भोपाल गैस त्रासदी : जस्टिस रवीन्द्र भट ने मामले की सुनवाई करने वाली बेंच से खुद को अलग किया
LiveLaw News Network
29 Jan 2020 11:57 AM IST

पांच न्यायाधीशों की नई पीठ भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजे के लिए केंद्र सरकार की क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई करेगी। न्यायमूर्ति रवींद्र भट पहले इस मामले में केंद्र के लिए पेश हुए थे और उन्होंने खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया है। अब इस मामले में सुनवाई के लिए नई बेंच का गठन किया जाएगा।
अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कंपनी (जो अब डॉव केमिकल्स के स्वामित्व में है) से भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे के लिए क्यूरेटिव याचिका केंद्र द्वारा दायर की गई थी।
यह मामला 2011 में केंद्र द्वारा भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड ( जो अब डॉव केमिकल्स के स्वामित्व में है) से अतिरिक्त मुआवजे दिलाने के लिए दायर एक क्यूरेटिव पिटीशन से संबंधित है।
दिसंबर 2010 में दायर याचिका में 7413 करोड़ रुपये के अतिरिक्त मुआवजे की मांग की गई थी, साथ ही सुप्रीम कोर्ट के 14 फरवरी, 1989 के फैसले के पुनर्परीक्षण की मांग की गई थी, जिसमें क्षतिपूर्ति की राशि 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर (750 करोड़ रुपये) तय की गई थी। 15 फरवरी और 4 मई के आदेशों में भुगतान और समझौते के तरीकों का निर्धारण किया गया था।
केंद्र सरकार के अनुसार, पहले का समझौता भोपाल गैस त्रासदी में हुए नुकसान, मृतकों और घायलों की संख्या की गलत धाराणाओं पर आधारित था। उस समझौते में दुर्घटना से हुए पर्यावरणीय नुकसान को भी ध्यान में नहीं रखा गया था। पुराना समझौता 3,000 मौतों और 70,000 घायलों आंकड़े पर आधारित था, जबकि क्यूरेटिव पिटीशन में मृतकों की संख्या 5,295 और घायलों की संख्या 527,894 होने का दावा किया गया है।
उपभोक्ता मामले: विरोधी का पक्ष दायर करने के लिए 30 दिनों की समय सीमा का आरंभिक बिंदु? न्यू इंडिया एस्योरेंश कंपनी लिमिटेड बनाम हिल्ली मल्टीपरपज कोल्ड स्टोरेज प्रा लिमिटेड इन मामलों में संदर्भित मुद्दा है: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 13 के तहत निर्धारित 30 दिनों की समय सीमा का प्रारंभ बिंदु क्या है?
रिफरिंग बेंच ने कहा है कि जेजे मर्चेंट के मामले में की गई घोषणा, कि 30 दिनों की अवधि की गणना न्यायिक इकाई द्वारा शिकायत की स्वीकृति की सूचना प्राप्त होने की तारीख से किया जाना चाहिए, का एक्ट के पाठ में कोई आधार नहीं है। बेंच के अनुसार, ऐसी नोटिस प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर बयान दर्ज करने की जिद किसी महत्वपूर्ण उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर सकती है, जबकि लिखित बयान दाखिल होने के बाद मामले को न्यायिक इकाई द्वारा तुरंत उठाए जाने की कोई संभावना नहीं है।