बिहार जाति सर्वेक्षण - केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दायर वह हलफनामा वापस लिया जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार जनगणना जैसी कोई कार्रवाई नहीं कर सकती

Sharafat

29 Aug 2023 5:30 AM GMT

  • बिहार जाति सर्वेक्षण - केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दायर वह हलफनामा वापस लिया जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार जनगणना जैसी कोई कार्रवाई नहीं कर सकती

    केंद्र सरकार ने बिहार जाति सर्वेक्षण मामले में पहले के हलफनामे को वापस लेते हुए एक नया हलफनामा दायर किया है। पहले दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि "संविधान के तहत या अन्यथा कोई भी निकाय जनगणना या जनगणना के समान कोई कार्रवाई करने का हकदार नहीं है।"

    दायर दूसरे हलफनामे में केंद्र ने कहा कि उपरोक्त पैराग्राफ "अनजाने में आ गया" था।

    "यह प्रस्तुत किया गया है कि केंद्र सरकार ने सोमवार को सुबह एक हलफनामा दायर किया है। उक्त हलफनामे में अनजाने में पैरा 5 आ गया है, इसलिए उक्त हलफनामा वापस लिया जाता है और यह वर्तमान हलफनामा सरकार की ओर से नया हलफनामा होगा।"

    दूसरे हलफनामे में यह दलील बरकरार रखी गई है कि जनगणना 1948 के जनगणना अधिनियम द्वारा शासित एक वैधानिक प्रक्रिया है, जिसे संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची I की प्रविष्टि 69 के तहत शक्तियों के प्रयोग में अधिनियमित किया गया था।

    हलफनामे में यह भी कहा गया है -

    "केंद्र सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के उत्थान के लिए सभी सकारात्मक कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है।"

    पिछली सुनवाई पर भारत के सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने इस तरह के सर्वेक्षण के आसपास की कानूनी स्थिति पर केंद्र सरकार के विचारों को रिकॉर्ड पर रखने के लिए एक हलफनामा दायर करने की अदालत से अनुमति मांगी थी। उन्होंने कहा था कि इसके कुछ 'प्रभाव' हो सकते हैं। हालांकि कानून अधिकारी ने तुरंत स्पष्ट किया कि केंद्र मुकदमेबाजी का न तो विरोध कर रहा है और न ही समर्थन कर रहा है।

    जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ बिहार सरकार के जाति-आधारित सर्वेक्षण को बरकरार रखने के पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ गैर-सरकारी संगठनों यूथ फॉर इक्वेलिटी और एक सोच एक प्रयास की याचिका पर सुनवाई कर रही है। यह फैसला उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ द्वारा सुनाया गया, जिसने इस तर्क को खारिज कर दिया कि जाति के आधार पर डेटा एकत्र करने का प्रयास जनगणना के बराबर है और इस अभ्यास को "उचित योग्यता के साथ शुरू की गई पूरी तरह से वैध" माना गया। हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाएं भी दायर की गई हैं, जिनमें नालंदा निवासी अखिलेश कुमार भी शामिल हैं।

    Next Story