आरबीआई की आरटीआई नोटिस के खिलाफ बैंकों की याचिकाएं: मामले जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच को भेजे गए

LiveLaw News Network

17 Aug 2021 11:25 AM GMT

  • आरबीआई की आरटीआई नोटिस के खिलाफ बैंकों की याचिकाएं: मामले जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच को भेजे गए

    सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने मंगलवार को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी आरटीआई नोटिस को चुनौती देने वाली विभिन्न बैंकों द्वारा दायर रिट याचिकाओं के एक बैच को जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ को भेज दिया।

    जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने मामलों को जस्टिस राव की पीठ को भेज दिया क्योंकि उस पीठ ने पहले मामले में पिछले मुकदमों का निपटारा किया था।

    भारतीय स्टेट बैंक, एचडीएफसी बैंक लिमिटेड, पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एक्सिस बैंक, आईसीआईसी बैंक आदि ने भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उन्हें धारा 11( 1) आरटीआई अधिनियम के तहत वित्तीय वर्ष 17-18 और वित्त वर्ष 18-19 के सालों की निरीक्षण रिपोर्ट या जोखिम मूल्यांकन रिपोर्ट के प्रकटीकरण के संबंध में दिए गए नोटिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

    इस साल 28 अप्रैल को, जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारतीय रिजर्व बैंक बनाम जयंतीलाल एन मिस्त्री मामले में 2015 के फैसले को वापस लेने से इनकार कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि आरबीआई बैंकों से संबंधित डिफॉल्टरों की सूची, निरीक्षण रिपोर्ट, वार्षिक विवरण आदि का आरटीआई अधिनियम के तहत का खुलासा करने के लिए बाध्य है।

    उस बेंच ने बैंकों के आवेदनों को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के नियमों में किसी फैसले को वापस लेने के लिए कोई आवेदन दाखिल करने का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि, पीठ ने बैंकों को जयंतीलाल मिस्त्री के फैसले के खिलाफ अन्य उपलब्ध कानूनी उपायों का उपयोग करने की स्वतंत्रता दी थी।

    उसके बाद, बैंकों ने आरबीआई द्वारा उन्हें जारी किए गए आरटीआई नोटिस को चुनौती देते हुए अलग-अलग रिट याचिकाएं दायर की हैं, जिसमें तर्क दिया गया है कि संवेदनशील वित्तीय जानकारी का खुलासा उनके व्यवसाय के लिए हानिकारक होगा और जमाकर्ताओं की गोपनीयता से समझौता करेगा। वे रिट याचिकाएं अब जस्टिस राव की पीठ के पास भेज दी गई हैं।

    कोर्ट रूम एक्सचेंज

    जस्टिस नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान हस्तक्षेप करने वाले पक्ष श्री गिरीश मित्तल की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि बैंकों द्वारा दायर रिट याचिका कानून का कोई बड़ा सवाल नहीं उठाती है क्योंकि मामला भारतीय रिजर्व बैंक बनाम जयंतीलाल मिस्त्री (2015) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही पहले ही तय किया गया।

    भूषण ने बताया कि जस्टिस राव की अगुवाई वाली पीठ ने 2019 में जयंतीलाल मिस्त्री के फैसले का पालन नहीं करने के लिए आरबीआई को अवमानना ​​का जिम्‍मेदार भी पाया था। अवमानना ​​याचिका भूषण के मुवक्किल गिरीश मित्तल ने दायर की थी।

    उन्होंने कहा, "फैसला पारित होने के वर्षों बाद, जब कोर्ट ने गिरीश मित्तल के फैसले में इन बैंकों की अवमानना को ​​माना, तो उन्होंने इन रिट याचिकाओं को प्राथमिकता दी।"

    भूषण ने प्रस्तुत किया कि मामले को जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने अवमानना ​​याचिका और बैंकों के रिकॉल एप्‍ल‌िकेशन्स पर विचार किया था।

    उन्होंने सुनवाई योग्य होने के सवाल पर एक प्रारंभिक आपत्ति भी उठाई, यह तर्क देते हुए कि जयंतीलाल मिस्त्री के समय, इन मुद्दों को सुलझा लिया गया था, और जो बैंक मौजूदा मामलों में याचिकाकर्ता हैं, उनका प्रतिनिधित्व इंडियन बैंक एसोसिएशन (आईबीए) के माध्यम से किया गया था, जिनके पास बहस करने का अवसर था।

    उन्होंने न्यायालय को बताया कि सभी निजी बैंक आईबीए के सदस्य हैं, और सरकार के साथ उनके सभी कम्यूनिकेशन आईबीए के माध्यम से होते हैं।

    याचिकाकर्ता बैंकों में से एक की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि मिस्त्री के फैसले में मुद्दों को पूरी तरह से निपटाया नहीं गया था, बल्कि धारा 8 (1) (ई) के तहत केवल छूट का तर्क दिया गया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि धारा 8 के तहत अन्य सभी छूटों से संबंधित प्रश्न पर फैसला होना बाकी है, इस प्रकार 3 जजों की पीठ की निगरानी की आवश्यकता है।

    आईबीए के माध्यम से प्रतिनिधित्व के सवाल पर, सीनियर एडवोकेट रोहतगी ने तर्क दिया कि 'केवल इसलिए कि एक एसोसिएशन एक पार्टी है, इसका मतलब यह नहीं है कि बैंकों का प्रतिनिधित्व किया गया था'। उन्होंने रिकॉल के आदेश पर ध्यान दिलाया जिसके तहत वर्तमान याचिकाओं को जस्टिस नागेश्वर राव द्वारा सुने गए आवेदनों से डी-टैग किया गया था, इस प्रकार इसे उसी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने की आवश्यकता नहीं थी।

    सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने यह भी तर्क दिया कि रिकॉल एप्‍‌ल‌िकेशन्स को खारिज करते समय, रिट याचिकाओं के गुण-दोष से कोई लेना-देना नहीं था। इस प्रकार, निर्णय के लिए प्रश्न खुले रहते हैं। उन्होंने मित्तल की मंशा पर संदेह जताया, जो पुट्टस्वामी के फैसले में बरकरार रखे गए बैंकों और उसके ग्राहकों की गोपनीयता से संबंधित चिंताओं का हवाला देते हुए 'गोपनीय जानकारी तक पहुंच की मांग कर रहे हैं।

    रोहतगी के तर्कों का समर्थन करते हुए, सीनियर एडवोकेट केवी विश्वनाथन ने कहा कि यदि मांगी गई जानकारी को उसके मूल रूप में जनता के लिए प्रकट किया जाता है, तो इससे परेशानी होगी और अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान हो सकता है।

    जस्टिस नजीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने तर्कों के गुण-दोष पर कुछ भी कहे बिना यह विचार व्यक्त किया कि मामलों की सुनवाई जस्टिस राव की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा की जानी चाहिए।

    शीर्षक: एचडीएफसी बैंक बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और जुड़े मामले।

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