अवध बार एसोसिएशन चुनाव: सुप्रीम कोर्ट ने नए सिरे से चुनाव कराने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की
LiveLaw News Network
25 Sept 2021 8:30 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने अवध बार एसोसिएशन के चुनाव प्रक्रिया को रद्द करने और कुछ प्रतिबंध लगाने और नए सिरे से चुनाव करानेके इलाहाबाद हाईकोर्ट के 24 अगस्त और 27 अगस्त के आदेश का विरोध करने वाली विशेष अनुमति याचिकाओं को खारिज किया।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने की। एचसी के निर्देशों के खिलाफ एसएलपी को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि खारिज करने के कारणों को बाद में बताया जाएगा।
पीठ ने कहा,
"विशेष अनुमति याचिकाएं खारिज की जाती हैं। आदेश का पालन किया जाए।"
याचिकाकर्ताओं (अमित सचान और आलोक त्रिपाठी) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर बालासुब्रमण्यम पेश हुए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष मामला
अवध बार एसोसिएशन के चुनाव से संबंधित स्वत: संज्ञान मामले में जस्टिस ऋतु राज अवस्थी और जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की बेंच ने 14 अगस्त को हंगामे के बीच हुई पूरी चुनाव प्रक्रिया को रद्द करते हुए 25 सितंबर को चुनाव कराने के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए थे।
न्यायालय ने यह अनिवार्य कर दिया था कि अवध बार एसोसिएशन के सदस्य के लिए चुनाव 2021 में भाग लेने के लिए या तो चुनाव लड़ने या अपना वोट डालने के उद्देश्य से अन्य शर्तों के साथ उच्च न्यायालय, लखनऊ में नियमित प्रैक्टिशनर होना चाहिए।
इसके बाद, एक स्पष्टीकरण संलग्न किया गया ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि नियमित प्रैक्टिशनर किसे कहा जा सकता है।
अवध बार एसोसिएशन के चुनाव से संबंधित स्वत: संज्ञान मामले में अपने पहले के आदेश (दिनांक 24 अगस्त) को संशोधित करते हुए, उच्च न्यायालय ने 27 अगस्त को इस न्यायालय के 'नियमित प्रैक्टिशनर ' (चुनाव लड़ने या कास्टिंग के उद्देश्य से) निर्धारित करने के मानदंडों में ढील दी।
अत: अवध बार एसोसिएशन के चालू वर्ष अर्थात 2021 के चुनाव की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए न्यायालय ने 24 अगस्त के आदेश में स्पष्टीकरण में दी गई शर्तों को निम्न प्रकार से शिथिल करते हुए संशोधित किया;
(I) तीन साल की अवधि को घटाकर दो साल कर दिया जाएगा।
(II) पिछले दो वर्षों के लिए एक वर्ष में दर्ज किए गए न्यूनतम मामले वर्ष 2019 के लिए दस मामले और वर्ष 2020 के लिए 5 मामले होंगे।
(III) जिन वकीलों के घर लखनऊ-बाराबंकी रोड पर या लखनऊ-बाराबंकी रोड पर कॉलोनियों में हैं, उन्हें लखनऊ का निवासी माना जाएगा।
(IV) अधिवक्ता-शपथ आयुक्तों को 'नियमित प्रैक्टिशनर ' माना जाएगा।
(V) सभी चैंबर आबंटितियों को 'नियमित प्रैक्टिशनर ' की परिभाषा में शामिल किया जाएगा।
केस का शीर्षक: अमित सचान एंड अन्य उत्तर प्रदेश बार काउंसिल