"गिरफ्तारी मेमो, बॉडी सर्च मेमो साबित नहीं हुए, साइट प्लान गलत" : सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस एक्ट के तहत दोषसिद्धि रद्द की

LiveLaw News Network

1 Dec 2022 4:16 PM IST

  • गिरफ्तारी मेमो, बॉडी सर्च मेमो साबित नहीं हुए, साइट प्लान गलत : सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस एक्ट के तहत दोषसिद्धि रद्द की

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उस व्यक्ति को बरी कर दिया, जिसे चरस रखने के अपराध के लिए 10 साल कैद की सजा सुनाई गई थी और 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था। अभियोजन की कमी और खामी के कारण उसे संदेह का लाभ देते हुए, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने अपीलकर्ता को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 20 के तहत दोषसिद्धि को रद्द कर दिया।

    अपीलकर्ता को विशेष न्यायाधीश जिला कुल्लू, हिमाचल प्रदेश द्वारा सजा सुनाई गई थी, और सजा को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा बरकरार रखा गया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ड्रग्स की बरामदगी के स्थान पर तैयार किया गया साइट प्लान/स्पॉट मैप गलत और त्रुटिपूर्ण था।

    पीठ ने पाया कि हेड कांस्टेबल (पीडब्लू-4) ने अपनी जिरह में स्वीकार किया है कि साइट प्लान गलत तरीके से तैयार किया गया था। नाकाबंदी और यहां तक ​​कि वह स्थान भी जहां अपीलकर्ता ने कथित रूप से पीठ पर लदा थैला फेंका था, गलत बताया गया था। पीठ ने यह भी नोट किया था कि एक अन्य हेड कांस्टेबल (पीडब्लू-5) जो जांच अधिकारी है, ने भी जिरह में स्वीकार किया था कि साइट प्लान गलत था।

    पीठ ने पाया कि अभियोजन पक्ष गिरफ्तारी मेमो और पर्सनल बॉडी सर्च मेमो लिखने वाले को दिखाने और साबित करने में भी सक्षम नहीं रहा है। पीडब्लू-4 ने स्वीकार किया कि उसने गिरफ्तारी मेमो या व्यक्तिगत बॉडी सर्च मेमो पर अपने हस्ताक्षर नहीं किए थे, हालांकि उसके नाम का एक प्रमाणित गवाह के रूप में उल्लेख किया गया था। पीठ ने यह भी नोट किया कि पीडब्लू-4 ने माना था कि पीडब्लू-5 द्वारा गिरफ्तारी मेमो तैयार किया गया था, हालांकि पीडब्लू-5 ने कहा कि वह गिरफ्तारी मेमो और पर्सनल बॉडी सर्च मेमो का लेखक नहीं है।

    पीठ ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता ने यह दलील दी थी कि उसे बस स्टैंड से गिरफ्तार किया गया था, जब वह बस में चढ़ने का इंतजार कर रहा था। एक बेंच के नीचे एक लावारिस बैग मिला, जिसमें चरस मिली थी। यह अपीलकर्ता का स्टैंड था कि उसे झूठा फंसाया गया था और पुलिस के अनुसार कोई सार्वजनिक गवाह नहीं था।

    पीठ ने नोट किया,

    "पूर्वोक्त कमियों और अभियोजन के मामले में खामियों के मद्देनज़र, जब इन्हें सामूहिक रूप से और एक साथ लिया जाता है, तो हमें लगता है कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 20 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को बरकरार नहीं रखा जा सकता है। अपीलकर्ता को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए।"

    अमर चंद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य - एसएलपी (क्रिमिनल) नंबर 752/2019 से उत्पन्न सीए नंबर 2035/2022

    साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (SC) 1002

    नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 - धारा 20- सुप्रीम कोर्ट ने दोषसिद्धि को रद्द कर दिया- अभियोजन पक्ष के मामले में खामियों पर ध्यान देने के बाद संदेह का लाभ दिया - गिरफ्तारी मेमो, बॉडी सर्च मेमो साबित नहीं हुए- साइट प्लान गलत तरीके से तैयार किया गया- कोई स्वतंत्र गवाह नहीं

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