संविदा कर्मचारियों को मातृत्व लाभ अधिनियम पाने का हक है या नहीं? दिल्ली HC करेगा फैसला

LiveLaw News Network

19 Nov 2019 6:42 AM GMT

  • संविदा कर्मचारियों को मातृत्व लाभ अधिनियम पाने का हक है या नहीं? दिल्ली HC करेगा फैसला

    केरल हाईकोर्ट ने दो फैसलों में कहा था कि संविदा कर्मचारी भी मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत लाभ की हकदार हैं।

    दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष सवाल उठा है कि क्या मातृत्व लाभ अधिनियम 2017 के तहत कंसल्टेंसी सेवाओं के लिए अनुबंध के आधार पर नियुक्त की गईं महिलाओं को लाभ मिल सकता है?

    यह प्रश्न राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा दायर याचिका में उठाया उठाया गया है। आयोग ने याचिका एक म‌हिला की ‌‌श‌िकायत पर दायर की है। उस महिला को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने मातृत्व लाभ से वंचित किया है। प्राधिकरण का कहना है कि म‌हिला की नौकरी 'नियोक्ता-कर्मचारी' के दायरे में नहीं आती, इसलिए वो मातृत्व लाभ अधिनियम की हकदार नहीं है।

    NHA ने कोर्ट के समक्ष कहा है कि पीड़ित महिला को प्रोफेशनल सेवाओं के लिए एक सलाहकार के रूप में अनुबंध के आधार पर काम पर रखा गया था। यदि उसके अनुबंध को ध्यान से देखा जाए तो उसकी स्थिति प्राधिकरण के नियमित कर्मचारी जैसी नहीं है। इसलिए, उसे मातृत्व लाभ अधिनियम जैसे मामलों में नियमित कर्मचारियों के बराबर नहीं रखा जा सकता है।

    महिला का पक्ष रखते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि उक्त महिला कर्मचारी के भी नियमित काम के घंटे थे, जिसे उसे भी अन्य कर्मचारियों की तरह बायोमेट्रिक सिस्टम का उपयोग करके दर्ज करना पड़ता था, साथ ही उसे भी ऑफिस के अन्य नियमों का पालन नियमित कर्मचारियों की तरह ही करना पड़ता था। इसलिए, यह आचरण बताता है कि NHAI का इरादा महिला के साथ नियोक्ता-कर्मचारी जैसा व्यवहार रखने का ही था।

    NCW ने यह भी दलील दी कि NHAI चूंकि सभी वैकेंसीज को भरने में सक्षम नहीं था, इसलिए उक्त महिला को एक पॉलिसी के तहत काम पर रखा गया, जिसमें अनुबंध के आधार पर अधिक पेशेवरों को काम पर रखने की आवश्यकता की बात कही गई थी।

    अपनी दलीलों के समर्थन में, NCW ने मातृत्व लाभ अधिनियम की धारा 3 (d) का भी हवाला दिया जो 'नियोक्ता' को परिभाषित करती है:

    एक प्रतिष्ठान के संबंध में, जो सरकार के नियंत्रण में है, नियोक्ता वो व्यक्ति या प्राधिकरण है, जिसे कर्मचारियों की देखरेख और नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है अथवा जहां कोई व्यक्ति या प्राधिकरण नियुक्त नहीं होता है, वहां विभाग का प्रमुख नियोक्ता है;

    एक प्रतिष्ठान के संबंध में, जो किसी स्थानीय प्राधिकारी के अधीन होता है, वहां नियोक्ता उस अधिकारी को कहा जाता है, जो कर्मचारियों की देखरेख और नियंत्रण के लिए नियुक्त किया जाता है या जहां कोई व्यक्ति नियुक्त नहीं किया जाता है, वहां स्थानीय प्राधिकारी का मुख्य कार्यकारी अधिकारी को नियोक्ता कहा जाता है;

    किसी भी अन्य मामले में, वह व्यक्ति जो प्राधिकारी है ओर जो प्रतिष्ठान के मामलों पर अंतिम नियंत्रण रखता है नियोक्ता होता है और जहां उक्त मामलों को किसी अन्य व्यक्ति को सौंपा जाता है, जिन्हें प्रबंधक, प्रबंध निदेशक, प्रबंध एजेंट या अन्य नाम दिया जा सकता है, ऐसा व्यक्ति को नियोक्ता कहा जाता है.

    ज‌स्टिस नवीन चावला की सिंगल बेंच ने महिलाओं के के मामलों में अफरमेटिव एक्‍श्‍न के लिए नियोक्ता की भूमिका महत्वपूर्ण मानते हुए, नियोक्ता के सवाल पर फैसला दिया था। उसी फैसले को ध्यान में रखते हुए ही है को नोटिस जारी किया गया था।

    उल्‍लेखनीय है कि केरल हाईकोर्ट ने दो फैसलों - रासिथा सी एच बनाम स्‍टेट ऑफ केरल और राखी पी वी बनाम स्‍टेट ऑफ केरल में कहा था कि संविदा कर्मचारी भी मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत लाभ की हकदार हैं।

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