपासना की स्वतंत्रता के लिए था।"

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