बाबरी विध्वंस केस : कल्याण सिंह द्वारा धार्मिक भावना को चोट पहुंचाने का कोई साक्ष्य नहीं, उपद्रवी कारसेवकों ने नहीं सुनी अशोक सिंघल की बात (पढ़िए निर्णय)

LiveLaw News Network

30 Sep 2020 12:48 PM GMT

  • बाबरी विध्वंस केस : कल्याण सिंह द्वारा धार्मिक भावना को चोट पहुंचाने का कोई साक्ष्य नहीं, उपद्रवी कारसेवकों ने नहीं सुनी अशोक सिंघल की बात (पढ़िए निर्णय)

    Babri Masjid Demolition Case read judgement

    लखनऊ की एक विशेष सीबीआई अदालत ने बुधवार को 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के पीछे आपराधिक साजिश रचने के आरोपी सभी 32 व्यक्तियों को बरी कर दिया। बरी किए गए लोगों में प्रमुख भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह आदि शामिल हैं।

    विशेष सीबीआई न्यायाधीश एस के यादव ने 2000 पन्नों के अपने फैसले में कहा कि मस्जिद के विध्वंस की पूर्व योजना नहीं थी और इसके पीछे कोई आपराधिक साजिश नहीं थी।

    न्यायालय ने कहा कि विध्वंस पूर्व नियोजित नहीं था और आरोपियों ने वास्तव में भीड़ को रोकने और उन्हें उकसाने की कोशिश नहीं की थी। अदालत ने कहा, "जो लोग गुंबद पर चढ़ गए, वे असामाजिक तत्व हैं।"

    अदालत ने कहा किया कि सीबीआई द्वारा प्रस्तुत ऑडियो और वीडियो क्लिप की प्रामाणिकता साबित नहीं हुई है। 32 अभियुक्तों में से 26 आज शारीरिक रूप से अदालत में उपस्थित थे। आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह सहित छह अभियुक्तों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए। उमा भारती कुछ दिन पहले COVID-19 पॉज़िटिव पाई गई थी।

    बाबरी विध्वंस केस में फैसला सुनाते हुए जज सुरेन्द्र कुमार यादव ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं हैं। विवादित ढांचा गिराने की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी बल्कि यह घटना अचानक हुई थी।

    घटनास्थल पर सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त थी, सशस्त्र सीआरपीएफ तैनात

    कोर्ट ने कहा,

    " दस्तावेज़ों के अवलोकन से यह भी स्पष्ट है कि अभियोजन के कई गवाह ने स्पष्ट रूप से बताया है कि घटनास्थल पर सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त थी। विवादित ढांचे की सुरक्षा त्रिस्तरीय थी। जिला अधिकारी द्वारा बराबर निर्देश दिये जा रहे थे। इस सम्बन्ध में सबसे महत्वपूर्ण साक्षी-1 प्रियम्बदा नाथ शुक्ला है, जिनके बयान के अनुसार वह घटना के समय थानाध्यक्ष रामजन्म भूमि के रूप में तैनात थे तथा विवादित ढांचा उनके क्षेत्राधिकार में होने के कारण सुरक्षा सम्बन्धी प्रत्येक मीटिंग में जाया करते थे। इस साक्षी द्वारा सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त बताई गई

    आई.ए.एस. व एस.एस.पी. व कई पुलिस अधीक्षक व अन्य कई पुलिस कर्मियों की डयूटी लगाई गई थी। विवादित ढांचे की सुरक्षा त्रिस्तरीय थी और उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सशस्त्र सीआरपीएफ की थी। रामकथाकुंज जो विवादित ढांचे से 800 मीटर दूर था, वहीं पर मंच बनाया गया था। कई गुप्तचर एजेन्सिया भी कार्य कर रही थी।"

    उपद्रवी कारसेवकों ने नहीं सुनी अशोक सिंघल की बात,घटना अचानक घटी

    अदालत ने अपने फैसले में कहा,

    " दिनांक 6.12.92 को कारसेवकों के समूहों में से एक अराजक समूह द्वारा गिरा दिया गया लेकिन उसकी सुरक्षा की व्यवस्था प्रदेश सरकार द्वारा की गई थी, इसकी पुष्टि इस साक्ष्य से भी होती है कि विवादित परिसर में दिनांक 6.12.92 को लाखेां कारसेवक मौजूद थे, महिलाये, बुजुर्ग थे एवं पत्रकार, मीडियाकर्मी थे और सबके बैठने के लिए उचित व्यवस्था की गई थी, टेन्ट लगाये गये थे।

    मंच से उपद्रवी कारसेवकों को बाहर निकालने का निर्देश दिया गया तथा अशोक सिंघल द्वारा भी कारसेवकों को विवादित ढांचे की तरफ जाने से मना किया गया तो वह उन्हीं पर हमलावर हो गये और किसी की न सुनते हुए विवादित ढांचे पर चढ़ कर उसे तोड़ दिया गया, जिससे यह स्पष्ट है कि घटना अचानक शुरू हुई थी और इसकी आंशका स्वयं अभियुक्त को नहीं थी।"

    कल्याण सिंह द्वारा धार्मिक भावना को चोट पहुंचाने का कोई साक्ष्य नहीं

    अदालत ने अपने विस्तृत फैसले में कहा,

    " इस बात की भी पुष्टि भी अभियोजन के कई साक्षीगण ने अपने अपने बयानों में की है। अभियुक्त कल्याण सिंह द्वारा किसी व्यक्ति की धार्मिक भावना को चोट पहुंचाने या किसी उपासना स्थान को या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गई किसी वस्तु को नष्ट, नुकसानग्रस्त या अपवित्र करने के आशय से कोई अपमान किये जाने का कोई साक्ष्य रिकॉर्ड पर नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि अभियुक्त द्वारा किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं आहत किया गया या पूजा स्थल को अपमानित किया गया तथा देश की एकता व अखंडता को कोई चोट पहुंचाई गई। वैसे भी विवादित ढांचे में नमाज अदा करने का कोई साक्ष्य भी नहीं है।"

    पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि आईजी सीके मलिक भी एक महत्वपूर्ण साक्षी थे, जिनको सीबीआई ने न्यायालय में पेश नहीं किया। पीडब्लू 293 एक औपचारिक साक्षी है, जिनके द्वारा अभियोजन स्वीकृति के आदेश पर तत्कालीन विशेष सचिव गोपाल कृष्ण के हस्ताक्षर की पहचान की गई है।

    वीडियो कैसेट की सत्यता के सम्बन्ध में का परीक्षण नहीं हुआ

    मुख्य विवेचक पीडब्लू 294 द्वारा वस्तु प्रदर्शक 313 आपकी अदालत का वीडियो कैसेट को न्यायालय में साबित किया गया हैं किन्तु इसकी रिकार्डिग किये जाने वाले साक्षी को न्यायालय में पेश नहीं किया गया।

    इसका संग्रह विवेचक एन.एस. विर्क द्वारा किया गया है। इस कैसेट की सत्यता के सम्बन्ध में विधि विज्ञान प्रयोगशाला से विर्क द्वारा जांच नहीं कराई गई थी। कहने का तात्पर्य है कि वस्तु प्रदर्श 311 व 312 का भी परीक्षण विधि विज्ञान प्रयोगशाला से नहीं कराया गया और न ही इस कैसेट को बनाने वाले को पेश नहीं किया गया।

    कैसेट को सील करने का कोई प्रमाण दाखिल नहीं किया गया है। इस न्यायालय में परीक्षित विभिन्न पुलिस अधिकारीगण व कर्मचारीगण द्वारा दिए गए अभियोजन साक्षीगण के रूप में उनके साक्ष्य की विवेचना विस्तारपूर्वक की जा चुकी है।

    अभियोजन के अन्य अधिकारी व कर्मचारी गवाहों ने भी अपने अपने बयानों में कहा है कि सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त थी। कुछ जनता के साक्षी ने भी सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त होना कहा है।

    सीआरपीएफ जाम के कारण नहीं पहुंच सकी

    अदालत ने अपने फैसले में कहा,

    " महत्वपूर्ण यह है कि सुरक्षा व्यवस्था कहां की देखी जानी चाहिए। सुरक्षा व्यवस्था गर्भ गृह की मुख्य रूप से की जानी थी, जिसके चारों तरफ 10 से 12 फुट ऊंचे एंगल लगा कर उसमें कटीले व धारदार तारों से उसे घेरा गया था तथा गर्भ गृह के अन्दर भी सीआरपीएफ तैनात थी। गर्भ गृह के बाहर पीएसी व यूपी पुलिस के अधिकारी व कर्मचारी तैनात थे।

    फ्रिस्किंग गेट भी बनाया गया था किन्तु कारसेवकों की संख्या अधिक होने के कारण भीड़ अनियत्रित हो गयी, इस बात के साक्ष्य भी पत्रावली पर मौजूद हैं। लगभग 12 बजे तक सब कुछ सामान्य था और सब कुछ नियंत्रण में था किन्तु 12 बजे के बाद कारसेवकों के समूह में से ही एक समूह अराजकता को अपनाते हुए पहले तो ढांचे के पीछे से पथराव करने लगा और फिर एक समूह बैरिकटिंग को तोड़ कर विवादित ढांचे पर चढ़ कर तोड़ फोड़ करने लगा।

    रिपोर्ट के अवलोकन से स्पष्ट है कि कारसेवक अचानक पथराव करते हुए विवादित परिसर के अन्दर घुस गये। पीएसी सीआरपी ने लाठी चार्ज किया और टीयर गैस चलाया गया। इसका कोई असर नहीं हुआ। हजारों कारसेवकों मे फैजाबाद से अयोध्या की सड़क को जाम कर दिया तथा सीआरपीएफ बिना गोली चलाये जिसमें नरसंहार हो सकता है, अयोध्या नहीं पहुंच सकती थी।"

    निर्णय में आगे कहा गया कि

    " उपरोक्त प्रपत्रों के अवलोकन से स्पष्ट है कि सरकार द्वारा जब दिन के 12 बजे विवादित परिसर में कारसेवकों का एक समूह तोड़ फोड़ करने पर उतारू हो गया तो तुरंत सीआरपीएफ बल का प्रयोग करने हेतु सम्बन्धित को निर्देशित किया गया। सीआरपीएफ अयोध्या इसलिए नहीं पहुंच सकी क्योंकि जगह जगह फैजाबाद से अयोध्या जाने वाली सड़क को जाम कर दिया गया।"

    आरोपियों के खिलाफ सबूत नहीं

    अदालत ने कहा कि ,

    " आरोपियों के विरूद्व यह साक्ष्य नहीं है कि उनके द्वारा किसी लोक सेवक को उसके कर्तव्यों के निर्वहन से रोकने का प्रयास करते हुए उन्हें उपहति या घोर उपहति कारित की गई हो। आईपीसी की धारा 332 एवं धारा 338 के आरोप भी साबित नहीं किया जा सके। अभियुक्तगण के विरूद्व धारा 201 आईपीसी का भी आरोप विरचित किया गया है।

    आईपीसी की धारा 201 के अधीन कोई भी आरोप लागू होने के लिए अभियोजन को यह अवश्य ही साबित करना चाहिये कि-

    1. कोई अपराध कारित हुआ है।

    2. ऐसे अपराध के किए जाने के विषय में अभियुक्त जानता था या उसमें विश्वास करने के उसके पास कारण थे।

    3. यह कि ऐसे ज्ञान अथवा विश्वास के साथ उसने-

    (क) उस अपराध के किए जाने के किसी साक्ष्य का विलोपन कारित किया था, या

    (ख) उस अपराध के सम्बंध में कोई इत्तिला दी थी जिसे वह

    जानता था तथा विश्वास करता था कि वह मिथ्या है।

    4. जैसा कि ऊपर कहा गया है उसने यह सब अपराधी को वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करने के आशय से किया था।

    5. यदि आरोप गुरूतर स्वरूप का है तो यह भी साबित करना पड़ेगा कि जिस अपराध के सम्बन्ध में अभियुक्त ने उपरोक्त

    (3) तथा (4) में वर्णित कार्य किया था वह मृत्युदण्ड या, आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक के लिए कारावास से दण्डनीय था।

    पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर अभियोजन द्वारा धारा 201 आईपीसी में उल्लिखित आवश्यक शर्तो के सम्बन्ध में किसी अभियुक्त के विरूद्व कोई साक्ष्य नहीं दिया गया, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि किसी अभियुक्त द्वारा दिनांक 6.12.92 की घटना के पश्चात किसी साक्ष्य को विलोपित किया गया अथवा किसी प्रकार के अपराध को कारित करने वाले किसी व्यक्ति को वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करें या प्रतिच्छादित किया हो या उस आशय से उस अपराध से सम्बन्धित कोई ऐसी इत्तिला दिया हो जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान व विश्वास रहें।

    अभियुक्तगण द्वारा इस प्रकार की कोई सूचना कि वह मिथ्या थी अथवा न ही अभियुक्तगण को उस सूचना के मिथ्या होने का विश्वास था, किसी व्यक्ति को या सम्वाददाता को दी गई हो। इस प्रकार अभियुक्तगण के विरूद्व धारा 201 आईपीसी का आरोप भी पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर साबित नहीं हेाता है।

    लालकृष्ण आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी की ओर से तर्क, एक घटना की दो एफआईआर

    आरोपी लालकृष्ण आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी के वकील श्री एम.पी. अहलूवालिया द्वारा तथा बचाव पक्ष के अन्य वकीलों द्वारा यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि एक ही घटना की दो प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। प्रथम सूचना रिपोर्ट अपराध संख्या-197/92 थाना रामजन्म भूमि के थानाध्यक्ष प्रियम्बदानाथ शुक्ला द्वारा अज्ञात कारसेवकों के विरूद्व घटना का समस्त विवरण देते हुए घटना का समय दिन का 12.00 बजे बताते हुए थाना रामजन्म भूमि में सायं 5.00 बजे पंजीकृत कराई गई।

    दूसरी प्रथम सूचना रिपोर्ट थाना रामजन्म भूमि के चौकी इंचार्ज गंगा प्रसाद तिवारी द्वारा अपराध संख्या 198/92 के रूप में घटना का समय 10.00 बजे दिखाते हुए थाना रामजन्म भूमि में शाम 5.00 बजे ही पंजीकृत कराई गई है।

    अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि द्वितीय प्रथम सूचना रिपोर्ट आफटर थॉट है क्योंकि इसमें अभियुक्तगणों को नामित करते हुए उन्हें झूठा फंसाया गया है। यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि इसमें जानबूझ कर तथ्य ''नेता व साधू संत आदि तमाम वक्ता मंच से भाषण दे रहे थे एवं कारसेवकों को उत्तेजित कर रहे थे, यह तथ्य 48 प्रथम सूचना रिपोर्ट, जो दर्ज कराई गई है, में उल्लिेखित नहीं किया गया है।

    अपराध संख्या 197/92 के वादी प्रियम्बदा नाथ शुक्ला को न्यायालय रायबरेली एवं इस न्यायालय दोनों में परीक्षित कराया गया है। उनके द्वारा 197/92 में वर्णित कथनों का समर्थन किया गया है।

    इस प्रथम सूचना रिपोर्ट में किसी नेता का नाम नहीं है, जबकि अपराध संख्या- 198/92 में नेताओं को नामित कर दिया गया और साथ साथ ही नारे आदि का भी उल्लेख कर दिया। परीक्षित साक्षी प्रियम्बदा नाथ शुक्ला द्वारा कोई स्पष्टीकरण इस सम्बन्ध में अपने बयान में नहीं दिया गया है।

    पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि दोनों प्रथम सूचना रिपोर्ट की विवेचना एक साथ सीबीआई द्वारा करने के पश्चात अभियुक्तगण के विरूद्व आरोप पत्र प्रेषित किया गया है। यह सही है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट बाबत अपराध संख्या-197/92 में घटना का समय 12.00 बजे एवं अपराध संख्या 198/92 में 10.00 बजे अंकित कराया गया है।

    यदि एक ही अपराध संख्या की दो प्रथम सूचना रिपोर्ट अंकित हो जाये और उसकी विवेचना एक साथ की जाय तो इसमें कोई अवैधानिकता नहीं है। समस्त समीक्षा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर की गई है।

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